समीक्षा : गांव, शहर, जंगल की दुनिया के भीतर ले जाने में कामयाब किसन लाल की द्विभाषी किताब
डॉ. परदेशीराम वर्मा
छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में एक समान अधिकार से वे लोग ही लिख पाते हैं जो छत्तीसगढ़ के गांवों या शहरों में पुश्तों से रहते हें । छत्तीसगढ़ में हिन्दी के नामी लेखकों में से अधिकांश इस तराजू में तोले जा सकते हैं जो छत्तीसगढ़ी से जीवन भर परहेज कर हिन्दी में लिखकर यशस्वी और पाँव पूजने योग्य बने और छत्तीसगढ़ी में लिखने के अपराध के कारण हिन्दी में अपनी प्रवीणता के बावजूद छत्तीसगढ़ी मूल के लेखक उपेक्षा के शिकार हुए ।
एक ऐसा ही बेहद महत्वपूर्ण नाम किसनलाल का है जिसे हिन्दी सिद्ध है और जो छत्तीसगढ़ी को विरासत में अर्जित करने के कारण कमाल की छत्तीसगढ़ी भाषा का वैभव अपनी रचनाओं में जगजाहिर कर चुका है ।
किसन लाल को मैं तब से जानता हूँ जब वह संघर्ष करते हुए हिन्दी में एम.ए. करते हुए लेखन के क्षेत्र में आगे बढ़ रहा था । मुझे जनवादी कवि भाई नासिर ने पहली बार उससे भेंट करवाया ।
दलित समाज में जन्में, अर्थाभाव से पीड़ित, अकेलेपन से दुखी, होकर भी किसान लाल तब भी मुझे लेखन क्षेत्र में लाल बनने का आश्वासन देता सा लगा ।
मुझे खुशी है कि कालान्तर में वह मेरे अनुमान के अनुरूप हिन्दी छत्तीसगढ़ी में लिखकर मेरी उम्मीद से कहीं अधिक ताकत के साथ आगे बढ़ा और समकालीन लेखन जगत में अपनी पहचान बनाने की सारी योग्यताओं को अर्जित कर लेने के बावजूद आज भी संघर्ष का दामन नहीं छोड़ पाया । संघर्ष ही उसकी शक्ति है । किसनलाल एक संतुलित विचारों का लेखक है । जहां बोलने की जरूरत होती है वहां किसनलाल चूकता नहीं और जहाँ चुप रहना आवश्यक है वहाँ संयम बरतना उसे आता है । किसन लाल की शादी मेरे परम मित्र देवदास बंजारे के परिवार में हुई है । फिर भी मैं प्रशंसा करते हुए अतिरेक से बचना चाहता हूँ । दुलरूवा दामाद है तब भी ।
किसन लाल की एक अनोखी किताब सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली से आई है । नंदिनी केहेस त मोर गांव देमार शीर्षक की लंबाई से मुझे मेरे गुरू कमलेश्वर जी की किताबों कहानियों के लंबे शीर्षक याद हो आते हैं ।
किसन लाल कमलेश्वर जी से प्रभावित भी लगते हैं । वे मूलरूप से जनवादी लेखक हैं । किसन लाल ने आँख खोलते ही जनवादी लेखन के परिदृश्य को देखा । आंख खोलना एक सुन्दर मुहावरा है जिसे छत्तीसगढ़ी में आंखी उघरना कहते हैं । कहना चाहिए कि जनवादी गलियारे में किसन की आंख ऊघरी । बिल्ली जैसे अपने बच्चे को इक्कीस घर ले जाकर बड़ा करती है उसी तरह किसन का भी संरक्षण और विकास हुआ ।
वह शिक्षक रहा तो शिक्षा जगत की खामी, अनुशासनहीनता और बड़े गुरूजी लोगों की नीचता तथा शिक्षा जगत में बालिकाओं के साथ आए दिन होने वालेे शारीरिक शोषण के खिलाफ लड़ बैठा । नौकरी तो जानी ही थी ।
वह जंगल के लोगों के लिए लड़ने वाले वामपंथियों के समर्थन में खड़ा हो गया । उसे धमकियाँ तो इसलिए भी मिलती थी कि वह 2018 तक लगातार तत्कालीन भाजपा सरकार के विरूद्ध जनहित में साहसिक लेखन करता रहा ।
वह बेरोजगार होकर भी लगातार लिखता रहा । इस बीच उसकी यह किताब नंदनी केहेस त मोर गांव देेमार आई । इस पुस्तक में छत्तीसगढ़ी और हिन्दी के महत्वपूर्ण लेख हैं ।
किसन ने बहुत जानकारी, शोध और आकलन के बाद लेखों को तैयार किया है ।
विधान सभा भवन में तांत्रिकों को प्रवेश करने के लिए अनुमति पत्र बनवाने वाले भाजपाई विधायकों की भी खूब खबर उसने लिया है तो शराब में डूबकर विनास की ओर चल पड़ने वाले गांव देमार के बहाने समग्र छत्तीसगढ़ की शराबखोरी ओर उसके कारण आ रही विपत्तियों का खौफनाक नक्शा उसने खीचा है ।
इस पुस्तक में तरह तरह के लेख हैं । भाषा पर किसन की पकड़ देखते ही बनती है । हर लेखक अपने ढंग से भाषा को साधता है । किसन के पास सधी हुई भाषा है । उससे हमें और पाने की प्रत्याशा है ।
किसान थोड़ा गुस्सैल सा दिखता है अपने आलेखों में । जवान है तो गुस्सा उसे शोभा भी देता है । मगर अब सियानी की उमर शुरू हो गई है इसलिए आशा की जा सकती है कि अब पकी हुई और अधिक संतुलित और श्रेष्ठ रचनाएँ सामने आऐंगी ।
शुभकामनाएँ
नंदिनी केहेस त मोर गांव देमार
हिन्दी छत्तीसगढ़ी की किताब
सर्वप्रिय प्रकाशन नई दिल्ली मूल्य – 200 रू.
डॉ. परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी. 18 आमदी नगर,
भिलाई 490009 छत्तीसगढ़
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