ग़ज़ल
छोड़ दे सीधा-सादा रहना, हुश्यारी भी सीख ज़रा,
दुनिया में जीना है तो दुनियादारी भी सीख ज़रा।
आख़िर कब तक रोज़ बचेगा जग में झूठे लोगों से,
दो-दो हाथ नहीं तू बातें दोधारी भी सीख ज़रा।
कुछ ज़हरीले धोखे देना, हँस-हँसकर बातें करना,
और शहद जैसी थोड़ी-सी मक्कारी भी सीख ज़रा।
फूल दिखाकर काँटे बोना, मतलब से मिलना-जुलना,
सच जैसी झूठी बातों की फनकारी भी सीख ज़रा।
अपनी-अपनी गाते रहना, महफ़िल में ज्ञानी बनना,
बेमतलब की बातें करना कुछ भारी भी सीख ज़रा।
काम न करना लेकिन उसका शोर मचाना रोज़ाना,
चूना-कत्था-मक्खनबाज़ी सरकारी भी सीख ज़रा।
कब तक भूखा रहकर सबका पेट भरेगा तू ‘चेतन’,
कर्तव्यों के साथ ज़रा-सी हक़दारी भी सीख ज़रा।
-चेतन आनंद