नहीं रहे शब्दाचार्य अरविंद कुमार
पियूष कुमार
अविश्वसनीय खबर मिली है कि Arvind Kumar जी नहीं रहे। उनकी पिछली पोस्ट 15 अप्रैल की है। कुछ बीमार जरूर थे पर फिर से मुखातिब हो गए थे फेसबुक पर। पिछले 10 सालों में फेसबुक और मैसेंजर में बहुत संवाद हुआ उनसे। 91 वर्ष की उनकी आयु के बावजूद कभी लगा नहीं कि वे कभी साथ छोड़कर जा सकते हैं। मन उदास हो गया और आंखें नम हैं…
1980 के दशक के उत्तरार्ध में एक अंतरराष्ट्रीय पत्रिका का हिंदी संस्करण ‘सर्वोत्तम रीडर्स डाइजेस्ट’ पढ़ने को मिली जब मैं 13-14 साल का था। उसकी प्रस्तुति और हिंदी इतनी प्रभावी थी कि वह हमेशा के लिए जीवन मे रच गयी। तब उस पर संपादक का नाम देखता था – अरविंद कुमार। एक विद्वान और आदर्श संपादक कैसा होता है, यह तब ही समझ आने लगा था। फिर खबर में पढ़ा, हिंदी का विश्वस्तरीय थिसारस तैयार हुआ है जो अरविंद जी का काम है। फिर दस साल पहले जब फेसबुक में आया, तो यहाँ उनसे न सिर्फ मित्रता हुई, बल्कि संवाद भी होने लगा। फेसबुक पर यह मैं अपनी उपलब्धि मानता हूँ।
आरम्भ में अरविंद जी ने बतौर बाल श्रमिक एक छापेखाने में काम किया है। 1945-46 में वे स्वतंत्रता आंदोलन में सहभागी रहे। गांधीवादी अरविंद जी की पढ़ने लिखने की रुचि ने उन्हें दिल्ली प्रेस (सरिता, मुक्ता, चम्पक, सुमन सौरभ, गृहशोभा, caravan) से जोड़ा। एक बार अरविंद जी ने मुझे बताया था कि दिल्ली प्रेस के संस्थापक विश्वनाथ मेरे गुरु हैं। उनपर जो भी जानकारी चाहिए, मुझसे ले सकते हैं। आरम्भ में ‘सरिता’ से जुड़े। उल्लेखनीय है कि सरिता 1945 से अब तक निरंतर प्रकाशित हो रही है। वे दिल्ली प्रेस में 1963 तक सहायक संपादक रहे। इसी समय उंन्होने अंग्रेजी पत्रिका ‘caravan’ का संपादन किया। फिर मुम्बई आये और 1978 तक प्रख्यात फिल्मी पत्रिका ‘माधुरी’ के संपादक रहे। 1980 – 85 तक उन्होने अंतराष्ट्रीय पत्रिका रीडर्स डाइजेस्ट के हिंदी संस्करण ‘सर्वोत्तम’ के संपादक का काम संभाला।
पर कुछ खास करना था। वे इस खास के लिए तब जब वे मुम्बई की चकाचौंध भरी फिल्मी दुनिया (माधुरी पत्रिका) को छोड़कर दिल्ली आ गए और 16 साल तक शब्दों पर मेहनत की और जन्म हुआ विश्व का अद्वितीय द्विभाषी थिसारस ‘द पेंगुइन इंग्लिश-हिन्दी/हिन्दी-इंग्लिश थिसॉरस ऍण्ड डिक्शनरी’ यह किसी भी शब्दकोश और थिसारस से आगे की चीज़ है और संसार में कोशकारिता का एक नया कीर्तिमान स्थापित करता है। अरविन्द जी ने ‘शब्देश्वरी’ और ‘तुकांत कोश’ का भी निर्माण किया है। उन्होने कुछ काव्यानुवाद किया है और फुटकर साहित्य लिखते रहे हैं। अरविंद जी सिनेमा प्रेमियों के लिए भी अत्यंत रोचक ‘सिनेमा का थिसारस’ हैं। आप उन्हें उनकी वाल पर नियमित पढ़ सकते हैं।
आज यह शब्दाचार्य 91 साल की आयु में हमें छोड़ गए हैं। आप अविस्मरणीय हैं अरविंद जी। कुसुम जी अब अकेली हो गईं… अरविंद जी आखिर तक अत्यंत सक्रिय थे जो हम सबके लिए प्रेरक है। अरविन्द जी की एक और बड़ी बात यह थी कि वे बेहद विनम्र और बेहतरीन इंसान थे। विद्वत्ता और मनुष्यता का यह मणिकांचन संयोग समाज मे कम ही दिखता है। उन्होंने हिंदी के लिए जो किया है, वह अतुलनीय है। हिंदी सदैव उनकी आभारी रहेगी। यूँ तो जीवन सबको मिलता है पर इतना सार्थक कोई कोई ही कर पाता है। आज उनके निधन पर उन्हें भरे मन से श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ …