आज के कवि
जी लें हर लम्हा
डॉ प्रत्यूष गुलेरी
राम लुभाया ठिठक गए
सुबह बगीचे में सैर करते
आम्रवृक्षों व लीची के पेड़
लद गए थे फूल-बौर से
असंख्य मधुमक्खी प्रजाति की
मक्खियों का अंबार देखकर
एक एक गुच्छे पर चार सौ
कुदरत का यह नजारा
किसी अचरज से कम नहीं था
उनके लिए
ये वे मक्खियां थी जो
फूलों से फल बनाने की
प्रक्रिया में निष्णात होती हैं
यह कौन है
कौन सी अद्भुत कला का जादूगर
बनाता है मिटाता है
पेड़, फल-पौधे
कीट-पतंग
पशु-पक्षी, नदी-नद
पर्वत-घाटियाँ, समंदर
और सृष्टि में सब देशों के
अलग- अलग चलते फिरते
माटी के खिलौने
खेल रहे हैं
किसी अदृश्य इशारे पर
अपने अपने रंग में
नचा रहा है कोई नट
नाटक पूरा होते
कब पर्दा गिर जाए
क्या पता
जो है उसे
जी लें जी भरकर
हर लम्हा
खटपट या खटखट से नहीं
आनंद से उल्लास से
आनंद ही तो ईश्वर है
अल्ला है, ईसा है
राम,रहीम कबीर
फकीर या सलीम जो कहो!
कीर्ति कुसुम, सरस्वती नगर, पोस्ट दाड़ी धर्मशाला
(हिमाचल प्रदेश-176057)।