नये कवियों से तुलसीदास के बारे में एक दो और तथ्य
कविता में विषयों के चुनाव को लेकर अधीर और शब्द प्रयोग को लेकर संकुचित न रहें!
गोस्वामी तुलसीदास जी ने 419 अरबी फारसी शब्दों का प्रयोग किया है! और एक ही राम कथा को भिन्न भिन्न शैलियों पाँच बार लिखा है।
युवा कवि विषयों की खोज में बहुत जाग्रत और बेचैन रहते हैं। उनको इस जागृति और बेचैनी के लिए शुभ कामना देते हुए कहना चाहूँगा कि विषय शोध महत्त्व पूर्ण है लेकिन उससे अधिक महत्त्वपूर्ण है विषय को निचोड़ना। महाकवि तुलसीदास विषय को निचोड़ने के एक बड़े उदाहरण हैं। तुलसी ने रामकथा को कम से कम पाँच बार लिखा है और हर बार अलग तरह से लिखा है। उनके छंद प्रयोग की बेचैनी इन रचनाओं को पढ़ कर देखी जा सकती है-
कवितावली
गीतावली
बरवै रामायण
जानकी मंगल
और
रामचरितमानस
इन पाँचों कृतियों का केंद्रीय विषय रामकथा ही है! इससे एक बात समझ में आती है कि आप किस विषय को कैसे और कितनी बार भी लिखने का प्रयत्न करें! जब तक आपको न लगे कि अब सब ठीक है तब तक लिखें! लोग नये विषयों और अछूते विषयों की खोज में जोते रखें और आप जुते रहें यह उचित नहीं है। आप अपने प्रिय विषय को बहु भाँति लिखने और कहने का यत्न करें। यदि कोई अछूता विषय मिल जाये तो उसे ऐसे प्रयोग करें कि वह पूरी तरह उभर कर आये। एक उदाहरण दूँ तो लीला धर जगूड़ी जी की कविता ‘अंर्तर्देशीय’ का नाम ले सकता हूँ-
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए
न अपने विचार
न अपनी यादें
इस पत्र के भीतर कुछ न रखिए।
यदि आपको ध्यान हो तो अन्तर्देशीय पत्र के ऊपर लिखा होता था-
‘इसके भीतर कुछ रखना मना है’
यह भी सुझाव है कि युवा कवि इस तरह से एकदम नया विषय चुनें!
एक और बात यह कि तुलसीदास ने भाषा में शब्दों को लेकर भेदभाव नहीं किया इसी कारण उनकी सब रचनाओं में कुल मिला कर 419 शब्द अरबी फारसी और उर्दू के आये हैं। उन्होंने पोंगा पंडितों से केवल यही नहीं कहा कि माँग के खाता हूँ मस्जिद में रहता हूँ बल्कि शब्दों के बीच आने वाली मजहबी दीवार भी गिर दी! अपने आराध्य की लीलाओं के वर्णन में भरपूर अन्य भाषाओं के शब्द आने दिये! यह कार्य उन्होंने जाग्रत मन से किया है।
इन शब्दों की संख्या उनके काव्य प्रयोगों के साथ आगे कभी लिखूँगा। यदि उनको उचित लगा तो उन्होंने अपने राम को गरीबनिवाज कहने में नहीं हिचके। इस समय उनके लिए अपनी भावना अधिक महत्व पूर्ण लगी और उसके लिए यही शब्द सबसे उत्तम लगा। मानस में उन्होंने, गरीब, गरीबी, गरीब निवाज, गरीब निवाजी इन सब तरीके से प्रयोग किया है तो कोई यह नहीं कह सकता कि एक बार भूल से गरीबी शब्द लिखा गया होगा! यह भी नहीं कि तुलसीदास गरीबी के समानार्थी शब्दों का प्रयोग नहीं कर रहे थे या उन शब्दों से परिचित नहीं थे। तो कविता में शब्द प्रयोग के लिये प्रचलित भाषा के शब्द चयन के लिए युवा अपने को मुक्त मानें! वही शब्द रखें जिससे उनको अधिक गहराई में अर्थ मिल रहा हो।
नमूने के लिए कुछ उन अरबी फारसी के शब्दों को लिख रहा हूँ जिनका प्रयोग गोस्वामी तुलसीदास ने किया है- गरज( अपने स्वार्थ या प्रयोजन के लिए), गच( पक्की या जड़ाऊ), खाक( मिट्टी), खवासु-खवास(परिचारक, सेवक के लिए) जहान( विश्व के लिये)
हमारे पुरखे कभी भाषा में शब्दों के प्रयोग को लेकर संकुचित नहीं रहे। इस विषय पर यहाँ बहुत विस्तार से नहीं लिखना चाहता इसलिए चिली के कवि निकानोर पार्रा के शब्दों में इतना ही कहूँगा कि-
‘तुम जिस कागज पर लिखो
उसकी कीमत बढ़ा दो’
एक और बात तुलसीदास को समझने के लिए एक बेहतर ‘तुलसी शब्द कोश’ आपके पास होना चाहिए। एक नया कोश मधुकर उपाध्याय जी और कुमुद उपाध्याय जी ने संपादित किया है वह अवश्य रखिए। यह सेतु प्रकाशन से रजा फ़ाऊंडेशन के सहयोग से प्रकाशित है। मधुकर जी और कुमुद जी का कोश रामचरितमानस के अवधी शब्दों तक सीमित है लेकिन उससे तुलसी को समझने में बहुत सहायता मिलती है। यह एक नया और बड़ा काम है तुलसी को समझने के लिए।
इस रामचरितमानस कोश के साथ ही यह आचार्य बच्चू लाल अवस्थी ‘ज्ञान’ का अनमोल ‘तुलसी शब्द कोश’ भी खोजिए। इसके प्रकाशक हैं बुक्स एन बुक्स, नई दिल्ली। यह दो खण्डों में है। इन दोनों के साथ एक तीसरा कोश भी रखें तो उत्तम। वह है तुलसी शब्दसागर। संकलनकर्ता और संपादक हैं- पंडित हर गोविंद तिवारी और भोलानाथ तिवारी। प्रकाशक हैं हिंदुस्तानी अकादमी, इलाहाबाद!
आप सब का
बोधिसत्व
नोट:
*आदरणीय जगूड़ी जी की काव्य पंक्तियाँ स्मृति से उद्धृत की है तो कोई भूल हो सकती है!
*निकानोर पार्रा की पंक्तियों का अनुवाद मेरे पहले काव्यगुरु आदरणीय उपेन्द्र नाथ अश्क जी का किया हुआ है!