December 18, 2024

स्कूल के दिन आए फिर से

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मेरे बालगीत संग्रह – स्कूल के दिन आए फिर – से।
चित्रांकन – दिलीप शर्मा

दिन आए फिर

दिन आए फिर अजी ठंड के
तोड़ जुटाने के
आंख, कान को छोड़
सभी अंग बंद कर जाने के

मन नहीं भरता चाहे अंगीठी
जितना भी हम तापें
हा बाबा इस कड़क ठंड में
बदन समूचा कांपे

सुबह सुबह का अजी क्या कहना
गजब ठुनठुनी लाती
हवा जो आती पिन चुभाती
धूप गुनगुनी भाती

शॉल, कोट, जैकेट, स्वेटर और
मफलर, टोप, रजाई
कड़क ठंड से बचने सबने
ऐसी फौज जुटाई

डंका डंका हुए दिन और
बांस बांस भर रातें
और न कोई गरमी सा
कहता – दोपहरी कांटें

पंखे, कूलर कुंभकर्ण से
मार रहे खर्राटे
और बेचारे कुल्फी वाले
नजर कहीं ना आते

रात जो आती करते आती
खिड़की, दरवाजे बंद
औ’ गलियों में भर सन्नाटा
कर देती है दंग

कमलेश चंद्राकर

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