मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई (छत्तीसगढ़ी बाल-गीत)
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई
तयँ बघुवा के मौसी दाई.
कुकुर देख के थर थर काँपे
ठउँका दउँड़त प्रान बचाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई……………….
नान नान तोर पीला दू
किंजरें तोर पाछू-पाछू
उतलंगी बड़ करत हवयँ
मुड़ी कान ला धरत हवयँ.
रोज-रोज मोर रँधनी मा आके
चोरा के खावयँ दूध-मलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई………………
धान के कोठी के खाल्हे
मुसुवा मन बैठे ठाले
खइता अन के करत हवयँ
अपन पेट ला भरत हवयँ.
मुसुवा ला तुक तुक के मारे
तयँ किसान के करे भलाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई…………….
म्याऊँ म्याऊँ गुरतुर बोली
किंदरत हस खोली खोली
देख तोला भागय मुसुवा
चाल ढाल मा तयँ सिधवा.
कइसे गजब लफंगा होगे
तोर ये बनबिलवा भाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई………..
सौ मुसुवा ला खाथस तयँ
हज करे बर जाथस तयँ
संसो मा मुसुवा आगै
कोन नरी घंटी बाँधै.
नान्हेंपन ले कहिनी सुन के
जानत हन हम तोर चतुराई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई………..
तोर रेंगई ऊपर मरगे
कतको टूरी मन तरगे
रिंगी चिंगी चेंदरी पहिन
बड़े-बड़े माडल बनगिन.
मटक मटक मोटियारिन करथें
कैट-वाक् मा खूब कमाई.
मुनु बिलाई रे मुनु बिलाई………..
अरुण कुमार निगम
दुर्ग (छत्तीसगढ़ )