पुरखा के सुरता
पुरखा के सुरता
के बहाना म
थोरकून गोठ
हुंकारू देवत जा
जादा नई कहँव
थोरकून बस
नवा पीढ़ी के लइका मन साहित्य के विचार करत
दहरा म बुडत हे
बढ़िया सुगघर दिशा म बढ़त हे
जोरत हे सकेलत हे
सोचत हे गुनत हे लिखत हे
देख के सुन के समझ के
सुगघर साहित्य ला संजोवत हे एक नहीं कतको झन के नाँव
फ़ेर ओमप्रकाश साहू अंकुर
ओकर कलम आज
“पुरखा के सुरता ”
बतावत हे उंकर काम काज ”
बढ़िया चलत हे अपन विधा म
संहराये ला पड़ही
संहराबो जम के l
असीस अइसे देबो l
🙏👍🌹
मुरारी लाल साव
कुम्हारी