January 31, 2025

आश्चर्य की वर्तनी में छुओ मुझे

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देह से देह विलग हो
तो भी कामना जुड़ी रहे
ज्यों कोई सलोना सयुंक्ताक्षर

हर नवेली कोशिका को
फिर फिर नष्ट होने का अवकाश दो
प्रत्याशा के पूर्वाभ्यास में अभी

अभी इस निशा की निर्विकल्प द्युति में
कांपने दो श्वास का मालकौंस अनवरत

अभी हीरे से विषाक्त
और तीखे हथियार में बदलने दो अपनी चुप्पी
अभी याद को यातना में ढलने दो

अभी मैं नहीं जानती
प्रतीक्षा के अतिरिक्त कोई शास्त्र

अभी मैं अनुपस्थित हूँ
अपनी ही एन्द्रिक एषणाओं के खंडित स्वप्नफल में

अभी व्याकुलता की तटस्थ लाज गलने दो

आज की रैन
पश्चाताप के लिए भी
एक कातर तर्क हो;

छोड़ कर
जाने के लिए भी गढ़ो
पुनरुक्ति दोष सा एक लघु शिल्प आज की रैन

बस आज भर के लिए
कविता को इस ताप से मुक्त करो
मुझे अपने आदिम अंधेरे में उतरने दो ….

सपना

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