January 30, 2025

शिवरीनारायण मंदिर छत्तीसगढ़ एवं सवर, सवरा जनजाति(१-७-२४)

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कुछ दिनों पूर्व अपने गृह ग्राम बागबहारा (छत्तीसगढ़) में था, वहाँ से लगभग ९० किलोमीटर की दूरी पर प्रसिद्ध तीर्थ शिवरीनारायण(जिला चाँपा जांजगीर) पहली बार जाना हुआ। शिवरीनारायण महानदी, शिवनाथ नदी एवं जोंक नदी के संगम पर स्थित है। यह स्थल अत्यंत पवित्र धार्मिक, ऐतिहासिक स्थल है, ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर, माता शबरी ने भगवान राम को अपने हाथों से बेर खिलाए थे। वह वृक्ष भी है,जिसके पत्तों पर भगवान को बेर खिलाए गए थे, जिसकी पत्तियाँ दोने के आकार की हैं, इसे “कृष्ण वट” कहा जाता है। तुलसी कृत रामचरितमानस के अरण्य कांड में दोहा क्र.३४ में वर्णित है-
कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुँ आनि।
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि॥34॥

शबरी ने अत्यंत रसीले और स्वादिष्ट कन्द, मूल और फल लाकर श्री रामजी को दिए। प्रभु ने बार-बार प्रशंसा करके उन्हें प्रेम सहित खाया।
इसके आगे भगवान राम, माता शबरी को नवधा भक्ति के विषय में विस्तार से बताते हैं। सबरी से भेंट के अंत में भगवान राम, माँ जानकी के विषय में खोज-ख़बर, शबरी से लेते हैं, तो शबरी उन्हें पम्पा नामक सरोवर में सुग्रीव से मित्रता करने की सलाह देती हैं-

पंपा सरहि जाहु रघुराई। तहँ होइहि सुग्रीव मिताई॥
सो सब कहिहि देव रघुबीरा। जानतहूँ पूछहु मतिधीरा॥6॥

(शबरी ने कहा-) हे रघुनाथजी! आप पंपा नामक सरोवर को जाइए। वहाँ आपकी सुग्रीव से मित्रता होगी। हे देव! हे रघुवीर! वह सब हाल बतावेगा। हे धीरबुद्धि! आप सब जानते हुए भी मुझसे पूछते हैं!
वाल्मीकि रामायण के अरण्य कांड में यह प्रसंग कुछ अलग तरह से वर्णित है,उसमें पंपा सरोवर के तट पर मतंग मुनि के आश्रम में भगवान राम शबरी से मिलते हैं। इस प्रसंग के पूर्व, भगवान राम को कबन्ध के द्वारा, माता शबरी एवं सुग्रीव के विषय में बताया जाता है। रामचरितमानस एवं वाल्मीकि रामायण में इस प्रसंग के विवरण में यह भिन्नता प्राप्त होती है, परन्तु माता शबरी से भगवान राम की भेंट का प्रसंग दोनों में समान है।
ऐसी मान्यता है कि पम्पा सरोवर, कर्नाटक में तुंगभद्रा नदी के किनारे है। वर्तमान में कर्नाटक प्रान्त में “सवर” जाति निवास नहीं करती है। लोक मान्यता,हज़ार वर्ष पूर्व निर्मित शिवरीनारायण मंदिर, महानदी के साथ अन्य नदियों के संगम तट को देखते हुए, यह मानने करने का पर्याप्त कारण है कि इसी स्थान पर भगवान राम से माता शबरी की भेंट हुई थी। छत्तीसगढ़ शासन के द्वारा इस स्थल को भगवान राम के वन गमन पथ की मान्यता देकर विकसित भी किया जा रहा है।
शिवरीनारायण यह नाम “शबरी” एवं भगवान राम के अन्य नाम “नारायण” को संयुक्त करके रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि माँ शबरी सवर, सवरा जनजाति की थी। अनुसूचित जनजातियों की सूची में सवर, सवरा भी है,मध्य प्रदेश की सूची में यह क्रमांक ४५,छत्तीसगढ़ की सूची में क्रमांक ४१ , उड़ीसा की सूची में क्रमांक ५९ ,पश्चिम बंगाल की सूची में क्रमांक ३८ पर हैं।वर्ष २०११ की जनगणना के अनुसार नवगठित मध्यप्रदेश में इनकी कुल संख्या मात्र ८८१ है ,जबकि छत्तीसगढ़ में वर्ष २००१ की जनगणना अनुसार इनकी आबादी १,०४,७१८ है, जो कुल आबादी का मात्र १.५८ प्रतिशत है। वर्ष १९८१ की जनगणना के अनुसार अविभाजित मध्यप्रदेश में मात्र 0.५३ प्रतिशत सवर जनजाति की जनसंख्या थी। जनगणना २०११ के अनुसार उड़ीसा ,आँध्र प्रदेश, महाराष्ट्र एवं पश्चिम बंगाल में सवर जनजाति की आबादी क्रमश ५,३४,७५१ , १,४०,७२४ ,३४८, १,०८,७०७ है। उड़ीसा में गजपति, रायगढ़ा एवं बरगढ़ ज़िले में एवं आँध्र प्रदेश के श्रीकाकुलम, विजयानगरम एवं विशाखापत्तनम ज़िलों में एवं पश्चिम बंगाल के मिदनापुर ज़िले में इनका निवास है। यहाँ तक कि बांग्लादेश में भी इनकी आबादी लगभग २००० बतायी जाती है
आदिम जाति अनुसंधान एवं विकास संस्थान भोपाल मध्य प्रदेश द्वारा प्रकाशित पुस्तक के अनुसार यह जनजाति मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ,उड़ीसा आँध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार और महाराष्ट्र में निवास करती हैं। अविभाजित मध्य प्रदेश के मुख्यतः रायगढ़, महासमुंद, बिलासपुर ज़िलों में ही इनका निवास बताया गया है, अर्थात नवगठित मध्यप्रदेश में इनका निवास नहीं है।
सवरा या सबर जाति भारत की एक प्राचीन जाति है।सवर जनजाति के लोग अपनी उत्पत्ति रामायण के शबरी से मानते हैं, महाभारत में भी सबर जात का उल्लेख मिलता है। महासमुंद ज़िले के सवरा अपनी उत्पत्ति रामायण काल के वानरराज “सुग्रीव से मानते हैं।
“मध्य प्रदेश की जनजातीय संस्कृति” पुस्तक के लेखक डॉ. शिव कुमार तिवारी के अनुसार “बाणभट्ट ने विन्ध्याटवी का वर्णन करते हुए शबरों का सजीव चित्रण किया है।महाकवि लिखता है की शबर सेनापति का शरीर, लोहे के समान कठोर था, रंग नीलकमल के समान था। बाल घुंघराले थे,माथा चौड़ा, नाक बड़ी ऊँची थी।( कादंबरी शबर सेनापति वर्णन पृष्ठ ९०)
अमरकोश(२-१०-२०) में शबरों को म्लेच्छों का एक प्रकार बतलाया गया है। बृहत्संहिता में शबरों का उल्लेख पुलिंदों और आखेटकों के साथ किया गया है। इसी ग्रंथ में शबरों के दो भेद बतलाये हैं जो क्रमशः नग्न शवर और पर्ण शवर है, अर्थात वस्त्र न धारण करने वाले शवर और पत्ते धारण करने वाले शवर।कथासरित्सागर में पुलिंदों और शवरों में कोई भेद नहीं बतलाया गया है। भागीरथ प्रसाद त्रिपाठी ने बुंदेलखंड की प्राचीनता ग्रंथ में शबर जाती को बुंदेलखंड की सौर जनजाति माना है।

व्ही.डी. झा भारत के मध्य क्षेत्र में निम्नलिखित जनजातियों की गणना करते हैंः-तुन्डीकर, दशनामिक ,सूर्यार्क , गायन्त, देवभारिक, मूषक, भारशिव,नाग,पराद ,कच्छादिग्न, वीरहोत्र,पौरिक एवं शवर। झा का विवरण बी. सी.लाल एवं जी.सी. सरकार के ग्रंथों पर आधारित है।
शवरों में टोटमी गोत्र भी होते हैं -जैसे शेर, बगुला, बिच्छु, हाथी, हरिण, तथा हंस। यह टोटमी गोत्र पशु, केवल पवित्र पशु के रूप में ही मान्य हैं”।
शिवरीनारायण मंदिर परिसर में स्थित मंदिरों का निर्माण कलचुरी वंश के राजाओं के द्वारा नौवीं से बारहवीं शताब्दी तक की अवधि में किया गया। परिसर में भगवान विष्णु, माता शबरी, एवं शंकर जी के मंदिर हैं। मंदिर की बनावट अत्यंत आकर्षक है, विभिन्न देवी देवताओं की मूर्तियां पत्थरों में बहूत बारीकी के साथ उकेरी गई है। मंदिरों के गर्भ गृह में विराजित विग्रह भी अत्यंत भव्य एवं आकर्षक हैं। प्रतिदिन हज़ारों की संख्या में हिन्दू दर्शनार्थी, मंदिरों के दर्शन करने के लिए आते हैं। वैष्णव मत की प्रमुखता के कारण, यहाँ नियमित रूप से भागवत कथा का आयोजन भी होता है।

शिवरीनारायण मंदिर परिसर में स्थित कुछ मंदिरों के चित्र
[9:25 AM, 1/24/2025] Sudhir Sharma: विक्रमादित्य सिंह

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