तुम हो तो दुनिया कितनी हरी भरी है मेरे बच्चे…
तुम्हारी दौड़
अलकनंदा की तरह है
मेरे बच्चे!
तुम्हारी चाल
गंगा की तरह है
मेरे बच्चे!
तुमसे मिला सुख
महानदी की तरह है
मेरे बच्चे!
तुम्हारा मुख
गंगोत्री-गोमुख की तरह
हरहर है
मेरे बच्चे!
तुम्हारा साथ
नर्मदा की तरह
मनहर है
मेरे बच्चे!
तुम्हारे बोल
तिस्ता की तरह
चंचल है
मेरे बच्चे!
तुम हो!
तो मेरी दुनिया में
कितनी हलचल है
मेरे बच्चे!
तुम हो तो
ये दुनिया
सचमुच
हरी-भरी है
मेरे बच्चे!
-शीलकांत पाठक