मुसाफिर चांद
रात के मुसाफिर चांद,
तू भी तन्हा तन्हा ,
चल रहा है शायद मेरी तरह,
सितारों जड़ा ये गगन,
जगमगाते हैं झुरमुटों में,
संग संग मुस्कराकर,
करते हैं आपस में ,
सरगोशियां,
पर तू अकेला चांद,
हल्की पीली,
उदास रोशनी में फीकी सी
मुस्कान लिए चल रहा है,
आओ मेरी बांहों में आ जाओ,
मिलकर हम प्रीत का,
उजास बिखरायें,
सारा अम्बर जगमगायें।।
@@नीलिमा मिश्रा