अपर्णा की दो गज़लें
जीस्त ठहराव है …
जीस्त ठहराव है रवानी भी
कुछ हकीक़त है कुछ कहानी भी //१//
हाल दिल का अजीब सा क्यूं है
दर्द है और शादमानी भी //२//
आशिकी इंतजाम है दुहरा
आग के साथ साथ पानी भी //३//
इक वो लड़की बसी है जो दिल में
थोड़ी नादान है,सयानी भी //४//
खूब तुमने सज़ा सुनाई है
सोज़ भी ज़ब्ते बेज़ुबानी भी //५//
शौक़ को नाम अपने क्या दूं मैं
उसकी घायल भी हूं दिवानी भी //६//
इश्क़ होना तो उससे लाज़िम था
मेरे माकूल है वो सानी भी //७//
टीस उठती है सर्द मौसम में
चोट गहरी है और पुरानी भी //८//
सब्र तो आज़मा लिया तुमने
अब करो कुछ तो मेहरबानी भी //९//
आप बिगड़े नवाब पर बीवी
खूबसूरत हो खानदानी भी //१०//
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जश्ने आज़ादी का…
जश्ने आज़ादी का कर दे आज से आगाज़ तू
खोल दे अपने ये पर ले झूम कर परवाज़ तू //१//
सोज़ होना चाहिए था जितना भी वो हो चुका
ज़िंदगी के गीत का बन जा सुरीला साज़ तू //२//
ख़ुद चुना था तूने अपना रास्ता ये याद रख
ख़ुद ही ज़िम्मेदार है फिर किसलिए नासाज़ तू //३//
तेरी असली मिल्क़ियत है ये तेरा अपना वजूद
औरों की खातिर नहीं करना इसे नाराज़ तू //४//
जीने की खा़तिर मिला करती है हमकों ज़िंदगी
भूल कर भी भूलना मत जीने का अंदाज़ तू //५//
तेरे अपने खो गए जो वक़्त की इस गर्द में
लौट आएंगे पुराने यार दे आवाज़ तू //६//
हादसों की इन मुसलसल आंधियों के बावजूद
तुझमें बाक़ी आग है इस बात पे कर नाज़ तू //७//
भीड़ में होकर भी आख़िर है सभी तन्हा यहां
ख़ुद ही अपना हमसफ़र तू दोस्त,तू,हमराज़ तू //८//