ईद पर माधुरी कर का विशेष लेख
ईश्वर अल्लाह तेरो¨ नाम
सबको सन्मति दे भगवान
मेरी जिंदगी मुझसे हिसाब मांगे, खुदा की दी यह अमानत पल-पल का खिताब चाहे (सम्मान की जिंदगी)
श्रीमती माधुरी कर
आप कितने खुश है, यह अहम नहीं है, आप की वजह से कितने खुश है, यह अहम है। ईश्वर ने मनुष्य को भले या बुरे कर्म करने की स्वतंत्रता इसलिए दी है कि वह अपने विवेक को विकसित करें और भले-बुरे का अंतर करना सीखे, जिससे वह दुष्परिणाम के शोक संतप्त से बचने और सत्परिणामों का आनंद लेने के लिए अपना पथ निर्माण करने में समर्थ है। देवताओं से तरह-तरह की मनौतियां मांगने और उन्हें खुशामद या रिश्वत का प्रलोभन देकर प्रसन्न करने की छिछोरेपन को हम जितनी जल्दी छोड़ सकें उतना ही अच्छा है। देवता इतने अच्छे या मूर्ख नहीं और न ही उन्हें सस्ते प्रलोभन से बहलाया-फुसलाया जा सकता है। भावमनात्मक प्रगति के आधार पर ही ईश्वर की देव शक्तियां हमारे अनुकूल बनती और अनुग्रह करती है। एक क बार प्रसिद्ध सूफी संत राबिया एक हाथ में आग और दूसरे हाथ में पानी का बरतन लेकर दौड़ी चली जा रही थीं। उनकी बदहवाश हालत देखकर लोगों ने उनसे इसका कारण पूछा। वे बोली- मैं जन्नत में आग लगाने और¨जख की आग बुझाने जा रहा हूं। मुझे यह देखकर बड़ी तकलीफ ह¨ती है कि लोग अल्लाह का नाम लेकर जन्नत पाने और¨जख से बचना चाहते हैं। अल्लाह की भक्ति किसी लालच या डर का कारण नहीं, बल्कि निःस्वार्थ होनी चाहिए। मनु औरर शतरूपा दोनों का प्रेम भगवान के प्रति समान था।उन्होंने तप भी समान किया था, लेकिन मनु अपनी सहानुभूति को प्रधानता दे बैठे और शतरुपा ने अपनी इच्छा प्रभु का निर्णय से मिला दी। वे कहती है कि आप हमारा हित अधिक समझते हैं। ¨ विभूतियां आप अपने भक्त को¨ देना उचित समझते हैं, वही हमें दें।
सोइ सुख सोइ गति साइ भगाति, सोइ निज चरण सनेहु।
सोइ विवेक सोइ रहनि प्रभु, हमहु कृपा करि देहु।।
भगत वेग है, जो न वरदान मांगते, न किसी को शाप देते हैं। भाषाओं का अनुवाद हो सकती है, भावनाओं का नहीं, इसे समझते प़़ता है। वे दधीचि की तरह अपना कर्तव्य करते हैं
परहित सरिस धरम नहिं भाई।
परपीड़ा सम नहिं अधमाई।।
सिनाका एक प्रसिद्ध संत थे। उनका एक शिष्य अपने नवजात शिशु को उनसे आशीर्वाद दिलाने पहुंचा। सिनाका बोले- इसे क्या आशीर्वाद दूं। शिष्य ने अनुरोध किया कि बस इतना कह दें कि इसका व्यक्तित्व परिपक्व हो और तेजस्वी निकले। सिनाका बोले- भगवान करे कि इसे जीवन में संघर्ष की कमी न रहे। शिष्य घबराया, तब सिनाका उसे समझाते हुए बोले- पुत्र बिना तराशे हीरे की कीमत पत्थर से ज्यादा नहीं होती। संघर्ष और कठिनाइयां मनुष्य का व्यक्तित्व को¨ मजबूत और सुगढ़ बनाती हैं। जैसे श्रम का अभाव में शरीर नकारा हो जाता है, वैसे ही विपरीत परिस्थितयों से टकराए बिना मनुष्य का व्यक्तित्व निष्प्राण बना रहता है। ये विषम घड़ियां ही इसका व्यक्तित्व को मजबूत और तेजस्वी बनाएंगी। रामकृष्ण, जिन्हें भगवान का स्वरूप मानते हैं, जीवन भर संघर्ष करते रहे।
धर्म का अर्थ है धारण करना। धारण करने योग्य केवल श्रेष्ठाएं है, जिनको अपनाने से लौकिक जीवन में समृद्धि, सामूहिक विकास और आत्म कल्याण का मार्ग प्रशस्त होता है। दुनिया में सब कुछ है पर धारण करने योग्य वस्तु क्या है? अपने घर में तुलसी लगा सकते हैं, बेशरम का पौधा नहीं।
जब जब होहिं धरम के हानी। बाढ़हिं असुर अघम अभिमानी।।
तब-तब प्रभु धरि मनु सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।
प्यार खुदा, प्यार इबादत
प्यार से मिलती सारे जहां की जन्नत
खुदा के प्यारे, खंजर न उठाओ¨
राह भूले को थोड़ा सा प्यार का जाम पिला दो
होगी प्यार की जीत
वही खुदा की इबादत जान¨।
ईद मुबारक