सुनीता काम्बोज की दो व्यंग्य कविताएं
जन्म : ब्याना, करनाल (हरियाणा )
विधा : छन्द, ग़ज़ल, गीत, बालगीत, भजन, हाइकु, सेदोका, चोका, क्षणिका, आलेख, समीक्षा, व्यंग्य एवं हरियाणवी भाषा में ग़ज़ल व गीत।
शिक्षा : हिन्दी और इतिहास में परास्नातक ।
प्रकाशित कृतियाँ : 1. अनभूति (काव्य-संग्रह), 2. किनारे बोलते हैं (ग़ज़ल-संग्रह), 3. हर बात गुलाबी है (माहिया छंद संग्रह), 4. महकी भोर (हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, क्षणिका संग्रह) 5. चलना तेरी ओर(गीत संग्रह) 6. हाइगा-कृति(हाइगा-संग्रह)7. लाल गुब्बारा(शिशुगीत संग्रह) 8. छुपन-छुपाई(बालगीत संग्रह) 8, बाल मन की उड़ान (बालगीत संग्रह)
ब्लॉग : मन के मोती ।
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन ।
राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में रचनाओं का अनवरत प्रकाशन ।
विश्व पुस्तक मेले में कविताकोश द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुति।
डी.-डी. दूरदर्शन पंजाबी एवं अन्य हिन्दी कार्यक्रमों में कविता पाठ ।
पुरस्कार एवं सम्मान : देश की विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित ।
पत्र व्यवहार का पता :
श्रीमती सुनीता काम्बोज पत्नी, श्री राजेश कुमार काम्बोज
मकान नंबर -120, टाइप-3
संत लौंगोवाल अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी संस्थान
लौंगोवाल, जिला-संगरूर, पंजाब
148106 (भारत)
ई-मेल –sunitakamboj31@gmail.co
व्यंग्य रचना -3
आज जो फिल्में
ज्यादा अश्लीलता फैलाती हैं
वही प्रसिद्धि पाती हैं
जो फ़िल्म जितने
विवाद ने रहती है
केवल वही लोगों की
याद में रहती है
एक तरफ लोग
अश्लीलता को ले
एतराज जताते है
दूसरी तरफ वही आंदोलनकारी
फ़िल्म भी देखने जाते हैं
आज आदमी की नीयत पर
शक होने लगा है
वह क्या चाहता है
कुछ स्पष्ट नहीं बता पाता है
एक तरफ वह सन्नी लियोन का फैन है
दूसरी तरफ सुपरमैन है
इंसान द्वंद्व में फँसा है
मुन्नी के ठुमको का
आनन्द भी लेना चाहता है
और अपने बच्चों को
इन मोहमाया से बचाकर
अच्छा वातावरण और
संस्कार भी देना चाहता है ।
-०-
व्यंग्य रचना -4
आजकल हम भी
चुनाव का मन
बना रहे है
तभी लोगों से
नजदीकियाँ बढ़ा रहे हैं
अबकी बार खुद से
मंत्री बनने का वादा किया है
पहले दिल्ली में
धरना देने का इरादा किया है
वादों की सूची
तैयार कर रही हूँ
रिश्वतखोरी और कालाबाजारी
पर प्रहार करके
फेसबुक और व्हाटसअप पर
चुनावी प्रचार कर रही हूँ
कुछ बड़े मुद्दों की
अब मैं तलाश में हूँ
कुछ मिलेगा जरूर
बस इसी आस में हूँ
परन्तु ,विपक्ष वही
रोज नई पुरानी चालें
चल रहा है
यह सब देख कर
सच कहूँ तो
कलेजा जल रहा है
किसी ने राय दी , बेटा
राजनीति में
बिना कश्ती ही तिरना होगा
वोटों के लिए
कुछ और नीचे गिरना होगा
मैंने कहाँ ,भगवन
सच कहूँ यह
मेरे बस की बात नहीं है
तभी आकाशवाणी हुई
आराम से घर बैठ जाओ
तुम्हारी ….
चुनाव लड़ने की
औकात नहीं है
सुनीता काम्बोज