November 18, 2024

नवगीत -शब्दों के व्यापारी

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कविता में भी घुसे हुए हैं
शब्दों के व्यापारी
चला रहे हैं खाल ओढ़कर
अपनी दुकानदारी

संपादक हैं ,आयोजक हैं
इनमें हैं कुछ नेता
ढूँढा करते हैं मंचों के
क्रेता और विक्रेता
उन्हें फाँस लेते हैं जिनमें
दिखती है लाचारी

विद्वानों से दूरी रखते
मुर्खों से है नाता
उन्हें रिझाते हैं हरदम ये
जिन्हें नहीं कुछ आता
पहनाते है इक दूजे को
टोपी बारी बारी

मौका हथियाने की ख़ातिर
झुकना, गले लगाना
इन्हें ख़ूब आता है सबको
हँस हँसकर बहलाना
पीछे पड़ जाते हैं फौरन
दिख जाए ग़र नारी

नौसिखियों के आगे जुगनू
बने हुए हैं दिनकर
सीख नहीं पाए हैं जो ख़ुद
सिखा रहे गुरु बनकर
आत्ममुग्धता में डूबी है
आज व्यवस्था सारी

डॉ.माणिक विश्वकर्मा ‘नवरंग’
क्वार्टर नं.एएस-14,पॉवरसिटी
अयोध्यापुरी,जमनीपाली
जिला-कोरबा (छ.ग.)495450
मो.7974850694
9424141875

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