ग़ज़ल
बेटे ने लाख चाहा था, पाई न दे सका
पापा के हाथ पहली कमाई न दे सका
परबत की थी उम्मीद, मैं राई न दे सका
अपने भले से जग को भलाई न दे सका
घर की सफाई हो न सकी, थक गया बदन
लेकिन मैं अपने हक़ में सफाई न दे सका
उसने भी मेरी शान में बोला था एक लफ़्ज़
वो एक लफ़्ज़ ही तो सुनाई न दे सका
घर से निकल के ख़ूब कमाया तो है मगर
हाथों से अपने माँ को दवाई न दे सका
इससे अधिक तो होगी कोई बेबसी भी क्या
इक शर्ट थी, उसे भी मैं टाई न दे सका
‘अनमोल’ उसे कौन कहेगा बताइए
लालच की जीभ को जो मलाई न दे सका
- के. पी. अनमोल
(कोरोना को मात देने के बाद पहली तस्वीर)