श्रीप्रकाश शुक्ल की ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी : एक जागतिक आचार्य’ पुस्तक का प्रकाशन
हिंदी भाषा और साहित्य के पठन-पाठन एवं शोध के क्षेत्र में काशी हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ऐतिहासिक भूमिका रही है. यह विभाग अपना शताब्दी वर्ष मना रहा है. इस अवसर पर कवि, आलोचक, संपादक और अध्यापक श्रीप्रकाश शुक्ल की ‘हजारीप्रसाद द्विवेदी : एक जागतिक आचार्य’ पुस्तक का प्रकाशन बहुत मायने रखता है. यह पुस्तक सेतु प्रकाशन द्वारा बहुत सुरुचिपूर्ण ढंग से प्रकाशित हुई है. यूँ तो मैंने 429 पृष्ठों की यह पुस्तक महीने भर पहले पढ़ ली थी, लेकिन किसी विशेष संकोच के कारण इस पुस्तक पर अपनी पाठकीय प्रतिक्रया मित्रों से साझा करने में हिचकिचाहट-सी हो रही थी.
लगभग 30 पृष्ठ व्यापी अपनी लंबी भूमिका में संपादक ने ‘जागतिक आचार्य’ के रूप में आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी जी को स्थापित किया है. उसका मानना है कि द्विवेदी जी की ‘संपूर्ण जागृति’ में यह ‘जगत’ है और उनके ‘संपूर्ण जगत’ में यह ‘जागृति’ है. संपादक ने द्विवेदी जी में जागतिक व्यवस्था के भीतर अविच्छिन्नता, आधुनिकता और संघर्ष के बीज अंकुरित होने का उल्लेख भर नहीं किया है बल्कि उनकी विविध रचनाओं को आधार बनाकर इन तत्वों को अन्वेषित और स्थापित भी किया है. तमाम उप-शीर्षकों में अपने संपादकीय को विभाजित करते हुए संपादक ने इस दीर्घ भूमिका को बहुत पठनीय बनाया है तो दूसरी ओर अपनी मान्यता को गंभीरतापूर्वक स्थापित भी किया है. ‘साहित्य की व्याख्या’, ‘शुक्ल और द्विवेदी सन्दर्भ’, ‘आचार्य द्विवेदी और हिंदी विभाग’ जैसे उप-शीर्षकों से गुजर कर पाठक का चकित हो जाना स्वाभाविक है कि कितने गंभीर मुद्दों को कितने सहज और प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करने की क्षमता का अधिकारी है इस पुस्तक का संपादक.
एक ओर इस पुस्तक में द्विवेदी जी की बहुआयामिता का उदघाटन हुआ है तो दूसरी ओर आज के सन्दर्भ में द्विवेदी जी की रचनाशीलता का पुनर्पाठ प्रस्तुत हुआ है. द्विवेदी जी के सृजनशील व्यक्तित्व के विविध पक्षों को प्रसिद्ध बहुचर्चित, अल्पचर्चित तथा युवा लेखकों ने अपने लेखों के माध्यम से प्रशंसनीय ढंग से उकेरा है. विश्वनाथ त्रिपाठी, रमेशकुंतल मेघ, नित्यानंद तिवारी, शिवकुमार मिश्र, बच्चन सिंह, राधावल्लभ त्रिपाठी, खगेन्द्र ठाकुर, ए. अरविंदाक्षन, सियाराम शर्मा, बजरंग बिहारी तिवारी, अल्पना मिश्र, मनोज सिंह, रामाज्ञा राय शशिधर, विनोद तिवारी, वैभव सिंह, बसंत त्रिपाठी, रविशंकर उपाध्याय और स्वयं संपादक श्रीप्रकाश शुक्ल के लेखों और विचारों से गुजर कर आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के विविधवर्णी व्यक्तित्व की विराटता और सृजन-जगत की विविधता से नए सिरे से परिचित हुआ जा सकता है. साथ ही मौजूदा दौर में द्विवेदी जी के विचारों की प्रासंगिकता को इस पुस्तक के माध्यम से महसूसा जा सकता है.
बढ़िया काम किया है श्रीप्रकाश शुक्ल ने और सेतु प्रकाशन ने भी. खूब बधाई दोनों को.
डॉ अरूण होता