आज की कविता
किताब के समान खुलेंगीं
यदि आपके घर की खिड़कियां
तो अन्य दिनों से
कुछ भिन्न होगा बाहर का दृश्य
खिड़की के समान खुलने वाली खिड़कियों से
जो देखती रहीं आपकी आंखें आज तक
कुछ अलग देखेंगीं
यदि किताब के समान खुलेंगीं आपके घर की खिड़कियां
आप हरा रंग देखेंगे
और हरेपन से भर जाएंगे
आसमान सिर्फ नीला नहीं होगा आपके लिए
हवा कुछ इस तरह छूकर बहेगी आपको
कि मेरे छूने का होगा अहसास
कि आपके भीतर खुलने लगेगा कुछ
किताब के समान खुलने वाली खिड़कियों के समान !
कमलेश्वर साहू