छत्तीसगढ़ी गाड़ा
प्राचीन काल से ही गाड़ा को छत्तीसगढ़ मे एक महत्वपूर्ण ट्रान्सपोर्ट के रूप मे प्रयोग किया जाता रहा है। इसे गाड़ी भी कहा जाता है। यह लोगो की यात्राओं हेतु प्रयुक्त होता था जो अभी विलुप्ति के कगार पर है। गाड़ा को फिल्मो या गरीबहा किसानो के पास देखा जा सकता क्योकि रोटहा किसान लोग आधुनिक काल के औजारो को प्राथमिकता देतें रहे हैं।
● गाड़ा मे प्रयुक्त होने वाले पार्ट्स – डाड़ी /बैइसकी/ढ़ोखर /जुंड़ा /अछाँद / सिली/धुरखीला/सुम्हेला – जोंता/खूंटा/बरही आद़ि।
● गाड़ा की बनावट – गाड़ा की बनावट को देखें तो इसकी तुलना वर्तमान युग के वायुयान से कर सकतें हैं जैसे वायुयान के धुरा ह चाकर एवं पछेला हर सांकुर होता है, ठीक इसके विपरीत गाड़ा के धुरा हर सांकुर एवं पछेला हर चाकर होता है इसके सामने मे जुंड़ा तथा मंझोत मे ढ़ोखर पाया जाता है, जैसा कि वायुयान के सामने मे ढ़ोखर एवं पछेला मे धुरखिला बानिक जुंडा पाया जाता है जो वायुयान के गतिमान होने पर. उचित दिशा मे हरकने का काम करता है !
● गाड़ा का संचालन प्रकिया – गाड़ा का आपरेटींग करना भी एक कला है यह सबके बस की बात नही है कही चमकनहा बईला या भईंसा फंदाया हो तो कुशल आपरेटींग क्षमता नही होने पर अप्रिय घटना होने के चाँसेस अधिक हो जातें हैं, इसके लिए एक दिन से लेकर एक जीवन भर का अनुभव को काम मे लाया जा सकता है। गाड़ा संचालन मे वायुयान की तरह दो आपरेटर होते हैं एक खेदइया एवं एक अघवा।अघवा के पास ऊँटी होता है जो गति को नियंत्रीत करता है तथा खेदईया के पास कोर्रा होता है।
● भारतीय जनजीवन मे गाड़ा की उपयोगिता – यूँ तो वर्तमान युग मे अनेक प्रकार के संसाधन हमारे दैनिक जीवन के काम मे लाये जा रहें हैं परंतु गाड़ा को सदियों से पारंपरिक एवं सार्वजनिक जीवन मे विभिन्न कार्य हेतु उपयोग लाया जाता रहा है, गाड़ा खेतो से लकाही लाने, धान कूटवाने तथा खातू फेंकने के लिए बहुत ही उपयोगी है, मेला देखने जाने के लिए इसमे गोलर चढ़ाया जाता है जिसमे पूरा परिवार बैइठ के आनंद पूर्वक यात्रा करते हैं ।
यह जानकारी whatsapp पर मिली है। अज्ञात लेखक ने छत्तीसगढ़ी पुट के साथ इसे लिखा है, यह उनकी विशेषता है। उन्हें बहुत धन्यवाद। तस्वीर नेट से ली है।
पियूष कुमार के फेसबुक वाल से