आज का कवि : दुर्गा पारकर की दो कविताएं
आँसू
गाँव ह
अपन लइका मन के
रद्दा
जोहत -जोहत रोवत हे,
अँगाकर रोटी
रांध के
अब आही, तब आही
कहिके
ओकर आँखी ह जोहत हे |
मोर अँगना ल
छोड़ के
डिगर जघा
पछीना ल बेचे बर
काबर गे हव?
मँय भले लाँघन रहि गेंव
फेर
भूख म
काकरो परान ल नइ ले हँव
खाय कमाय
के नाम म
सकुनी मन के चाल म
कब तक फंसत रहू,
पलायन के तीरीपासा म
सरबस हार के
कब तक
आँसू ढरकावत रहू |
दुर्गा प्रसाद पारकर
भिलाई
01 जून 2020
—
एकलव्य
हे परबुधिया !
धृतराष्ट्र बन के
कब तक ले
कलयुग के संजय मन के
बात ल मानत रहू ,
हे एकलव्य !
द्रोणाचार्य ल
कब तक ले
गुरू दक्षिणा म
अपन
अंगूठा ल देवत रहू |
मोर दुलरूवा !
अर्जुन कस
अब तोला ज्ञान के लक्ष्य ल
साधे बर परही,
चाहे कतनो बिपत आ जय
अशिक्षा के कालिया नाग ल
कृष्ण कस नाथे बर परही |
दुर्गा प्रसाद पारकर
भिलाई
08 जून 2020