April 11, 2025

अनामिका चक्रवर्ती की चार कविताएं

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अनामिका_चक्रवर्तीअनु

आज का दिन और अनुभवों का निचोड़

हम एक बहुत ही बुरे समय में जी रहे हैं
लेकिन हम जी इसलिए पा रहे हैं
क्योंकि दुनिया
अब भी अच्छे लोगों से भरी हुई है
और जो अच्छे लोग हैं
वे बुरे समय पर भारी पड़ रहे हैं।

—-

हम सब युद्ध के मैदान में निहत्थे खड़े हैं
बिना प्रशिक्षक के योद्धा बनकर
शत्रु की गोली न जाने कब
किसका सीना चीरती हुई पार निकल जाएं पता नहीं
बचेगा वही जिसे बचने का गुर आता हो
या जिसका सीना फौलादी हो।
बाकी किस्मत की लकीर में जिसे जितनी जिंदगी मिली है..

जिंदगी की आखिरी दहलीज तक
कोई चेहरा पुराना नहीं होता
बस उम्र की लकीरें
हाथों से चेहरे पर आ जाती है
और वक्त चांदी की जरी बनकर
बालों में नजर आता है।

‘न जाने किस छोर लकीरें खत्म हो जाएं’

जिंदगी की आखिरी दहलीज तक
कोई चेहरा पुराना नहीं होता
बस उम्र की लकीरें
हाथों से चेहरे पर आ जाती है
और वक्त चांदी की जरी बनकर
बालों में नजर आता है।

‘न जाने किस छोर लकीरें खत्म हो जाएं

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