आज के कवि
ये कहने से ज़्यादा रहा कुछ नहीं है,
नया दिन है लेकिन नया कुछ नहीं है.
है घर में घुटन एक अंधे कुएँ सी,
तो बाहर धुआँ है हवा कुछ नहीं है.
यही बात महसूस होती है अक्सर,
मिला जो हमें, वो मिला कुछ नहीं है.
इसी बेकली में लिखे जा रही हूँ,
कि लिख कर लगा है लिखा कुछ नहीं है.
बिछड़ कर भी उससे कहीं कुछ है बाक़ी,
कि जल कर भी सब कुछ बुझा कुछ नहीं है.
🌼सोनरूपा