समीक्षा : हवेली
प्रेम के विदरूप सच को उजागर करती :हवेली
‘हवेली’ लता तेजेश्वर का पहला उपन्यास है। छब्बीस अनुच्छेदों से विभक्त उपन्यास का तानाबाना एक पुरानी हवेली के इर्द-गिर्द बुना गया है जहां घटित होनेवाली अनेक घटनाओं के कारण रहस्य व रोमांच की स्थिति उत्पन्न होती है।
उपन्यास का आरंभ अजनीश के माध्यम से होता है जो अपने इमार पिता, माँ और कॉलेज में पढ़ रहे छोटे भाई को गाँव में छोड़ कर जीवनयापन के लिए अपना रुख मुम्बई की ओर करता है। यहाँ आते ही वह ठगी का शिकार होता है लेकिन एक अजनबी उसकी मदद कर इंसानियत का परिचय देता है। ऑफिस में नौकरी पाने के बाद समुद्र तट पर एक बार फिर उसकी मुलाकात उस अजनबी से होती है जो मेयर चंद्र शेखर होते हैं। उनके परिवार में पत्नी अवनि के अलावा बेटी अन्वेशा व बेटा राहुल है। कॉलेज में पढ़ने वाली अन्वेशा को यदा कदा डरावने सपने आते रहते हैं। अन्वेशा व राहुल में आपसी बाल सुलभ नोंक झोंक चलती है। अन्वेशा को अपने कुत्ते पलटु से गहरा लगाव है। पानी में तैरने के बाद अन्वेशा की तबियत बिगड़ती है तब उनके चिकित्सक डॉ रमेश शर्मा उसके लिए किसी मनोचिकित्सक से सलाह लेने की सोचते हैं। दूसरे ओर पेशे से अध्यापिका मेहंदी मुम्बई के भीड़ भाड़ वाले इलाके में अपनी माँ गौतमी और छोटी बहिन स्वागता के साथ दो बैडरूम वाले फ्लैट में रहती है। गौतमी पहले नर्स के रूप में काम करती थी लेकिन बाद में ह्रदय रोग से पीड़ित होने पर उसे नौकरी छोड़ कर घर बैठना पड़ता है। गौतमी का पति उसे छोड़ कर चला जाता है इसलिए उसका विश्वास घात मेहंदी हर पुरुष में देखती है। स्वागता अन्वेशा के साथ ही कॉलेज में पढ़ती है।
कॉलेज के पिकनिक के जाते समय किसी कारण कुछ बच्चे बस से उतर जाते है और जंगल में खो जाते हैं। अन्वेशा के खो की खबर पा कर चंद्र शेखर अजनीश को भेजते हैं तो स्वागत की खोज में मेहंदी चल पड़ती है। रास्ते में नोंक झोंक के बीच दोनों की मुलाकात होती है फिर वह हवेली पहुँच वहीँ रहने लगते हैं।
हवेली में रहते हुए एक रात अन्वेशा रहस्यमय ढंग से उसके तहखाने में बेहोश मिलती है फिर ऐसे ही घटना मेहंदी के साथ भी घटित होती है। यहीं अजनीश व मेहंदी की निकटता भी बढ़ने लगती है। वहीँ अंकिता हवेली में ही आत्महत्या की प्रयास करते मेहंदी उसे बचाती है। दोनों तरह की स्थितियों को लता ने सामने रखा है।
मेहंदी व अजनीश के प्रेम प्रसंग के साथ ही मेयर चंद्र शेखर, उनकी पत्नी अवनि, अन्वेशा, राहुल, मेहंदी की माँ गौतमी, स्वागत के सहपाठी निखिल, सुहाना नीरज, संजय, नीलिमा, अभिषेक, जुई, प्रो.सुनील, अमृता, फातिमा, वृद्धा जैसे पात्रों के सहारे उपन्यास की कथा आगे बढ़ती है। वाचमैन, रघुकाका, पूर्णिमा, डॉ रमेश , महेश के माध्यम से उपन्यास अपने चरम तक पहुँचता है। उपन्यास में जुई एक शरारती छात्र के रूप में सामने आती है।
उपन्यास की भाषा सरल है। और शैली में रोचकता ऐसी कि एक बार पढ़ना शुरू करते हैं तो कौतूहलवश पढ़ते ही जाते हैं। उपन्यास का आवरण अच्छा है लेकिन मुद्रण का कुछेक कमियाँ जरूर खटकती है। उपन्यास की भूमिका में प्रशिद्ध कथाकार संतोष श्रीवास्तव ने इसे विभिन्न घटनाओं से गुजरती हवेली का सच कहा है। मेरी नज़र में यही सच उसे रोचक व पठनीय बनाता है।
प्रकृति व व्यक्ति का चित्रण अनेक स्थान पर लता ने बड़े ही प्रभावी ढ़ंग से किया है -” पत्थरों को काटते हुए नदी सरगम गया रही थी, दूर पहाड़ से गिरते हुए जल प्रपात सूर्य की झिलमिलाती हुई रंगीन किरणे उस जल प्रपात में घुल कर और भी सोभियमान दिख रही थी। सूर्य कि रश्मि जल की तरंगों में प्रतिविम्बित हो कर दूर हवेली में अपनी सुंदरता को निहार रही थी। (पृष्ठ-72) प्रकृति से मनुष्य के सम्बन्ध व उसके प्रति गहरे अनुराग को लता भी गहनता से महसूसती है। ” प्रदूषण भरी हवा, गाड़ियों का शोर शराबा, एक दूसरे से आगे बढ़ जाने की अधीरता हमें इस सुंदर प्रकृति से दूर ले जाती है।”(पृष्ठ-74)
भले ही लता तेजेश्वर ने ‘हवेली’ को पूरी तरह काल्पनिक उपन्यास बनाया है और पात्रों का सच्चाई के साथ वे कोई सम्बन्ध नहीं बताती लेकिन सही मायने में देखें तो रहस्य व रोमांच के बहाने ‘हवेली’ प्रेम के चरम व उत्कर्ष, उसकी सफलता-विफलता विदृप सच को हमारे सामने लाने का सार्थक प्रयास है।
समीक्षक : महावीर रवांलटा
संभावना – महरगाँव
पत्रलय:मोल्टाड़ी, पुरोला
उत्तरकाशी (उत्तराखंड)
पृष्ठों:144