ऋतु गोयल की दो कविताएं
क्या तुम दे सकते हो मेरी कलम को
अपनी सानिध्य की घनी छांव
तपते हुए रेतीले पथ पर
क्षण भर विश्राम के लिए..
क्या तुम दे सकते हो
अपनी आंखों से छलकता हुआ
नेह का नीर
मेरी मुरझायी कल्पनाओं को
हरीतिमा सा श्रृंगार के लिए..
क्या तुम दे सकते हो
मुझे कृष्ण सा सान्निध्य
बन सकते हो
मेरे सारथी
मेरे आराध्य…
दे सको तो लिखना
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तुम्हारी स्मृतियां
जैसे
कस्तूरी की बेचैन करने वाली सुगंध,
जिसमें घुलकर महक जाते हैं
सपने मेरे…
मेरी पीड़ाएं
जैसे
चातक सी,
मूसलाधार बारिशों के बाद भी प्यासी
स्वाति की एक बूंद को तरसे….💕💕✍️