कविता
स्त्री तब समर्पित हुई
पुरुष से कहा गया जब तुम प्रेम करना तो देखना प्रेयसी की आँखों की गहराई चाँद से चेहरे का आकार...
बारिश के रौद्र रूप पर एक गीत प्रस्तुत है
चार दिनों से सूरज बंदी है बादल के गांव में सुख-सुपास के दिवस खो गए छेद हुए हैं छांव में...
कितनी हवा थी…
कितनी हवा थी ! जहां कुछ भी नहीं था वहां भी हवा थी दौड़ती भागती हांफती नाचती धूल फांकती चलती...
बूढ़ी हुयीं बुआ पर हर
बूढ़ी हुयीं बुआ पर हर सावन में मैके आ जाती हैं! बापू के सँग विदा हो गये सब अधिकार दुआरे...
मोड़ ऐसा भी मोहब्बत…
मोड़ ऐसा भी मोहब्बत में कभी आएगा दिल में रहता है जो वो दिल से उतर जाएगा यूँ तो हर...
हावड़ा वाले पुल पर से
■ शहंशाह आलम ग़ज़ब है भादों, जो मेरे घर को आधा पानी आधा घर दिखा रहा था हावड़ा वाले पुल...