खटारा साइकिल – (कवि श्री कोदूराम “दलित”)
अरे खटारा साइकिल, निच्चट गए बुढ़ाय।
बेचे बर ले जाव तो, कोन्हों नहीं बिसाय।।
कोन्हों नहीं बिसाय, खियागें सब पुरजा मन।
सुधरइया मन घलो हार खागें सब्बो झन।।
लगिस जंग अउ उड़िस रंग, सिकुड़िस तन सारा
पुरगे मूँड़ा तोर, साइकिल अरे खटारा।।
सायकल – (कविश्री द्वारिका प्रसाद तिवारी “विप्र”)
सायकल ऐसी बैठिए – ढीली होवे चैन।
फ्रीव्हिल का कुत्ता कभी विप्र उघारै नैन।।
विप्र उघारै नैन- ब्रेक पिछला भी मत हो।
सत्तर पंचर, ट्यूब और टायर दुर्गत हो।।
चलो बेधड़क और सुधारो उसको हर पल।
जल्दी हो यदि काम-बैठिए ऐसी साइकल।।
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संकलन व प्रस्तुति –
अरुण कुमार निगम, दुर्ग छत्तीगसढ़