November 22, 2024

कहानी : अनन्त राहें

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माँ- बाप का इकलौता बेटा था गगन। माँ की आँखों का तारा था वह, और पिताजी के दिल की धडकन । उसने जो भी चाहा, सब-कुछ पाया। उसे घर में प्यार से सब टिंकू कहकर बुलाते थे। टिंकू नटखट तो था ही, ज़िद्दी भी बहुत था। अपनी हर बात मनवाकर ही छोड़ता था। बचपन में अक्सर डूबते सूरज को गुब्बारा समझकर उसे पाने की ज़िद करता-
” मम्मा मुझे उस गुब्बारे से खेलना है। दिला दो ना प्लीज़।”
माँ हंसकर समझाती- ” वह गुब्बारा नहीं है बेटा। उसे सूरज कहते हैं। अभी थोड़ी ही देर में वह अस्ताँचल में डूब जाएगा।”
” उसे रोको ना प्लीज़ मम्मा, मुझे वह चाहिए”। टिंकू रोने लगता।
“अच्छा बाबा ठीक है। कल मैं उसे ले आऊंगी। अब रोना बंद करो”। माँ उसे मनाती।
एक बार टिंकू बहुत बीमार पड़ा। डॉक्टरों ने सलाह दी कि उसके सामने उसकी पसंदीदा चीज़ रख दी जाये, तो वह जल्दी ठीक होगा। ऐसा ही किया गया। घर में खिड़की के ठीक सामने पेड़ पर एक लाल गोलनुमा वस्तु टाँगकर रख दी गई। माँ कहती -” देखो तुम्हारा गुब्बारा आ गया है। तुम जल्दी ठीक हो जाओ, फिर उस गुब्बारे से खेलना”। टिंकू मुस्कुरा उठता। टिंकू के बचपन की दोस्त स्निग्धा रोज़ उसके लिए खाने की चीजें बनाकर लाती और उसी पेड़ के नीचे खिलखिलाकर हँसती रहती। धीरे-धीरे टिंकू का स्वास्थ्य सुधरने लगा।
स्निग्धा- टिंकू की बचपन की दोस्ती बड़े होने पर मुहब्बत में तब्दील हो गयी। साँवले रंग-रूप के बावज़ूद स्निग्धा तीखे नैन-नक्श और लम्बे घुंघराले केश के साथ काफी आकर्षक लगती थी । गगन गौरवर्णी, ऊँची कद-काठी वाला, उसकी झील-सी बड़ी-बड़ी आँखे, जिसमें शरारत हमेंशा मौजूद रहती थी। गगन को एक विज्ञापन कंपनी में बतौर मॉडल नौकरी मिल गयी। अपने पैरों पर खड़े होकर वह स्निग्धा का हाथ थामना चाहता था। मगर, गगन की माँ को यह रिश्ता कतई मंजूर न था। कारण था उनका अलग-अलग बिरादरी का होना। गगन के पिताजी को इस रिश्ते से ज्यादा ऐतराज़ नहीं था, मगर उनकी भी ज़्यादा न चली। मज़बूरन गगन और स्निग्धा ने गुपचुप शादी रचा ली। सोचा कि धीरे-धीरे सब ठीक हो जाएगा और सबकी रजामंदी मिलने पर स्निग्धा को घर लिवा लिया जायेगा। तब तक स्निग्धा अपने माँ-बाप के पास ही थी। शादी की भनक लगते ही दोनों परिवारों में द्वंद्व शुरू हो गया। आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा। अंततः विवाह-विच्छेद भी हो गया। स्निग्धा का परिवार अन्यत्र जाकर रहने लगा। गगन की शादी अन्यत्र तय कर दी गयी। अब गगन की मर्ज़ी क्या है, उससे कोई नहीं पूछता था। वह गुमसुम रहने लगा। धीरे-धीरे काम पर जाना भी छोड़ दिया। गगन की शादी हो गई। पूनम दुल्हन बनकर गगन के घर आ गई। बड़े धूम-धाम के साथ पूनम का गृह-प्रवेश किया गया। मुंह-दिखाई रस्म में सासू-माँ ने पूनम को नवलखा हार भेंट किया। सबने कहा सास-बहू की खूब जमेगी।
गगन और पूनम एक ही छत के नीचे रहते थे। मगर ज़िंदगी उनकी रेल की दो पटरियों की तरह थी। जिनका मिलना असंभव था। गगन रोज़ नशा करने लगा और नशा उसकी आदत बन गई। पूनम, गगन से मिन्नतें करती कि चाहे तो वह दूसरी शादी कर ले, मगर नशे का परित्याग कर दे। गगन मुस्कुरा देता मगर पूनम से अपनी बात कह न पाता था। दिन,महीने, साल गुज़र गये। गगन को नशे की बहुत बुरी लत पड़ चुकी थी। जिसका विपरीत असर उसकी सेहत पर होने लगा। स्निग्धा की यादें उसे जीने नहीं देती थी और एक दिन अस्पताल में वेंटिलेटर भी उसका साथ छोड़ने लगा। साँसें अटक-सी गयी। यह देख पूनम ने झट से गगन का हाथ अपने हाथों में ले लिया, और नर्स को ऑक्सीजन की रफ़्तार बढ़ाने को कहा। चमत्कार हुआ। गगन की साँसें वापस आने लगी। गगन और पूनम का हाथ फिर अलग न हुआ। दोनो ने चुन ली एक दूजे के लिए फिर से अनकही वो ‘अनंत राहें’ ।

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प्रभाती मिंज, बिलासपुर, (छ. ग.)*
[3:12 PM, 6/3/2021] Sudhir Sharma: *साहित्यिक परिचय : प्रभाती मिंज
शैक्षणिक योग्यता : एम. ए. अंग्रेजी साहित्य, इलेक्ट्रानिक्स एवं टेलीकम्यूनिकेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा व ऑनर्स डिप्लोमा इन वेब एप्लीकेशन
प्रकाशित पुस्तक : ” मैंने पूछा चाँद से” ( काव्य संग्रह 2017)
शौक व रूचिया: संगीत व साहित्य, रमणीय स्थलों का भ्रमण
संपर्क : फ्लैट नं 108, गणेश हेरिटेज, हरिभूमि प्रेस ऑफिस के पीछे, रिंग रोज नं. 02,बिलासपुर (छ. ग.)
मोबाइल नं : 9826084197
ईमेल: prabhati161616@gmail.com

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