November 23, 2024

कहानी- संजीवनी बूटी

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संदीप पांडे

बड़ी लगन, समर्पण और कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप लक्ष्मण सिंह ने पुलिस सेवा में अपना मनचाहा एस आई पद पा ही लिया था। छह फुट का कद और चौड़े सीने के स्वामी लक्ष्मण ने अपने मन में शुरू से ही पुलिस की नौकरी की तमन्ना पाल रखी थी। फिल्मों मे पुलिस के सुपर काॅप के अक्स से जहन मे उतरी यह छवि उसको अपनी सी लगने लगी थी , शनै: शनै: खाकी वर्दी के प्रति स्वतः मोह ने उसकी यह इच्छा मजबूत की। बचपन से किशोर वय तक वो जब- जब पुलिस कथा प्रधान सिनेमा देखकर टाकीज से घर को लौटता तो बार -बार कमर पर ही हाथ रखता, उसको लगता जैसे कि कोई पिस्तौल है वहां , और कितनी ही रात उसे नींद में ऐसे ऐसे हैरतअंगेज सपने दिखाई देते ।कभी उसने कालोनी की सड़क से संकरी गली को पार करके घनघोर जंगल तक अपराधी का पीछा किया, तो कभी उसने दूर से ही भांपकर किसी भरे हुए मेले मे भीड़ को चीरकर झपट्टा मारा, अपराधी की कमीज का कालर पकड़ा, और घसीटकर मेला मैदान से बाहर बहुत दूर ले आया । कभी उसने स्कूल के बाहर वाली ऊंची दीवार फांदकर, किसी बच्चा पकड़ने वाले गिरोह की चंगुल से एक भोले, मासूम ,नादान बच्चे को बचा लिया, जो महज एक कुल्फी के लोभ में किसी अनजान की उंगली थामे न जाने कहां जा रहा था । खैर! लक्षमण और उसके भीतर पुलिस वाले के हैरतअंगेज कारनामे का यह काल्पनिक सिलसिला, यह सब पांचवीं सातवीं कक्षा तक चलता रहा , और होश संभालने वाकई समझदार होने के बाद से उसने गंभीरता से एकदम असली वाला पुलिस मैन बनने का ख्वाब संजोया था। यों सपने अब भी आते थे पर उनमें व्यवहारिकता का पुट रहता था ।
मसलन अपराधी पकड़ने के लिए ऊंचाई से कूदते समय सांस रोकनी है दो कदम पीछे चलकर लंबी छलांग लगानी है आदि आदि ।इसलिए रोज खूब दौड़ना, पसीना बहाने वाला परिश्रम करना, पेड़ की डाली पर लटकना, दो भरी बाल्टी लेकर तेज- तेज भागना । सप्ताह मे एक दिवस चीट डे मनाना और फास्ट फूड खा लेना बाकी दिन ताजा पकी हुई पौष्टिक दाल -रोटी, दूध ,दही, मक्खन दलिया खाना और पढ़ाई में मन लगाना ।इस तरह चौबीस साल उम्र का बांका जवान लक्ष्मण अपनी पहली पोस्टिंग के रूप मे , ट्रेनिंग के बाद राज्य के सीमावर्ती थाने , पीपलगढ़ मे जोईनिंग दे चुका था। पीपलगढ़ थाना कैसा होगा इसका पूरा अनुमान उसने खूब लगा लिया था ।वो ज्वाइन करने वाला है ,यह खबर कौन से तेज चैनल से वहाँ गई होगी ?कौन जाने? लेकिन उसको देसी घी के व्यंजनों से जीमाने और गुलाब गेंदे की माला पहनाने के इच्छुक बार- बार फोन करने लगे थे और संदेश आने लगे थे ।पर लक्ष्मण तो किसी और ही माटी का बना था। मेरा आजकल उपवास है, बाहर खाने की सौगंध है , इन दिनों घी मक्खन आदि का परहेज है कहकर उसने एक एक कर सबको टाल दिया था ।अब गांव पहुँचा, थाने मे प्रवेश किया तो वहां का भूगोल और प्राकृतिक दृश्य सिरे से ही अटपटे से दिखाई दिये । पचास की उम्र के और एक क्विंटल से ज्यादा वजनी थानेदार महावरजी, वो अपनी शारीरिक हलचल और बोलचाल दोनो में ही महासुस्त थे। चार कांस्टेबल और दो हेड कांस्टेबल तीस से पैंतीस आयु वर्ग के चपल कर्मी थे।
मगर वो चपलता अपने मतलब के लिए थी । कानून का पालन करवाना या अपराध रोकना यह सब राम भरोसे है, इस विचार की उन सबको कुछ आदत हो गई थी या जान बूझकर हो रहा था मगर ड्यूटी मतलब उन सबके लिए बस समय गुजारना ही थी। ऐसा लक्षमण ने महसूस किया और पहले ही दिन प्रमाणित भी हो गया । हुआ यह कि दोपहर में एक आदमी दौड़ कर आया, हांफता हांफता बोला,” मेरे बेटे को दो तीन लोग जुआ खेलना और कच्ची शराब बनाना सिखा रहे हैं। आप जरा मेरे साथ चलो और मेरी सहायता करो।” यह सुनकर लक्ष्मण कुछ कहता या करता, इसके पहले ही थानेदार और कांस्टेबल शुरू हो गये,” अच्छा , बेटा , चल इधर खड़ा हो जा , हां ,,अब, जरा ये तो बता कमुवा, इस समय दोपहर के बारह बजे तू अपनी मजदूरी खोटी करके नरेगा की दिहाडी़ बिना कुछ काम किये खाते मे डालेगा, हैं? “,बोल , जवाब दे , अरे,,हमको गधा समझा है क्या, और तेरा बेटा वो रमुवा ,, वो हट्टा कट्टा पच्चीस साल का जवान क्या दूध पीता बच्चा है। जो उसको पहाडे की तरह रटाना पडेंगा कि सुन ओ, भोले बालक, ये काम कर और ये मत कर ,, हैं,,।” पागल आदमी ।” यहां थाने मे हजार काम हैं मगर हमको तू वहां ले जायेगा और फिर हम तेरी गुलामी करेंगे, चल यहां से , और कान खोलकर, सुन यह थाना है, कोई आलू -टमाटर का ठेला नहीं समझ गया । “अब भाग वैसे ही भतेरे काम पड़े हैं ।” कमुवा इतनी डांट – फटकार सुनकर वहां भला कैसे ठहर पाता वो उलटे पैरों निराश लौट गया । हां ,, लक्ष्मण यह सब सुनकर उस समय तो खामोश रहा । पर वो जानता था कि उसे अब यहाँ हर पल क्या क्या करना है । गप लगाने, मुफ्त की ताजा लस्सी छाछ गटकने और धूप छांव मे कुर्सी सरकाने वाला अफसर वो कतई नहीं बनना चाहता था । यहां व्यवस्था किसी ढर्रे पर चल रही थी और हौले हौले मृतप्राय हो रही थी मगर , वो भी तो लक्षमण ही था । इस थाने मे संजीवनी बूटी उसे ही लानी थी । कुछ ही दिनो में उसने थाने के सभी पेंडिंग केसो की फाईलो का अध्ययन कर लिया और उन पर काम शुरू कर दिया। आफिस मे क्म्प्यूटर दो थे पर उपयोग ना के बराबर। वो एम एस आफिस से भली प्रकार परिचित था । कम्प्यूटर अपनी टेबल पर रखवाकर उसने सभी मामलों की डिजीटल फाइल तैयार कर ली । अब उन केसों पर चुसत काम जमीन पर होने लगा उस प्रगति को दिन प्रतिदिन वो मॉनिटर करने लगा। छह महीने मे ही डेढ सौ पेंडिंग केस मे से साठ केस को
जड़ से सुलझा कर वो एसपी साहब की भी शाबाशी पा चुका था। मिलनसार और दबंग व्यवहार के समुचित मिश्रण ने उसे सहकर्मियों और पीपलगढ़ के लोगो को अपना चहेता बना दिया था। अब उसने रमुवा और कमुवा को बुलाकर उनसे मुलाकात की और उनके मामले की भी पड़ताल कर डाली । कहानी यों थी कि कमुवा की पत्नी भाग गई और फिर लौटी नहीं, इसलिए रमुवा बिना मां का बेटा था, और उसका पिता कमुवा खुद शाम पांच बजे से रात तक नशा करता था, मां तो मिली नहीं और वो कमुवा पिता ठीक- ठाक सा भी नहीं बन सका। एक दिन मजदूरी करता और नशे में दो दिन खाट पर पड़ा रहता। बस यह सब देखकर रमुवा बहुत ही लापरवाह और धूर्त हो गया था । लक्ष्मण ने उन दोनों को रोज पांच घंटे की आसान मेहनत का एक काम दिया और पहले सप्ताह रमुवा कमुवा की पूरी जासूसी भी करवा डाली । पता लगा कि दोनों बाप बेटों ने अपना पूरा फर्ज निभाया। लक्षमण ने जिस काम के लिए लक्षमण ने रोजाना पांच पांच सौ दिये थे , उससे ज्यादा मेहनत कर डाली दोनों ने नशीले पदार्थ लाने ले जाने वालों के सब नाम पते दोस्त गुप्त ठिकाने, शौक, पसंद, घर, परिवार, बिरादरी, अल्लम गल्लम सब पक्की खबर लगा लाये और लक्षमण को सब जानकारी सौंप दी । दरअसल एक अनोखा सा मनोवैज्ञानिक सहारा काम करने लगा था, जिसके बारे मे लक्ष्मण ने सोचा तक न था । इन दिनों नों बाप बेटों को लक्ष्मण मे अपना माई बाप नजर आने लगा था । जिस गांव मे कोई पूछता तक न था। और जिस थाने से दुत्कार कर भगा दिया जाता था, आज वहां पर मजदूरी देकर पूरे मान सम्मान से काम के लिए कहा जा रहा था । दोनों जानते थे कि पुलिस विभाग से कोई भी यह काम कर सकता था । लक्ष्मण जी ने गोपनीयता बनाये रखने के लिए ही उनको यह अहम जिम्मेदारी नहीं सौंपी, जरूर उनके मुकद्दर को बदलने एक फरिश्ता आ गया था और कोई अनोखी बात हो रही थी । रमुवा -कमुवा के काम की तारीफ करके उनका पूरा भुगतान करके लक्ष्मण ने उनकी पीठ भी थपथपाई और अगले सप्ताह के लिए एक दूसरा काम और दे दिया। काम था गांव के बहुत पुराने और खंडहर हो चुके,सूख गये कुंड, कूप, बावड़ी आदि के आस पास रहने वालों की गतिविधियाँ उनकी दिनचर्या का विवरण और इस बार मजदूरी रोजाना छ सौ रूपये । दोनों ने सहर्ष काम शुरू कर दिया । जैसा कि होना ही था अब काम के सुखद परिणाम भी दिखने लगे । सब खंडहर अपने खुलासे कर रहे थे । यही सुनसान इलाके अपराधी का निष्कंटक और आपातकालीन आवास थे। हुआ यों कि अब तो , हवा ही बदलने लगी , राज्य के सीमावर्ती थाने होने से गांव के जरिये शराब और अफीम की तस्करी जो अब तक सबसे ज्यादा होती थी , लगातार निगरानी से उसमे काफी कमी ला दी थी। कुछ ना कुछ नया करने के जज्बे ने लक्ष्मण को
बढते साइबर अपराध को रोकने के अध्ययन में भी रमा दिया था। अपने स्तर पर उसने थाने मे आए दो केस भी सुलझा दिये और इस तरह परिवादी को बहुत राहत दिला दी थी। थाने का निरीक्षण करने आए एसपी साहब को उसने अपनी इसमे अधिक काम करने की रूचि के बारे मे बताया तो उन्होने उसका पदस्थापन जिले के साइबर सिक्योरिटी सेल मे तुरंत ही कर दिया। वंहा मिले संसाधन और अपने पूर्व के कम्प्यूटर ज्ञान मे इजाफ़ा करते उसने बहुत कम समय मे अच्छी दक्षता हासिल कर ली। जंहा अब तक दस प्रतिशत साइबर अपराध के केस अंजाम से भटकते थे उसके आने के सालभर के भीतर ही पचास प्रतिशत से ज्यादा मामलो मे पीड़ित को राहत मिलने लगी। पांच वर्ष मे ही उसने मेहनत और लगन के बल पर राज्य स्तरीय पुरस्कार के संग पदोन्नत भी प्राप्त कर ली , और वो राज्य मुख्यालय मे साइबर सिक्योरिटी का मुख्य कर्ता धरता बना । हां रमुवा और कमुवा अब भी लक्ष्मण के साथ रहते हैं । उसकी टीम में पूरे जोश और जज्बे के साथ ।समाप्त कथा संदीप पांडे
मौलिकता का प्रमाण पत्र
मैं संदीप पांडे यह वचन देता हूँ कि संलग्न कथा पूरी तरह मौलिक , अप्रकाशित, अ्प्रसारित है इसका प्रकाशनाधिकार chhatisgqrhmitra” को सहर्ष प्रदान करता हूँ धन्यवाद संदीप पांडे अजमेर
Sandeep pande
Durgesh,
Pushker road, kotra, Ajmer
305004 Rajasthan
9414070143

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