मन के परेवा फटफटावत हे
…✍🏻
दुःख के नौटप्पा म
सुख के बदरा नई दिखय
टाठ गोठ ल धरके
ज्ञान कोनो नई सीखय
सीख-सीख के लिख
सीख भरे हे पाती मा
आँखी के आँसू पोछईया
मया के अँचरा नई दिखय
सोझ डहर के बतईया
दुलार के हाथ धोतिया नई दिखय
दिया के तरी अँधियार लुकाथे
जब बरथे दिया बाती मा
मन के परेवा फटफटावत हे
उड़य कइसे फसे ताँत के पाचीं मा
दूसर के घर फोरईया का जानय
धिमकी अंगरा ले घी चुरथे काँची मा
जरईया का बखान करहि
सुघराई गड़थे उकर आँखी मा
रोज- रोज के गडेंना
कोदो दरथे छाती मा
कोदो दरथे छाती मा…✍🏻
कवयित्री
सुनीता कुर्रे