डियर बॉलीवुड
कुछ लोग पूछते हैं कि मुझे बॉलीवुड से क्या समस्या है ?
मेरी समस्या किसी अभिनेता की मृत्यु नहीं, न ही किसी अभिनेता, निर्देशक की व्यक्तिगत राय है। मुझे किसी फ़िल्म के कंटेंट से भी समस्या नहीं है। मैं सर्जनात्मक स्वतंत्रता की प्रबल समर्थक हूं।
मेरी समस्या बहुत बड़ी नहीं, छोटी सी है। ये फ़िल्मी लोग ख़ुद को हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री कह तो देते हैं, पर मानते नहीं। हिन्दी फ़िल्म बनाते हैं, हम दर्शकों से अपेक्षा भी रखते हैं कि हम अपना समय और पैसा लगाकर थियेटर तक जाएं। लेकिन हिन्दी फ़िल्म के प्रमोशन में मात्र दो-चार शब्द ही हिन्दी में बोलते हैं। यहाँ तक कि अपने अल्प हिन्दी ज्ञान का मज़ाक उड़ाकर/ उड़वाकर गर्व का अनुभव भी करते हैं।
समझती हूं कभी-कभी कुछ ऐसी जगह इंटरव्यू होता है जहां लोग हिन्दी नहीं समझते, या अंग्रेजी की मैगज़ीन के लिए इंटरव्यू हो सकता है, तब अंग्रेजी में बोलना सही है। लेकिन हमेशा ये दिखाना कि हिन्दी बोल पाना जैसे एक मज़ाक है, वह चुभता है।
दूसरी तरफ़ साउथ फ़िल्म इंडस्ट्री है। इन लोगों को कभी फ़िल्म प्रोमोशन के दौरान देखिए। इन्हें अपनी भाषा से प्रेम तो है हीं, उसके लिए सम्मान भी है। यहां तो कुछ लोग बच्चों को ये सिखाते हैं कि अगर कोई बच्चा हिन्दी में बात करता है तो वो ‘अनकूल’ है या “डाउन मार्केट’ है।
अपने देश से बाहर निकलें और स्पैनिश या फ्रेंच फिल्मों के कलाकारों को देखें तो अपनी भाषा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता नज़र आ जाएगी। और हमारे हिन्दी वाले तो अपनी स्क्रिप्ट तक रोमन हिन्दी में माँगते हैं, क्योंकि देवनागरी पढ़ने में उन्हें कठिनाई होती है।
तो, डियर बॉलीवुड, ख़ुद के भीतर पहले ‘हिन्दी हैं हम’ को ज़िन्दा करो, फ़िर हमें अपनी फ़िल्म देखने के लिए बुलाओ। अपनी भाषा के लिए सम्मान ही तुम्हें अच्छी फिल्में बनाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
और अगर अब भी तुम अपने दंभ में ही रहे तो हमारे पास मलयालम, तमिल, तेलगू, बंगाली, अंग्रेजी, फ्रेंच, स्पैनिश आदि-आदि बहुत सारे कमाल के विकल्प हैं।
~पल्लवी पुंडीर