80 के अमिताभ
पियूष कुमार
हमसे पिछली पीढ़ी जानती है कि शोहरत क्या होती है और करिश्मा क्या होता है। यह करिश्मा तब अमिताभ बच्चन कहलाता था। चार दशक पहले हिंदी सिनेमा को ग्लोबल पहचान देने में अमिताभ बच्चन का भी बड़ा योगदान रहा है। उन्हें ‘यंग एंग्री मैन’, ‘वन मैन इंडस्ट्री’ और ‘महानायक’ की उपाधि मिली। वे काम मे अपनी पंक्चुअलिटी, समर्पण और दूसरों के प्रति सम्मानजनक व्यवहार के कारण भी जाने जाते रहे हैं। उनकी हिंदी सिनेमाई समाज के अन्य लोगों से ज्यादा समृद्ध है। उस दौर में वे अपने स्टंट दृश्य भी ज्यादातर खुद ही करते थे।
पहली फ़िल्म ‘साथ हिंदुस्तानी’ (1969) ख्वाजा अहमद अब्बास साहब की फ़िल्म थी जिसमें अमिताभ लोकनायक जेपी की तस्वीर लिए घूमते हैं। वहां से उनकी हालिया रिलीज ‘गुडबॉय’ जिसमें वे एक विधुर की भूमिका में हैं, उन्होंने अभिनय यात्रा की लंबी और विविधता पूर्ण पारी खेली है। वे एक अच्छे लर्नर हैं और समय के साथ चलना उन्हें आता है इसलिए वे आज भी स्थापित हैं। टीवी पर उन्होंने ‘केबीसी’ का अपना एक अलग ही जलवा 22 सालों से बरकरार रखा हुआ है।
सोशल मीडिया के कारण जमाना और भी लोकतांत्रिक हुआ है। यहां अब आलोचना के लिए बहुत स्पेस है। हालांकि यहां आलोचक नहीं वरन ट्रोलर्स ज्यादा हो गए हैं। ऐसे में कोई सेलिब्रिटी लम्बी उम्र पाकर एक्टिव भी रहे तो उसकी कमजोरियां सामने आनी ही हैं। बिग बी के साथ भी यह है पर आज हम उनके सिनेमाई रूप को याद करे तो बेहतर है। सिनेमा समाज का दर्पण है। एक एक्टर विषय और निर्देशन पर काम करता है। अमिताभ का सार्थक सिनेमा में भी उपयोग उनकी जवानी में किया जा सकता था, ऐसा लगता है।
लोग आमतौर पर एंग्री यंग मैन को याद करते थे पर उस दौर में भी उनकी सॉफ्ट फिल्में रही हैं जिनके गाने भी मधुर हैं। अमिताभ ने सिंगिंग भी अच्छी की है। इनके बहुआयामी व्यक्तित्व में इनकी शानदार आवाज में डायलॉग के अलावा इनकी गायकी का पक्ष मुझे बहुत आकर्षित करता है। इन गानों में देखिये – नीला आसमां सो गया (सिलसिला), जिधर देखूं तेरी तस्वीर नज़र आती है (महान), एकला चलो रे (कहानी), मेरे पास आओ मेरे दोस्तों इक किस्सा सुनाऊं (मि.नटवरलाल), ये कहाँ आ गए हम (सिलसिला), इतने बाजू इतने सर, गिन ले दुश्मन ध्यान से (मैं आज़ाद हूँ), कभी -कभी (रीमिक्स/बाली सागू), रंग बरसे भीगे चुनरवाली रंग बरसे (सिलसिला), मेरे अंगने में तुम्हारा क्या काम है (लावारिस), काव्यपाठ (मधुशाला), होरी खेले रघुवीरा अवध में (बागबान), मैं यहाँ, तू वहां (बागबान)।
यह तस्वीर फ़िल्म ‘कभी कभी’ की है जो मुझे बहुत पसंद है। इसी फिल्म में आखिर में बजता है, ‘मैं हर इक पल का शायर हूँ…’। अमिताभ ने सिद्ध किया कि वे हर इक पल के एक्टर हैं। आज उनके 80 वें जन्मदिन पर उन्हें हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई।