लघुकथा : सुकून
विजयॉ कान्त वर्मा भोपाल
अशोक जो इस बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल के सुपरिंटेंडेंट थे, उन्हें विश्वास नहीं हुआ कि रामाशय के रहते स्टोर से रेमडेसिविर इंजेक्शन चोरी हो गया वह भी सिर्फ तीन वायल। रामाशय बहुत ईमानदार था और उसकी इमानदारी और बहादुरी पर तो उसे कई बार इनाम भी मिल चुका था।
डॉ अशोक ने रामाशय से कहा-‘ देखो तुम्हारी नौकरी पर आ बनी है। मैं जानता हूं तुम बहुत ही ईमानदार हो तुम चोरी का इल्जाम अपने सर लेने को क्यों तैयार हो? यदि तुमने उन्हें लिया भी है तो वापस कर दो। हम सब इस बात को भूल जाएंगे’
रामाशय ने कहा- ‘साहब मैं कह तो रहा हूं मैंने ही लिया है। आपसे विनती है कि मेरी तनखा में से इसके पैसे काट लें।फिर भी यदि चाहें तो आप मुझे इसकी सजा भी दे सकते हैं।’
डॉ अशोक ने देखा रामाशय के चेहरे पर कोई ग्लानि, कोई घबराहट या अपराधबोध नहीं है। रामाशय के चेहरे पर एक सुकून जरूर था।
रामाशय को अनायास ही पौ फटने के पहले की बात याद हो आई, जब वह मुंह पर पानी के छींटे मार रहा था और एक फटा हाल युवक पीछे से उसके झोले में से चुपचाप चाबी निकालकर स्टोर में घुस गया था और चीजें टटोल रहा था। रामाशय ने उसे कॉलर से पकड़ा और थप्पड़ रसीद करने ही वाला था कि वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाया-‘ साहब , साहब मैं एक बहुत गरीब आदमी हूं मेरी मां कोरोना की बीमारी से सरकारी अस्पताल में भर्ती है। डॉक्टर ने कहा है रैमेडे इंजेक्शन से उसकी जान बच सकती है। मुझे नहीं मालूम यह इंजेक्शन कैसा होता है और कहां रखा है आप ही ढूंढ कर मुझे 3 बोतल दे दीजिए मैं इसे डॉक्टर को देखकर आ जाऊंगा फिर आप मुझे चाहे जो भी सजा दे दें। चाहे जेल भी भेज दें।’
रामाश्रय ने उसकी कलर छोड़ दी और ऊपर से नीचे देख कर हंसा-‘ अरे बुद्धू रैमडे नहीं रेमडेसीविर इंजेक्शन है वह। नाम भी पता नहीं और चुराने चला आया है।’
फिर रामाश्रय ने तीन रेमदेसीविर की वायल निकाल कर उसके हाथ में रखी और जेब से ₹100 का नोट भी निकालकर उसके हाथ में रखा और बोला-‘ चुपचाप निकल ले’
युवक अवाक था और रामाशय के चेहरे पर एक सुकून की लहर आ गई थी।
वही चार घंटे पहले का सुकून अब भी उसके चेहरे पर चस्पा था और डा अशोक के चेहरे पर उलझन पैदा कर रहा था।