November 15, 2024

जया मोहन की दो लघुकथाएं

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लघुकथा : अहसान

रितु ब्याह कर जब अपने परिवार में आई सभी से उसका परिचय हुआ । बाद में आई महिला ने हाथ जोड़कर प्रणाम किया। तभी सासु माँ बोली अरे जीजी यह क्या आप आशीर्वाद दीजिए प्रीति जिओ सदा सौभाग्यवती रहो। सारा घर का काम जीजी की निगरानी में होता था। बाद में रितु ने जाना यह घर की पुरानी नौकरानी है आश्चर्य हुआ नौकरानी का इतना आदर और सम्मान हमारे घर में तो कभी ऐसा नहीं होता था। घर के रीति रिवाज खान पान के बारे में जीजी प्यार से रितु को समझाती । रितु अभी मिल गई थी उनके साथ एक दिन रितु कमरे में अकेले सो रही थी तभी भाभी भाभी की आवाज से नींद खुली। हड़बड़ा कर उठी चौकी अरे ये अजीब सी शक्ल वाला कौन है ।हटो हटो।जीजी माँ जी रितु जोर से चिल्लाई।क्या हुआ कहती माँजी रितु के कमरे में पहुँची।ये ये।माँ जी हँसी डरो मत ये राजू है जीजी का बेटा।चलो राजू नीचे।नही नही हम चंदा भाभी के पास रहेंगे ।कितनी सुन्दर है। जीजी आकर राजू को मना कर नीचे ले गयी। रितु को राजू देखकर घिन रही थी एकदम बंदर जैसा चेहरा हाथ पैर पर बड़े-बड़े रोए मुँह से लार बह रही थी। रितु ने पति से पूछा अब कहा है राजू जीजी ने उसे कमरे में बंद कर दिया है ।रितु जीजी के बड़े अहसान है हमारे परिवार पर कभी राजू आ जाता है तो उसे कुछ खाने को दे दिया करो।नही नही फिर वो रोज़ आने लगेगा।
राजू जब छूट पाता रितु के पास आता।जितना राजू पास आता उतना रितु को गुस्सा आता ।एक दिन पति से बोली आप जीजी से मना कर दीजिए कि राजू यहाँ न आये । नही मैं मना नही कर सकता। मैं कल खुद ही कह दूगीं ।वो कोई हमारी रिश्तेदार नही सिर्फ कामवाली है।तड़ाक रितु के गाल पर एक चांटा पड़ा।वह आवाक रह गयी।पति अपनी गलती मानने लगे । आपने एक कामवाली के लिए मुझे मारा नहीं रहना मुझे इस घर में देखो रितु में मैं तुमसे माफी मांग रहा हूं । सब को एक शादी में जाना था सास ने कहा रितु तैयार हो जाओ । माँ जी मेरी तबीयत ठीक नहीं आप लोग जाओ आज जीजी को भी बुखार था जाते समय सास ने कहा रितु घर ठीक से बंद रखना सब चले गए रितु के मन में क्रोध उबल रहा था नहीं रहूंगी इस घर में वह उठी बाहर निकली राजू ने खिड़की से देख लिया वह रितु के पीछे पीछे भागा चंदा भाभी रुको रुको रितु अपनी धुन में चली जा रही थी सड़क में बैठे गुंडों ने उसे घेर लिया रितु को होश आया वह चिल्लाई बचाओ बचाओ अरे रानी कोई नहीं आएगा तुझे बचाने वह हंस रहे थे तभी राजू पहुंचा छोड़ो छोड़ो मेरी चंदा भाभी को अच्छा तू बचाएगा इसे उन्होंने राजू को धकेल दिया रितु को छेड़ने लगे राजू उनसे लिपट गया उनके पैरों में काट लिया अभी बताते हैं तुझे राजू दोनों को पकड़े था भागो भागो भागो भाभी रितु बदहवास भाग रही थी सामने गश्त करती पुलिस मिली उसने सारा हाल बताया तुरंत सभी चल पड़े गुंडों ने राजू को चाकू मारा था वह घायल था पर उसने गुंडों को नहीं छोड़ा था गुंडे पकड़े गए राजू को अस्पताल लाया गया बहुत खून बह गया था घर फोन किया गया सभी आ गए जीजी जार जार रो रही थी सभी उन्हें समझा रहे थे रितु भी रो रही थी वह अपराध बोध से दबी जा रही थी कितनी खराब है वह जिससे वह नफरत करती थी उसी ने जान पर खेलकर उसे बचाया रितु बार-बार प्रभु से प्रार्थना कर रही थी हे प्रभु राजू को बचा लीजिए मेरी गलती की सजा इस मासूम को मत दीजिए राजू की हालत गंभीर थी उसे खून चढ़ाना था किसी का खून नहीं मिल पा रहा था । रितु ने राजू को अपना खून दिया रात दिन उसकी सेवा की प्रभु ने रितु की विनती स्वीकार कर ली राजू को हल्का सा होश आया रितु एकदम उसके पास पहुंचकर उसका सर सहलाते हुए बोली आंखें खोलो राजू भैया देखो तुम्हारी चंदा भाभी तुम्हारे पास है रितु ने राजू की खूब सेवा की राजू जल्दी ठीक होकर आज घर आ रहा है उसके आने पर रितु ने टीका लगा आरती उतारी मेरा प्यारा देवर पति ने चुटकी ली मना कर दूं जीजी से राजू को यहां ना आने दिया करें रितु बोली कोई नहीं रोक सकता मेरे देवर को अब मेरी आंखे खुल गई सूरत नहीं सीरत अच्छी होनी चाहिए सभी मुस्कुराते हुए राजू को लेकर घर के अंदर चले गए

स्वरचित
जया मोहन

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क़वारन्टीन
कॅरोना कॅरोना कॅरोना का भय


चारों ओर व्याप्त था सभी डरे सहमे घरों में घुसे थे सरकारी मातहत बचाव कार्य में जुटे थे ।आम लोग घरों में कैद हो गए थे ।लॉक डाऊन में डॉक्टर,पुलिस,व,उच्च,अधिकारियों की दौड़ तेज़ हो गयी थी । महासंग्राम सी स्तिथि थी ।ये योद्धा थे जो महामारी राक्षस के मुँह से लोगो को बचा कर ला रहे थे।लोगो को भय इस बात का भी था कि कही कुछ बुरा हुआ तो अंत समय वह चाह कर भी अपनो से नही मिल पाएंगे देख न पाएंगे।हसरत दिल मे दफन हो जाएगी।बिछुड़ने का ज़ख्म नासूर बन जींवन भर रिसेगा।
रवि जिलाधिकारी था रात दिन शासन के निर्देशों का पालन कर रहा था रात सोते-सोते हल्की सी सिहरन हो रही थी डरने फन उठाया कहीं मुझे भी तो करो ना ने नहीं डस लिया सुबह शरीर शिथिल व मन भारी था सोचा चेकअप करा लेते हैं छोटा जिला वह वहां का सबसे बड़ा अधिकारी तहलका समझ गया डीएम साहब को करो ना हो गया 14 दिन अस्पताल में बिताना वह भी नितांत एकांत में बहुत कठिन था आज रवि स्वस्थ होकर अस्पताल से निकला तो प्रेस वाले ,अधिकारी स्वागत को फूल माला लेकर खड़े थे घर पहुंचा तो बीवी बच्चे वेलकम टू होम कह कर स्वागत कर रहे थे । बच्चों ने गुलदस्ता दिया बीवी ने टीका लगाकर आरती उतारी रवि किसी और को तलाश कर रहा था वह सीधे अंदर गया माँ के कमरे में गया देखा माँ भगवान के सामने आंचल फैला कर कह रही थी तुझे कसम है एक बेटी की माँ मेरा आंचल न सूना करना मेरे रवि को लम्बी उम्र दे ना स्वयं ही बड़बड़ा रही थी उसकी जगह मुझे बुला लेना रवि सुनकर रुक ना सका आंखों से अविरल धारा प्रवाहित थी माँ माँ मैं आ गया तेरा रवि ठीक हो कर आ गया वह माँ से छोटे बच्चों की तरह लिपट गया माफ करो मुझे मुझे 14 दिनों एकांत की भयावह पीड़ा नहीं भूलती ना ही उसे भुला पाऊंगा कैसे भूल गया माँ तुझे इन 14 दिनों में किसी से ना मिलना ना बोलना समय से रोबोट की तरह की दिनचर्या ने मुझे झकझोर दिया मुझे याद आया तू कहा करती थी रवि मुझे अकेलेपन से डर लगता है चुप रहना मुझे बीमार कर देता है याद है मुझे वह दिन जब दादी ने मेरी शैतानी पर मुझे दिन भर अकेले रहने की सजा दी तो कभी ना बोलने वाली मेरी माँ की आवाज मुखर हुई पहली बार आप ने दादी के विरुद्ध बोला था बच्चा है माँ जी अकेले में घबरा जाएगा बस इतनी सी बात पर हंगामा हो गया था दादी ने पापा से ना
जाने क्या कहा की वो आप पर बरस पड़े। पता नही क्यो हम दोनों पापा को नही भाते थे।शायद तेरे कम दहेज़ लाने का दंश उन्हें हमेशा रहता था । तू कितनी शान्त बिना कसूर सब बातें सुनती थी।अब समझ आया मेरे कारण सहती थी। पापा के न रहने पर चाचा ने हमे घर से निकाल दिया।कितना रोई गिड़गिड़ाई तू दादी चाचा के सामने पर उन्हें हम पर दया नही आयी ।तूने कितनी मुश्किलें सह कर मुझे पढ़ाया।मैं तेरे कारण ही इस ओहदे तक पहुँच पाया।मैं कैसे भूल गया तुझे।मैन बड़े घर की लड़की रीना से शादी की तूने उसे प्यार देना चाहा पर उसे तेरी नही मेरी दरकार थी।तू भी हमे खुश देखने के लिए साथ नही रहना चाहती थी पर मेरी बात न टाल सकी।रीना तुझसे नफरत करती उसे शर्म आती की उसकी सास अनपढ़ है वह बात बात पर तेरा अपमान करती मैं रीना को कहता तो कलह होती।तू मेरी शान्ति के लिए चुप हो गयी। तू गाँव जाना चाहती थी पर मेरी ममता तेरे पॉव जकड़ लेती।रीना से कहता माया को भी बुला लो खाने पर।वह तमक कर कहती क्या कमी है उन्हें कमरा,नॉकर टी,वी,है समय पर खाना नाश्ता मिल जाता है। रीना उन्हें अपनापन भी तो चाहिए बहस बढ़ी मेरा हाथ रीना पर उठ गया । तब भी आँसू पीते हुए तुमने मुझे ही समझाया था।बेटा मत कहा कर मेरी उम्र हो रही मैं जल्दी खा लेती हूँ।झूठ कह रही हो माँ।नही सच।फिर कमी क्या है मुझे सारी सुविधा तो है मेरे पास।बच्चे भी अंग्रेजी नही जानने वाली दादी के पास नही आते। माँ कैसे भूल गया कि तुझसे न तो अकेले खाया जाता है न रहा जाता है। काम मे व्यस्त हो तुझे भूल गया।इन चौदह दिनों ने जो मुझे मानसिक पीड़ा दी वह असहनीय थी।मेरे कमरे में टी वी ,किताबें।,समय पर खाना दवा सब था पर किसी का न मिलना अवसादित कर रहा था।नींद नही आती मन मे बुरे बुरे विचार आते डर जाता
माँ तू कहती है कि प्रभु जो करता अच्छा करता है मुझे भी कॅरोना किया ताकि
मुझे तेरी पीड़ा का अहसास हो।अकेलेपन का कष्ट समझ आये।इन बीते लम्हो ने मुझे नसीहत दे दी।अब कभी मैं तुझे अकेला नही रहने दूगाँ। यदि बीबी बच्चे न माने तो इन्हें छोड़ दूगाँ नॉकरी छोड़ दूगाँ तेरे साथ गाँव लौट चलूँगा।बस मुझे तेरा साथ चाहिए।तू सुन रही है न माँ।
रवि पास जाकर देखा माँ एकटक प्रभु विग्रह निहार रही है।चलो माँ इस कमरे से।हिलाने पर माँ लुढ़क गयी।प्रभु ने उनकी विनती सुन ली थी उनके बच्चे को जींवन दान दे दिया था।
रवि चीख कर गिर पड़ा माँ वो चौदह दिन का एकांत कट गया पर तू तो मुझे ज़िन्दगी भर को क़वारन्टीन कर तन्हा कर गयी।

स्वरचित

जया मोहन

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