November 21, 2024

सआदत हसन मंटो के जन्मदिन पर विशेष : अफ़साना मुझे लिखता है …

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‘ठंडा गोश्त’, ‘बू’, ‘टोबा टेक सिंह’, ‘खोल दो’ एवं ‘करामात’ जैसी बहुचर्चित कहानियों के लेखक, उर्दू के मशहूर अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को समराला पंजाब में हुआ था। मंटो की गिनती उन साहित्यकारों में की जाती है जिनकी कलम ने अपने वक़्त के आगे की ऐसी रचनाएँ लिखीं जिनकी गहराई को समझने की कोशिश दुनिया आज भी कर रही है। उन्हें पूरी तरह से समझने के लिए सौ वर्ष भी कम हैं। मंटो अपनी कहानियों में समाज में व्याप्त विद्रूपताओं व पाखण्ड को बेबाकी से उजागर करते हैं। उनकी कहानियों में सभ्यता और इंसान की पाशविक प्रवृतियों के बीच जो द्वन्द्व है उसे उघाड़ कर रख दिया है। इंसानी मनोविज्ञान का जैसा नंगा चित्रण मंटो की रचनाओं में देखने को मिलता है वैसा शायद ही कहीं देखने को मिले।

मंटो की कहानियाँ पाठक की अंतश्चेतना को झकझोरती हैं। उनकी कहानियाँ अपने अंत के साथ ही खत्म नहीं होतीं वे अपने पीछे इंसान को झकझोर देनेवाली सच्चाइयाॅं छोड़ जाती हैं । नरेन्द्र मोहन के शब्दों में, “मंटो का साहित्य बनावट, कलाबाजी , लफ्फाजी और छद्म के खिलाफ , आडंबर और पाखंड को उधेड़ने वाला है। मंटो ज़िंदगी की जुराब के धागे को एक सिरे से पकड़कर उधेड़ते रहे और उसके साथ हम उधड़ते चले गये”।

अपनी कहानियों पर लगे अश्लीलता के आरोपों के चलते मंटो को छह बार कोर्ट जाना पड़ा-तीन बार पाकिस्तान बनने से पहले और तीन बार पाकिस्तान बनने के बाद। दिलचस्प बात यह है कि एक बार भी उन पर अश्लीलता का कोई भी आरोप सिद्ध नहीं हुआ।

अपनी कहानियों पर लगे अश्लीलता के आरोपों के संबंध में मंटो अक्सर कहा करते थे- ‘अगर आपको मेरी कहनियाँ अश्लील या गंदी लगती हैं, तो जिस समाज में आप रह रहे है, वह अश्लील और गंदा है। मेरी कहनियाँ तो केवल सच दर्शाती हैं…. मुझमें जो बुराइयाॅं हैं दरअसल वो इस युग की बुराइयाॅं हैं। मेरे लिखने में कोई कमी नहीं। जिस कमी को मेरी कमी बताया जाता है वह मौजूदा व्यवस्था की कमी है। मैं हंगामा पसंद नहीं हूँ। मैं उस सभ्यता, समाज और संस्कृति की चोली क्या उतारुॅंगा जो है ही नंगी। ‘

मंटो की कहानियों की वो औरतें जो उस वक्त भले कितनी ही अजीब लगे लेकिन वे वैसी ही थीं जैसी एक औरत सिर्फ एक इंसान के तौर पर हो सकती है. मौजूदा दौर में जब अब स्त्रीवादी लेखन और विचार के कई नए आयाम सामने आ रहे हैं तब मंटो की उन औरतों की खूब याद आ रही है और इसी बहाने मंटो की भी। लेकिन इसके बावजूद मंटो की औरतों को किसी खांचे में फिट करना मुश्किल होगा।

अपनी कहानी की औरतों के बारे में मंटो खुद कहते हैं, ‘मेरे पड़ोस में अगर कोई महिला हर दिन अपने पति से मार खाती है और फिर उसके जूते साफ करती है तो मेरे दिल में उसके लिए जरा भी हमदर्दी पैदा नहीं होती। लेकिन जब मेरे पड़ोस में कोई महिला अपने पति से लड़कर और आत्महत्या की धमकी दे कर सिनेमा देखने चली जाती है और पति को दो घंटे परेशानी में देखता हूॅं तो मुझे हमदर्दी होती है.’

मंटो जिस बारीकी के साथ औरत-मर्द के रिश्ते के मनोविज्ञान को समझते थे उससे लगता था कि उनके अंदर एक मर्द के साथ एक औरत भी ज़िंदा है. उनकी कहानियां जुगुप्साएं पैदा करती हैं और अंत में एक करारा तमाचा मारती है और फिर आप पानी-पानी हो जाते हैं।

मंटो दरअसल एकमात्र ऐसे लेखक हैं जिन्होंने बदनामी शोहरत की तरह कमाई। इस संबंध में उनकी तुलना फ़्रांस के महान कथाकार मोपासां से की जा सकती है। उसी तरह सच-गुसार, उसी तरह की सच-बयानी और उसी तरह से बदनाम भी। वे जानते थे शायद कि नेकनामी की तरफ जाने वाले रास्ते की पहली सीढ़ी बदनामी ही है। उनके प्रिय दोस्त और शायर साहिर लुधियानवी के शब्दों में कहें तो मंटो यह मानते थे – बदनाम सही लेकिन गुमनाम नहीं हूॅं मैं।

अपने लेखन के बारे में एक बार मंटो ने कहा था – ‘ ‘मैं अफसाना नहीं लिखता,अफ़साना मुझे लिखता है…कभी-कभी हैरत होती है कि यह कौन है जिसने इतने अच्छे अफ़साने लिखे हैं? मैं ऐसे ही लिखता हूँ जैसे खाना खाता हूँ, गुसल करता हूँ। मुझे अफसाना लिखने की शराब की तरह लत पड़ी हुई है…’

सआदत हसन मंटो और उर्दू की सुप्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुगताई दोनों समकालीन थे। दोनों पर अश्लीलता के आरोप लगे और दोनों कई बार साथ-साथ कोर्ट गए। इस्मत ने एक बार कहा था कि उनके सारे कहानीकार दोस्त हैं केवल मंटो को छोड़कर। वे उनकी मुरीद थीं और उनसे दोस्ती करना चाहती थीं। कुछ लोग यह चाहते थे कि काश! दोनों का निकाह हो जाता। इस्मत के साथ निकाह के संबंध में एक सवाल के जवाब में मंटो ने कहा था – ‘मंटो और इस्मत की शादी अगर हो जाती तो वह हादसा वर्तमान कथा साहित्य पर एटमी असर रखता। अफसाने अ-फ़साने बन जाते, कहानियाॅं मुड़-तुड़ के पहेली बन जातीं…और ये भी मुमकिन था कि निकाहनामे पर इनके दस्तखत इनके कलम की आखिरी तहरीर होते…निकाहनामे पर ये दोनों कहानियाॅं लिखते और काजी साहब की पेशानी पर दस्तखत कर देते…’

यह विडंबना नहीं तो और क्या कि कि जो लेखक जीवन भर कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाता रहा, मुफ़लिसी में जीता रहा, समाज की नफरत झेलता रहा , समय से पहले मात्र 42 वर्ष की उम्र में जिसने दम तोड़ दिया, आज उस मंटो पर फिल्में बन रही हैं, उनके लेखों को खंगाला जा रहा है, उनके लेखों का एक संग्रह ‘व्हाई आई राइट’ नाम से अंग्रेजी में अनूदित कर प्रकाशित करवाया जा रहा है, उन पर सेमीनार और काॅन्फ्रेंस आयोजित की जा रही हैं, उनकी कहानियों पर शोध किया जा रहा है। मंटो की कहानियाँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं और मंटो आज पहले से कहीं ज्यादा लोकप्रिय हैं।

लेकिन मंटो अपनी किताब ‘गंजे फरिश्ते’ में लिखते हैं – ‘मैं ऐसे समाज पर हज़ार लानत भेजता हूॅं जहाॅं यह उसूल हो कि मरने के बाद हर शख़्स के किरदार को लॉन्ड्री में भेज दिया जाए जहाॅं से वो धुल-धुलाकर आए।’

महान अफ़सानानिगार सआदत हसन मंटो को उनके जन्मदिन पर खिराजे अकीदत! 💐 💐

डाॅ. अनिल उपाध्याय

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