28 अगस्त जन्मदिन पर : छत्तीसगढ़ के अनोखे बलिदानी गांधीवादी अनंतराम बर्छिहा
डा. परदेशीराम वर्मा
महात्मा गांधी के संदेश को देश और दुनिया में सुनागया । उनका अंदाज ही ऐसा था कि लोग सम्मोहित होकर साथ चल पड़ते थे । आजादी के बाद बी.बी.सी. के संवाददाता को उन्होंने साफ कहा कि कह दो कि गांधी अंगरेजी नहीं जानता । भाषा को लेकर गांधी जी के भीतर जो भाव था वह इस प्रभावी अंदाज में प्रगट हुआ । वे छत्तीसगढ़ भी आये । 1920 तथा 1933 में वे रायपुर आए । दुर्ग तथा धमतरी में उनकी सभा हुई ।
रायपुर जिले के प्रसिद्ध गांव चंदखुरी में 28 अगस्त 1890 में एक किसान परिवार में जन्में अनंतराम बरछिहा जी को गांधीवाद जिस तरह से प्रभावित कर गया और उसको उन्होंने जिस तरह जमीनी आधार दे दिया उसकी कहानी बहुत रोचक है । रोचक और प्रेरक भी ।
अनंतराम जी विद्या मंदिर योजना में रायपुर में तब गांधी जी के करीब थे । जब प्रथम विद्या मंदिर का शिलान्यास हुआ ।
यह 1933 का वर्ष ऐतिहासिक महत्व का वर्ष है । अस्पृश्यता निवारण का जो संदेश गांधी जी ने दिया उस संदेश पर छत्तीसगढ़ में सार्थक काम हुआ । पंडित सुन्दरलाल शर्मा जी ने हिंसा के विरोध में पशु बलि बंद करवाया । मंदिर में दलितों के प्रवेश के लिए काम किया ।
उधर छेदीलाल जी बैरिस्टर ने गुरू बाबा अगमदास जी की उपस्थिति में पंडित जी की उपस्थिति में पंडित रविशंकर शुक्ल जी के हाथों सतनामी समाज को जनेऊ और कंठी देने का ऐतिहासिक काम समारोह पूर्वक किया ।
चंदखुरी गांव भला इन सबसे कैसे अछूता रहता । चंदखुरी वह गांव है जहां माता कौशल्या का मंदिर है । माता कौशल्या छत्तीसगढ़ की बेटी मानी जाती हैं । इसीलिए श्रीराम यहां के भांजे हैं । छत्तीसगढ़ में भांजों को बुजुर्ग मामा प्रणाम करते हैं । चूंकि श्रीराम छत्तीसगढ़ के भांजे हैं इसलिए हर भांजा श्रीराम है । इसीलिए यहाँ भांजो को प्रणाम किया जाता है। यह गांव रायपुर से 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यही 28 अगस्त 1890 को जन्में आजादी के सिपाही अनंतराम बरछिहा जी ने अपने काम से छत्तीसगढ़ को गांधी जी के नजरों में विशेष सम्मान जनक दर्जा दिलाया । उन्होंने महसूस किया कि लगातार हम लोग गांधी जी की विचार धारा की बात करते हैं । किन्तु उस पर ठोस अमल नहीं कर पाते । उन्होंने गांधी वादी साथियों के बीच कहा कि हमारे गांव में ही मरदनिया अर्थात नाई कुछ जातियों के लोगों का बाल नहीं काटता । धोबी भी उनके कपड़ों को नहीं धोता । ऐसे में समता की बात व्यर्थ हो जाती है।
हम छत्तीसगढ़ के सच्चे लोग हैं हर बात में राम की सौगन्ध खाते हैं । गुरू बाबा घासीदास ने आदमी और आदमी के बीच की दूरी को हटाने का मंत्र दिया । सबको एक रहने का संदेश देकर उन्होंने कहा है कि मनखे मनखे ल मान सगा भाई के समान । गांधी जी भी छुवाछूत को गलत बताते हैं । सहभोज और समानता के लिए काम करने की प्रेरणा देते है । हम अपने गांव में ही समानता की शुरूवात करेगें ।
मैं अपने कुवें को सबके लिए खोलूंगा । सभी जाति के लोग उसका पानी पियेंगे । मैं उन भाइयों के कपड़े धो दूंगा । जिनको अनुसूचित जाति का मानकर हमारे धोबी भाई महत्व नहीं देते । मैं उनके बाल काटूंगा मरदनिया जिनके बाल नहीं काटते हैं।
गाँव वाले उनके इस संकल्प से चकित रह गए । लेकिन अनंतराम जी ने अपना वचन निभाया उन्होेंने अनुसूचित समाज के भाइयों के पास जाकर नाई का काम स्वयं किया । उनके कपड़ों को भी उन्होंने अपने हाथ से धोया ।
वे कुरमी समाज के व्यक्ति थे । पुरातन पंथी कुरमी नेताओं ने उनका सामाजिक बहिष्कार कर दिया । बरछिहा जी नई सोच के व्यक्ति थे । वे गांधीवादी के रूप में सम्मानित थे । नई पीढ़ी ने उनका साथ दिया । किन्तु उन्हें समाज से जोड़ नहीं सके । कट्टरपंथियों ने जिद नहीं छोड़ी । डॉ. खूबचंद बघेल बर्छिहा जी से बहुत प्रभावित थे । उन्होंने एक अनोखा रास्ता निकाला । ऊंच नीच भेदभाव के खिलाफ एक बड़ा प्रभावी नाटक ऊंच-नीच नाम से ही उन्होंने लिखा । उसकी मंचीय प्रस्तुति के लिए लगातार कलाकारों से अभ्यास करवाया ।
जब नाटक तैयार हो गया तो डा. खूबचंद बघेल नाटक मंडली को लेकर प्रदर्शन के लिए चंदखुरी गए ।
वे जानते थे कि नाटक का प्रभाव जरूर पड़ेगा । डॉ. खूबचंद बघेल चिंतक व्यक्ति थे । वे कूर्मि समाज को भी खूब जानते थे । वे स्वयं नवाचार के लिए सदा आगे आते थे । कालान्तर में उन्होंने अखिल भारतीय कूर्मि समाज का नेतृत्व भी किया । समाज के पुरातन पंथी लोग जड़ता का दामन थामें नए विचारों के लोगों को प्रताड़ित कर देते थे । उन्हें समाज से बहिष्कृत कर पाचों पवनी बंद कर देते थे । गाँव में नाई, धोबी, लोहार, पंडित और मेहर की सेवाएँ बंद करते ही परिवार पर आफत आ जाती थी ।
लेकिन रास्ता डॉ. खूबचंद बघेल ने दूसरा निकाला । वे समझाने गए तो नाटक लेकर । डॉ. खूबचंद बघेल ने ही कालान्तर में पृथक छत्तीसगढ़ का सपनादेखा वे छत्तीसगढ़ भ्रातृसंघ गठन कर इस सपने को साकार करने के लिए साहित्यकार, कलाकार को एक मंच पर लाए । शुरू से ही वे अध्ययनशील थे । वे पढ़ने लिखने वाली महान पीढ़ी के राजनीतिज्ञ थे । जब प्रेमचंद जी 1933 में गोदान जैसे कालजयी उपन्यास पर काम कर रहे थे तब डा. खूबचंद बघेल ने गांधीवाद को जमीनी आधार देने के लिए प्रतिबद्ध अनंतराम जी बर्छिहा के गांव में ऊंच नीच नाटक लेकर नया इतिहास रचने के लिए पहुंचे । वे अनोखे व्यक्ति थे । उन्हें उर्दू अंगरेजी, हिन्दी और छत्तीसगढ़ी भाषाएँ सिद्ध थी । उनकी संकल्पशीलता हर काम में देखते ही बनती थी । उनका परिवार भी ऐसा परिवार रहा जिनके पांच सदस्य देश की आजादी के लिए जेल गये । डॉ. खूबचंद बघेल की संकल्पशीलता का यह भी प्रमाण है कि जब कोई नहीं मानता था कि छत्तीसगढ़ राज्य इस तरह बन जाएगा तब वे इसे साकार करने के लिए अपनी राजनैतिक साख को दांव पर लगाकर सीना तानकर खड़े हो गए । यहाँ उनके काम पर विचार करते हुए शायर वसीम की पंक्तियाँ याद हो आती है ।
तेज आंधियों पे अख्तियार दे
या वह चिराग दे जिसे बुझने का डर न हो ।
वे ऊंच नीच नाटक लेकर चंदखुरी गए । दर्शक थे चारो ओर के गांवों के लोग । पंडित रविशंकर शुक्ल, दुधाधारी मठ के महंत लक्ष्मीनारायण दास जी एवं प्रमुख नेता भी वहाँ पहुँचे ।
इस नाटक में ग्राम लिमतरा के दो कलाकार भी मंच पर उतरे । श्यामलाल टिकरिहा और तेजराम मढ़रिया दोनों ही शिक्षक थे । दोनों रायपुर में रहते थे । दोनों ही डॉ. खूबचंद बघेल के सहयोगी सदा रहे ।
पूरा नाटक बेहद प्रभावी था । उसमें यही संदेश है कि गुरू बाबा घासीदास ने जो कहा है कि
मनखे मनखे ल मान
सगा भाई के समान
यही कथन गांधी जी का है ।
संत कबीर भी आडंबर भेद और ऊंच नीच के खिलाफ हैं । हमारा छत्तीसगढ़ समता की धरती है । यहां भला कैसा भेद ।
यह संदेश पूरे प्रभाव के सब लोगों तक पहुंचा नाटक समाप्त हुआ तो कुरमी समाज के कट्टरपंथी नेता पंडित रविशंकर शुक्ल जी तथा महंत लक्ष्मीनारायण जी को प्रणाम करने आए ।
उन्होंने डॉ. खूबचंद के नाटक के लिए उन्हे बधाई देते हुए वहीं संकल्प लिया कि हम अनंतराम बर्छिहा जी को अपने समाज में ससम्मान मिलाते हैं । सदा उदारता के लिए हम भी काम करेगें । कोई ऊंच नीच नहीं है सब बराबर हैं । यह संदेश हमें मिला है ।
अनंतराम बर्छिहा जी की जय जयकार हुई । वे फिर नई शक्ति के साथ देश की आजादी के लिए काम करने लगे । वे भी ऐसे परिवार के मुखिया थे जिनके घर में छोटे भाई सुखराम बर्छिहा, उनके बड़े बेटे वीर सिंह को भी गिरफ्तारी हुई । इनके साथ नन्हें लाल वर्मा, गनपतराव मरेठा, हजारी लाल वर्मा, नाथूराम साहू और हीरालाल साहू भी जेल गए ।
1923 के झंडा सत्याग्रह, 1930 का बड़ा आन्दोलन 1942 का आन्दोलन चला तब चंदखुरी आजादी के लिए लड़ने वालों का गांव बन गया । गांव की साफ-सफाई सहभोज, एकता, स्वावलंबन का पाठ भी यहाँ नई पीढ़ी को पढ़ाया जाता था ।
बर्छिहा जी ने आजादी का हर दौर डर तब भी देखा । वे 22 अगस्त 1952 को इस लोक से विदा हुए । हमारे ऐसे बलिदानी और दूरदृष्टि सम्पन्न पुरखों ने जो संस्कार दिया उसी की रोशनी में हमारा छत्तीसगढ़ एकता, समता, समानता का गढ़ बन सका है ।
देश के हर प्रान्त के लोग इसे आदर्श प्रान्त मानकर यथा संभव यहीं आसरा पाना चाहते हैं । यह अनोखा प्रान्त सबको भाता है । यह जो नारा है गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ यह कागजी नारा नहीं हमारे वीर पुरखों द्वारा लहू में कलम डुबोकर लिखा गया सच्चा नारा है ।
डॉ. परदेशीराम वर्मा
एल.आई.जी. 18
आमदी नगर, भिलाई 490009 छत्तीसगढ़
7974817580, 9827993494