November 23, 2024

गांधीजी इंडिया के समावेशी सोच के प्रतीक हैं- गोपेंद्र

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आज भारतवर्ष के लोग जिन लोगों के अविश्वसनीय योगदान की बदौलत आजादी की खुली फिजा में विचरण कर रहे हैं उन सब में अग्रणी नाम मोहन दास करमचंद गांधी का है ।

रामधारी सिंह दिनकर ने लिखा है-
तेरा विराट यह रूप
कल्पना पट पर नहीं समता है।
कितना कुछ कहूं मगर
कहने को शेष रह जाता है।

भारत की पहचान सत्य और अहिंसा है-

दुनिया में अपनी जान देकर भी वसूलों पर कायम रहने वालों लोगों की जब कभी भी बात होगी तो उसमें सबसे अग्रणी नाम हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का होगा।सत्य और अहिंसा के जिस सिद्धांत बदौलत महात्मा गांधी ने भारत को स्वतंत्रता की जो सौगात दी वह दुनिया के सामने नजीर है। गांधीजी सत्य और अहिंसा के सिद्धांत महात्मा गौतम बुद्ध के विचारधारा से अपनाये थे और आजीवन उस पर बने रहे।उन्होंने महात्मा गौतम बुद्ध के सिद्धांत को पुनः दुनिया के सामने जीवंत बना दिया।वे दुनिया को बताने में भी सफल रहे कि चाहे कितनी भी सदियां बीत जाए भारत की पहचान सत्य और अहिंसा ही रहेगा।

भविष्य की पीढ़ियों को विश्वास करने में मुश्किल होगा-

रामधारी सिंह दिनकर से बहुत पहले महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी के बारे में दो अक्टूबर, 1944 को महात्मा गांधी के 75वें जन्मदिवस पर आइंस्टीन ने अपने संदेश में लिखा- ‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था.’ यह वाक्य गांधी को जानने-समझने वाली कई पीढ़ियों के लिए एक सूत्रवाक्य ही बन गया और आज भी इसे विभिन्न अवसरों पर उद्धृत किया जाता है।
जब 30 जनवरी, 1948 को जब गांधीजी की हत्या देश के ही कुछ अत्यातायी तत्वों के द्वारा कर दी गई।पूरी दुनिया में शोक की लहर फैल गई, तो आइंस्टीन भी विचलित हुए बिना नहीं रहे थे। 11 फरवरी, 1948 को वाशिंगटन में आयोजित एक स्मृति सभा को भेजे अपने संदेश में आइंस्टीन ने कहा, ‘वे सभी लोग जो मानव जाति के बेहतर भविष्य के लिए चिंतित हैं, वे गांधी की दुखद मृत्यु से अवश्य ही बहुत अधिक विचलित हुए होंगे। अपने ही सिद्धांत यानी अहिंसा के सिद्धांत का शिकार होकर उनकी मृत्यु हुई। उनकी मृत्यु इसलिए हुई कि देश में फैली अव्यवस्था और अशांति के दौर में भी उन्होंने किसी भी तरह की निजी हथियारबंद सुरक्षा लेने से इनकार कर दिया। यह उनका दृढ़ विश्वास था कि बल का प्रयोग अपने आप में एक बुराई है, और जो लोग पूर्ण शांति के लिए प्रयास करते हैं, उन्हें इसका त्याग करना ही चाहिए। अपनी पूरी जिंदगी उन्होंने अपने इसी विश्वास को समर्पित कर दी और अपने दिल और मन में इसी विश्वास को धारण कर उन्होंने एक महान राष्ट्र को उसकी मुक्ति के मुकाम तक पहुंचाया। उन्होंने करके दिखाया कि लोगों की निष्ठा सिर्फ राजनीतिक धोखाधड़ी और धोखेबाजी के धूर्ततापूर्ण खेल से नहीं जीती जा सकती है, बल्कि वह नैतिक रूप से उत्कृष्ट जीवन का जीवंत उदाहरण बनकर भी हासिल की जा सकती है।’

गांधी जी के बारे में आइंस्टीन का कहना था, ‘उन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी मानवीय संबंधों की उस उच्चस्तरीय संकल्पना का प्रतिनिधित्व किया जिसे हासिल करने की कामना हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर अवश्य ही करनी चाहिए।’

उन्होंने आगे लिखा, ‘पूरी दुनिया में गांधी के प्रति जो श्रद्धा रखी गई, वह अधिकतर हमारे अवचेतन में दबी इसी स्वीकारोक्ति पर आधारित थी कि नैतिक पतन के हमारे युग में वे अकेले ऐसे स्टेट्समैन थे, जिन्होंने राजनीतिक क्षेत्र में भी मानवीय संबंधों की उस उच्चस्तरीय संकल्पना का प्रतिनिधित्व किया जिसे हासिल करने की कामना हमें अपनी पूरी शक्ति लगाकर अवश्य ही करनी चाहिए। हमें यह कठिन सबक सीखना ही चाहिए कि मानव जाति का भविष्य सहनीय केवल तभी होगा, जब अन्य सभी मामलों की तरह ही वैश्विक मामलों में भी हमारा कार्य न्याय और कानून पर आधारित होगा, न कि ताकत के खुले आतंक पर, जैसा कि अभी तक सचमुच रहा है।’

गांधीजी एक सम्पूर्ण विचारधारा हैं-

दक्षिण अफ्रीका के गांधी के रूप में जाने जाने वाले और दक्षिण अफ्रीका के प्रथम अश्वेत राष्ट्रपति रहे नेल्सन मंडेला अक्सर महात्मा गांधी को उनके सबसे महान शिक्षकों में से एक के रूप में उद्धृत किया करते थे।उन्होंने कहा है कि गांधी के विचारों ने दक्षिण अफ्रीका के परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।गांधी जी की शिक्षा की बदौलत ही अफ्रीका से रंगभेद को दूर किया गया।गांधी अपने आप में एक विचारधारा थे,आज भी गांधी युवा पीढ़ियों के लिए प्रेरणा श्रोत हैं और आने वाले समय में भी बने रहेंगे।

गांधी के विचारों ने दुनिया भर के लोगों को न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि करुणा, सहिष्णुता और शांति के दृष्टिकोण से भारत और दुनिया को बदलने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज भी भारत में लोकतांत्रिक व्यवस्था कायम है तो उसके पीछे महात्मा गांधी का योगदान है।उन्होंने कहा था जल्दी बाजी में हासिल की गई स्वतंत्रता अराजकता की भेंट चढ़ जाती है।

गांधीजी अपने जीवन पर मंडराते खतरों को दरकिनार करते हुए मानवता और अच्छाई के आजीवन उपासक रहे, सर्वधर्म समभाव का पाठ पढ़ाते रहे।गांधी की हत्या का समाचार सुनकर जार्ज बर्नार्ड शॉ ने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा था कि
‘इससे यह बात साबित होती है कि इस दुनिया में ज़्यादा अच्छा होना कितना जोखिमभरा है।’
“It shows how dangerous it is to be too good.”

गांधी को मृत्यु की खिड़की से भी झांक कर देखा जाना चाहिए-
गांधी जी को सिर्फ जीवन की खिड़की से ही नहीं बल्कि मृत्यु की खिड़की से भी झांक कर देखने की कोशिश की जानी चाहिए।उन्होंने जीवन भर मौत का सामना किया। यह जानते हुए भी की मौत बिल्कुल नजदीक है गांधी जी को किसी ने कभी भी असहज होते हुए, चिंतित होते हुए और नींद नहीं आ सकते की अवस्था तक जाते हुए नहीं देखा।
गांधी जी को 30 जनवरी 1948 को तीन गोलियां लगी और उनकी इहलीला समाप्त हो गई। इससे पहले 5 बार उनको मारने की कोशिश की गई पर गांधी जी ने कभी कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की।गांधी जी उन पर बिल्कुल चर्चा नहीं करते और सहज भाव से जीवन पथ पर आगे बढ़ जाते हैं।

दुनिया के साहसी राजनेताओं में अग्रणी हैं गांधी-

अनरेस्ट हेमिंग्वे का एक बहुत ही मशहूर कथन है कि – “घोर विपदा समय अगर आप सहज रह सकें तो उसी को साहस कहते हैं।”गांधी जी में साहस कूट-कूट कर भरी हुई थी । तभी तो उन्होंने सत्य और अहिंसा के हथियार के बदौलत दुनिया में जिस राष्ट्र का सूर्य अस्त नहीं होता था उसे भारत से खुले हाथों खदेड़ डाला।
दरअसल गांधी जी का संपूर्ण जीवन एक अहिंसक व्यक्तित्व के निर्माण की साधना है।

गांधी जी को मारने वाले मारकर भी हार गए-

गांधी जी को मार कर उन्हें खत्म करने की मनसूबा पालने वाले लोगों का सपना अधूरा तब रह गया जब गांधीजी की देह का अंत करने के बावजूद गांधीवाद को जनभावना बनने से रोक नहीं सके। वे लोग चाहते थे कि गांधी को सदा सदा के लिए खत्म कर देंगे लेकिन यहीं वे गलती कर बैठे और उन्होंने जाने अनजाने अपनी हर की पटकथा खुद लिख ली। गांधी जी के हत्यारे और उनके अनुयाई हमेशा हमेशा के लिए दुनिया की नजर में घृणा के पात्र बन गए। वे लोग यह समझने में असफल रहे कि देह का अंत कर देने से विचारों का अंत नहीं हो जाता। गाँधी की विचारधारा आज भी जनमानस को प्रेरित कर रही है और आगे भी करती रहेगी। गांधीजी तो मरने के बाद भी वैश्विक पटल पर छा गए पर उनसे नफरत करने वाले एक दायरे में सिमट बैठे हैं। महात्मा गांधी के हत्यारों को भला कहां यह मालूम था कि आने वाले समय में दुनिया के 150 से अधिक देश उनके नाम पर डाक टिकट जारी करेंगे। जिनकी भारत सहित 84 देशों में 110 से अधिक मूर्तियां लगेंगी। जिस ब्रिटेन के खिलाफ वह जिंदगी भर लड़े, वहां भी उनकी प्रतिमाएं लगेगी।गांधी का कद किसी भौगोलिक सीमा का मोहताज नहीं।दुनिया के किसी भी कोने में चले जाएं गांधीवाद मुस्कराता मिलेगा।

भारत की वैश्विक पहचान बुद्ध और गांधी-

आप भारत के बाहर दुनिया के किसी कोने में जाएं, वहां वार्तालाप की शुरुआत बुद्ध और गांधी से ही होती है। दुनिया वाले भारतीय लोगों में बुद्ध और गांधी को ढूंढते नजर आते हैं।
दुनिया में आज भी भारत की पहचान महात्मा गौतम बुद्ध और महात्मा गांधी से ही हैं। दुनिया सब कुछ भूल सकती है पर गांधीज्म और बौद्धिज्म को भूलना संभव नहीं।गांधीजी की लाठी से नफरती पिस्तौल हर बार हारता रहेगा।

गांधीजी हमेशा जनमानस में बने रहेंगे-

गांधी- दर्शन की बुनियाद सत्य और अहिंसा के सिद्धांत पर टिकी हुई है। दुनिया के तमाम विचार, धर्म, दर्शन, ‘सत्य’ के नाम पर ही उभर कर सामने आये। लेकिन अपने ‘सत्य’ के नाम पर दूसरों के ‘सत्य’ का कितना हनन हुआ, कितना खून-खराबा हुआ है, मानव–सभ्यता इसकी गवाह है।
गांधी जी द्वारा जो प्रयोग दबे कुचले लोगों के कल्याण के लिए किया गया वे बातें हमेशा प्रसांगिक रहेंगी। जब भी किसी पीड़ित व्यक्ति के लिए कोई काम करने को आगे बढ़ेगा तो उसके लिए सबसे सुगम रास्ता गांधीवादी विचारधारा ही होगा। क्योंकि गांधीवाद हमेशा हमेशा के लिए जनमानस में अपना पैठ बना लिया है।
गांधीजी के लिए सत्य ही धर्म था।सत्य पर किसी धर्म विशेष का एकाधिकार नहीं है। गांधी सत्य की बहुलता के सच्चे समर्थक थे। अपना सत्य मानते थे पर दूसरों के सत्य के प्रति भी संवेदनशील एवं उदार रूख अख्तियार करते थे।
आज सत्ता पोषित लोगों के संरक्षण में पल-बढ़ रही असहिष्णुता देश में शान्ति और सद्भाव क़ायम रखने की राह में दीवार बन गई है। धर्म, संस्कृति और राष्ट्रवाद का चोला ओढ़कर साम्प्रदायिक ताकतें देश को नफ़रत की आग में झोंकने का प्रपंच रच रही हैं। धर्म-मज़हब, जाति-वर्ग के अस्मिता आदि के नाम पर नफ़रत की अफ़ीम चटाकर युवाओं को मज़हबी और जातीय उन्माद के भंवर में धकेल कर वोट बटोरने की चाल देश के लिए महंगी साबित होने वाली है।

छद्म राष्ट्रभक्ति देश के लिए खतरनाक है:-

सैमुअल जॉनसन ने बिल्कुल सही लिखा है कि छद्म राष्ट्रभक्ति देश और समाज तोड़ने वाले लुच्चे- लफंगों की अंतिम शरणस्थली होती है। जब लोकतंत्र की हत्या की साज़िश रची जा रही होती है तब राष्ट्रवाद के ढोल-नगाड़े जोर -शोर के बीच उन्माद पैदा किया जाता है। फिर उसे उन्माद के धधकते ज्वाले में युवा पीढ़ी के भविष्य को झोंक दिया जाता है। लोक के दिमाग को विचारशून्य करने के लिए धर्म- मज़हब, सांस्कृतिक एवं धार्मिक राष्ट्रवाद ,जातीय अस्मिता आदि की अफ़ीम चाटने की लत लगवा दी जाती है। ताकि लोग अपनी चेतना भूल जाएं और उनके उद्देश्य पूर्ति के लिए खुद रास्ता तैयार कर दें। समाज में वैमनस्य पैदा करने करने वाली भीड़ के हाथों में राष्ट्रीय झंडा व मजहबी पताका थमा दी जाती है।
आज देश और समाज के बीच नफरत और उन्माद के बीज बो कर, मध्ययुगीन सोच और अंध युग की ओर देश को धकेलना की कोशिश किया जा रहा है। देश का विकास देश को किसी पंथ/पार्टी/ जाति से मुक्त करने से नही, बल्कि देश को बहुरंगी गंगा यमुनी संस्कृति से युक्त रखते हुए सबका विश्वास जीतने से होगा। देश को भड़काऊ नारों से नहीं प्रगतिशील विचारों से आगे बढ़ाया जा सकता है। भारत उन्मादी नारे के बदौलत नहीं बल्कि अपने उच्च विचार आदर्शों के बदौलत दुनिया में विश्व गुरु का दर्जा प्राप्त कर सकता है।

गांधी वंचितों-पीड़ितों के लिए प्रेरणा हैं-

गांधीवादी सिद्धान्तों से न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया में अत्याचार, अन्याय और उत्पीड़न के शिकार लोगों को अपने अधिकारों को प्राप्त करने की प्रेरणा मिली। मार्टिन लूथर किंग, नेल्सन मंडेला और आंग सांग सू की जैसे महारथियों ने अपने-अपने देशों में नागरिक-अधिकार आंदोलन के दौरान गांधी जी द्वारा प्रतिपादित सुमार्गों का अनुसरण किया।
मार्टिन लूथर किंग ने गांधीजी के सत्य अहिंसा के सिद्धांत की पुरजोर वक़ालत करते हुए अपने अंतिम भाषण में कहा था कि आज हम जिस मोड़ पर पहुंच चुके हैं उस मोड़ पर दुनिया को अब अहिंसा और सर्वनाश के बीच में से एक को चुनना होगा।

गांधी ऐसे राजनीतिक व्यक्ति थे जिन्होंने उच्च नैतिक मूल्यों की राजनीति की। एक लंबे अहिंसक आंदोलन के जरिये देश को उपनिवेशवाद से मुक्त कराने की लड़ाई लड़ी और जीती।
मनसा- वाचा- कर्मणा गांधीवादी होना तकरीबन असंभव काम है। विश्व फलक पर ऐसा कोई नजर नहीं आता जो ईमानदारी से कह सके कि ‘मेरा जीवन ही मेरा संदेश है।’ अब तक सिर्फ एक ही व्यक्ति गांधीवादी होने के सारे मानकों पर खरा उतरा है, जिनका नाम था ‘महात्मा गांधी’।

गांधी भारतीय जनमानस के समावेशी सोच का नाम है, जिसे लाख जतन करके भी मिटाया नहीं जा सकता। गांधी सत्य,अहिंसा और सादगी के विचारधारा के अग्रगामी पुरुष हैं। गांधी जी के विचार लोगों के चेतन-अवचेतन मन में हमेशा जिंदा रहता है। इसलिए गांधी आज भी जिंदा हैं। गांधी कभी मर नहीं सकते क्योंकि गांधी एक विचार है, एक विचारधारा है और विचाधारा कभी मरती नहीं। शांति और सद्भाव का संदेश देने वाली विचारधारा सदैव सतत् बहती रहती है। गांधी जी कल भी प्रासंगिक थे, आज भी हैं और आगे रहेंगे। भारतीय इतिहास को गांधी के बिना कभी पूरा नहीं माना जाएगा। गांधीवादी विचारधारा को चाहे लाख मिटाने की कोशिश की जाए यह और दुगनी रफ़्तार से फैलती जाएगी।

गोपेंद्र कु सिन्हा ‘गौतम’
सामाजिक और राजनीतिक चिंतक
औरंगाबाद बिहार

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