जानवर / एनिमल के बहाने
दबंग फ़िल्म का एक बहुत ही चर्चित डायलॉग है “प्यार से दे रहा हूँ रख लो, थप्पड़ मारकर भी दे सकता था”, यूँ तो सुनने में यह बेसिरपैर का तो लगता ही हैं कटु भी कम नहीं।
कोई हमसे ऐसा कहे तो?
हम तुरंत ही कह देंगे “क्या ही बत्तमीज़ आदमी है”, वाक़ई ऐसी भाषा बत्तीमीज़ी ही मानी जाएगी हालाँकि फ़िल्म में इस डायलॉग का फ़िल्मांकन कुछ ख़ास नहीं, फ़िल्म के मुख्य किरदार के मिज़ाज से मेल खाता इस डायलॉग का फ़िल्मांकन जैसे-तैसे जैसा लगता है, फ़िल्मकार इत्मीनान से हैं, डायलॉग इतना असरदार है कि दृश्य महत्व नहीं रखता, ख़ैर इस संवाद में नायक यही कहना चाहता हैं कि ” यूँ तो मैं बहुत सिरफिरा हूँ किन्तु तुम्हारी बहुत कद्र करता हूँ”, एक दफ़ा मैंने ही लिखा था “सम्मान विहीन प्रेम, नमक बिना फीका-फीका बेस्वाद”, जबकि आजकल ऐसा प्रेम ही पूजा जा रहा है । मैं इसे मात्र रनबीर कपूर के प्रति आकर्षण नहीं मानती यदि ऐसा होता तो उनकी सभी फ़िल्में इतनी ही सफल होती जितनी एनिमल !
बहुत वर्षों तक पुरुष का स्त्री के लिए प्रेम मात्र दैहिक रहा, दैहिक प्रेम दरअसल प्रेम हैं भी नहीं “दैहिक ज़रूरत” है, पुरुष अपनी ज़रूरत के लिए प्रेम का स्वांग करता रहा है, स्त्री की इक्षा, अनिक्षा, संतुष्टि को नज़रअंदाज़ करते हुए या कि महत्वहीन जानते हुए मात्र अपने सुख का सोचा, स्वयं स्त्रियाँ भी अपने अस्तित्व की महत्ता से अनजान, सुख के स्वाद से वंचित अपनी देह, मन को पुरुषों का साधन समझती रही। किंतु बदलते वक़्त के साथ अपने अस्तित्व, अपनी बौद्धिकता का संज्ञान लेते हुए स्त्रियाँ बराबरी की बात कहने लगी, सुदूर आकाश साफ़ दिखाई भी देने लगा था, पितृसत्ता के बादल छँटने ही लगे थे कि “कबीर सिंह” सफलता के सारे रिकॉर्ड्स तोड़ देता है, लीजिए हम जहां से चले थे वहीं आ गिरे।
कबीर सिंह नहीं पूछता है तुम क्या चाहती हो? वह अपने मन की करता है। आग्रह नहीं करता, आदेश देता है। वह चुलबुल पांडेय के जैसे थप्पड़ की जगह प्यार नहीं चुनता, वह थप्पड़ और प्यार एक साथ चुनता है, जिस तरह प्यार उसका अधिकार है उसी तरह थप्पड़ भी उसका अधिकार है । उसकी देह उसका मन उसके अस्तित्व पर उसका अधिकार है, वह उस स्त्री का मालिक है जिससे प्रेम करता है, वह प्रेम चाहती है या नहीं चाहती” कबीर सिंह यह नहीं जानना चाहता “तुम्हारा जन्म कुछ चाहने के लिए नहीं वरन् मेरी चाहत पूरा करने के लिए हुआ है, वह चाहे प्यार से हो या थप्पड़ से हो, होगा वही जो चाहता मैं हूँ” और डॉक्टरी पढ़ती उस लड़की का वर्ताव ठीक वैसा ही था जैसा फ़िल्म के बाहर कबीर सिंह की दीवानी हुई मतांध लड़कियों की, सारे विमर्श सोशल मीडिया पर ही धरे रह गए और अब एनिमल आ गया, कबीर सिंह से कहीं बढ़कर जानवर, फिर से उसी समय में लौटा चलने के लिए जहां स्त्री मात्र एक समान है, पुरुष जैसा चाहे उसके साथ बरते, मन किया थप्पड़ मार दे, मन करे चूम ले मानो स्त्री का कोई मन न हो, उसके मन की कोई चाह न हो, वह क्या चाहती है इस बात का कोई मतलब ही न हो, मतलब का कोई महत्व नहीं। प्रेम और मालिकपन में अंतर होता है, पुरुष स्त्री का स्वामी बनना चाहता है, सुरक्षा देने की भावना भी व्हाई से आती है, अपनी मिल्कियत की रक्षा करना वह अपना धर्म साझता है। पौरुष धर्म!
एनिमल में उत्कृष्ट अभिनय का प्रदर्शन करने वाले रनबीर कपूर की बात करें तो पिता का जीन से प्रभावित स्त्रियों को दोयम दर्जे का समझते हैं, लेकिन यह बात वह खुलकर कह नहीं सकते क्योंकि अच्छा बने रहने का खेल भी खेलना है। रनबीर कपूर ने पूर्व प्रेमिकाओं का पल्ला झाड़ लिया क्योंकि वे अस्तित्व के प्रति सजग थी, उन्हें अपने होने का गुमान था, आलिया भट्ट को चुनने का मुख्य कारण था उसका बाल बुद्धि होना, एक तो बाल बुद्धि उसपर वाक़ई में तरुणी, बय में दहाई का अंतर ऐसे में उसपर हावी होना प्रभावी होना सरल था वनिस्बत पूर्व प्रेमिकाओं के। नीतू सिंह को भी ऐसी ही बहू चाहिए थी जो उनके प्रभाव में सकुचाई रहे, कमतर रहे हालाँकि ऋषि कपूर के बाद नीतू सिंह जी से आज़ादी की ख़ुशी संभले नहीं संभल रही रही है, वह स्प्रिंग हो गई, जितनी दबाई गईं हैं उतनी ही तरंग रही हैं, बेटे के लिए उन्हें संगिनी तो चाहिए थी लेकिन जीवन में प्रथम स्थान नहीं देना था अतः आलिया भट्ट उपयुक्त चुनी गई हालाँकि वक़्त बताएगा उनका आकलन कितना सही रहा!
कुछ दिन पहले एक रील देखा था, आलिया -रनबीर साथ, एक फोटोग्राफर ने कहा आलिया मैम आप बहुत सुंदर लग रही हैं एक फोटो प्लीज़, रनबीर ने फ़ौरन ही कहा इनसे अधिक सुंदर तो मैं हूँ, सूपेरियारिटी काम्प्लेक्स पत्रकार के समक्ष भी ना संभला, दूसरा एक रील कल देख रही थी जिसमे सामने से आलिया चली आ रही हैं, साथ में क्ली और हैं मैं नहीं पहचानती, पीछे से नीतू सिंह और सुपुत्र बाहों में बाहें डाले चले आ रहे हैं। आलिया की चाल कॉंफिडेंट हैं ल्कें चेहरे पर सिकन हैं, एक मायूसी आँखों में हैं, उसे कुछ तो खटक रहा है, जबकि पीछे नीतू सिंह नवयुवती सी मदमस्त चल रही हैं, उनके हाव भाव आज़ाद स्त्री के हैं जो अभी अभी ग़ुलामी से मुक्त हुई हैं, जो विजेता है और बेटा जीती हुई ट्रॉफी। थोड़ी देर बाद यानी कुछ सेकंड बाद आलिया साथ चल रही यू दूसरी लड़की का हाथ थाम लेती हैं और आलिया के भीतर चलता उथल पुथल सुस्पष्ट हो आता है, एक छोटी सी क्लिप और याद हो आई जिसमें आलिया का दुपट्टा फ़र्श बुहार रहा होता है और रनबीर कपूर और पैर से उठाने या सँभालने की कोशिश कर रहे हैं अब बताइए ऐसा जानवर का किरदार उसने कितनी सरलता से निभाया होगा, अपना किरदार निभाने में कैसी मशक़्क़त? !
पिछले कई वर्षों से मैं बॉलीवुड और अभिनेता-अभिनेत्रियों के प्रति गहरी उदासीनता से भर गई हूँ, अधिकतर यूरोपियन फ़िल्में देखा करती हूँ, कभी गलती से कोई मसाला फ़िल्म देख लूँ तो और विरक्त होती जाती हूँ !
– प्रियंका ओम