लोकप्रिय शायर दरवेश भारती को श्रद्धांजलि के साथ, उन्हीं की दो ग़ज़लें
मौसम बदल गया है तो तू भी बदल के देख / दरवेश भारती
दरवेश भारती »
मौसम बदल गया है तो तू भी बदल के देख
क़ुदरत का है उसूल ये साथ इसके चल के देख
रुस्वाइयाँ मिली हैं, ज़लालत ही पायी है
अब लड़खड़ाना छोड़ ज़रा-सा सँभल के देख
छल-छद्म से तो आज तलक कुछ न बन सका
साँचे में हक़परस्ती के इक बार ढल के देख
निकला जो शब की कोख से वो पा गया सहर
उठ,फ़िक्रो-फ़न के ग़ार से तू भी निकल के देख
बरसों से तेरे ज़ुल्मो-सितम थे रवाँ-दवाँ
पाँवों से एक फूल तो अब के कुचल के देख
हर युग में की हैं नर्मदिलों ने ही नेकियाँ
ऐ संगदिल, तू बर्फ़ की सूरत पिघल के देख
चौपाई, दोहा, कुण्डली छाये रहे बहुत
‘दरवेश’ अब कलाम में तेवर ग़ज़ल के देख
जो जीने-मरने का जज़्ब: दिलों में रखते हैं
जो जीने-मरने का जज़्ब: दिलों में रखते हैं
वो मुश्किलों से कहाँ हार मान सकते हैं
निखरते हैं वही कुन्दन की तरह जीवन में
जो जिद्दो-जेह्द की भट्ठी में तपते रहते हैं
सियासी रंगमहल है अजीब रंगमहल
यहाँ अवाम को सपने सलोने छलते हैं
ग़ज़ल में ऐसे अरूज़ी भी मेह्रबान हैं आज
जो हाथ सर पे न रखकर गले पे रखते हैं
खुलूस और महब्बत से क्या ग़रज़ उनको
जो सोते-जागते नफ़रत के ख़्वाब बुनते हैं
तू जिनकी आस लगाये हुए है वो तो खुद
पराये पंखों के दम पर उड़ान भरते हैं
अदब में भी हैं कुछ ऐसे अदीब ऐ ‘दरवेश’
जो अपना काम निकलते ही चल निकलते हैं