November 15, 2024

“छन्द के छ” – एक आंदोलन

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1- छन्द के छ के प्रेरणा स्त्रोत:

(अ) छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के रूप में सुप्रसिद्ध मेरे पिताजी जनकवि कोदूराम “दलित” के जीवन-काल में प्रकाशित एकमात्र किताब “सियानी-गोठ” कुण्डलिया छन्द का संग्रह है। इसका प्रकाशन 12 मई 1967, तिथि अक्षय तृतीया को हुआ था। इस किताब में उन्होंने लिखा था – “ये बोली मा खास करके छन्दबद्ध कविता के अभाव असन हवय, इहाँ के कवि-मन ला चाही कि उन ये अभाव के पूर्ति करें। स्थायी छन्द लिखे डहर जासती ध्यान देवें। ये बोली पूर्वी हिन्दी कहे जाथे। येहर राष्ट्र-भाषा हिन्दी ला अड़बड़ सहयोग दे सकथे”। उनके निधन (28 सितंबर 1967) के बाद छत्तीसगढ़ी में छन्दबद्ध रचनाओं का वास्तव में अभाव सा हो गया था। तब मेरी उम्र मात्र 11 वर्ष की थी। कविताई मुझे विरासत में मिली। होश सँभालने के बाद उनके स्वप्न को पूरा करने के लिए मन में छटपटाहट सी रही।

(ब) जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया का आह्वान गीत – “मोर संग चलव रे, ओ गिरे थके हपटे मन, ओ परे डरे मनखे मन, मोर संग चलव। इस गीत की प्रेरणा से हम नवोदित और जिज्ञासु कवियों को अपने संग लेकर चल रहे हैं ताकि छत्तीसगढ़ी भाषा समृद्ध हो सके।

2- छन्द सीखने का प्रयास:

बिना छन्द सीखे उनके स्वप्न को कैसे पूरा करता ? नजदीक पास के बड़े कवियों के पास गया किन्तु वे तुकांत वाली गेय कविताओं को ही छन्द मानते थे, मुझे छन्द-विधान के बारे में कुछ भी नहीं बता पाए। छन्द विधान के किताब खोजी, दुर्ग-भिलाई के बा1जार में नहीं मिली। जबलपुर, इलाहाबाद, लखनऊ, दिल्ली जैसे बड़े शहरों में भी तलाश की किन्तु छन्द विधान की किताब नहीं मिली। इंटरनेट में खोजते-खोजते “ओपन बुक्स ऑन लाइन डॉट कॉम” नामक एक साहित्यिक वेबसाइट मिली, यहाँ सीखो-सिखाओ की प्रक्रिया में छन्द सीखने को मिले। सौरभ पाण्डेय, अम्बरीष श्रीवास्तव जैसे छन्द के विद्वानों की संगत में थोड़ा-बहुत छन्द लिखना सीख पाया। ओपन बुक्स ऑनलाइन में हिन्दी भाषा में छन्द सीखने के बाद सन् 2013 में अपना हिन्दी छन्द संग्रह “शब्द गठरिया बाँध” तैयार किया जो अंजुमन प्रकाशन इलाहाबाद से प्रकाशित हुआ। प्रकाशक ने इलाहाबाद में बुद्धिनाथ मिश्र, यश मालवीय, सौरभ पांडेय जैसे बड़े-बड़े साहित्यकारों के करकमलों से इस किताब का विमोचन भी करवा दिया किन्तु मेरे मन को संतोष नहीं था। मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा की सेवा करने छटपटाता रहा।

3- छन्द के छ की पांडुलिपि :

स्टेट बैंक की नौकरी में लगभग बीस वर्षों तक अपने गृह संभाग से बाहर विभिन्न स्थानों में सेवाएँ देने के पश्चात सन् 2013 में स्टेट बैंक के हॉस्पिटल एरिया, भिलाई शाखा में मुख्य प्रबंधक बन कर लौटा। दुर्ग भिलाई वाले लोगों के लिए मैं नया और अपरिचित हो गया था। दुर्ग जिला हिन्दी साहित्य समिति की सदस्यता लेने के बाद इहाँ के स्थानीय साहित्यकारों से नयी-नयी पहचान हुई। अप्रैल सन् 2015 में हृदयाघात आया। आई.सी.यू. से जीते जागते बाहर आया। डॉक्टर साहब ने बेड-रेस्ट की सलाह दी। उसी समय मन में विचार आया कि समय तो पूर्ण हो चुका था किन्तु ऊपर वाले ने जीवित रख दिया है तो उसका भी कुछ खास कारण जरूर होगा। तब अक्षय तृतीया के दिन मैंने संकल्प लिया कि छत्तीसगढ़ी में छन्द की एक ऐसी किताब निकालूँ जिसमें विधान, उदाहरण, भाषा सब कुछ छत्तीसगढ़ी में रहे ताकि किसी भी छत्तीसगढ़िया साहित्यकार को विधान की किताब के लिए भटकना मत पड़े। इस प्रकार अक्षय तृतीया के दिन छन्द के छ की पांडुलिपि बनना चालू हुई। छुट्टी में था अतः जल्दी ही इस कार्य को पूर्ण कर लिया। अब किताब के नाम की समस्या थी। कई तरह के नाम सोचे किन्तु संतोष नहीं हुआ। फिर मन में विचार आया कि जैसे हिन्दी की पढ़ाई “अनार के अ” ले शुरू होती है वैसे ही छन्द सीखने के लिए “छन्द के छ” नाम रखा जाय। इस किताब को लिखने में मेरी धर्मपत्नी सपना निगम का भी बहुत योगदान हे। उनका छत्तीसगढ़ी का शब्दकोश मेरे शब्दकोश से वृहत है। उन्होंने बहुत से शब्दों की जानकारी मुझे देकर सहयोग किया तब जा के “छन्द के छ” की पांडुलिपि तैयार हो सकी।

4- छन्द के छ किताब की भूमिका :

भूमिका लिखने के लिए पांडुलिपि की एक प्रति लक्ष्मण मस्तुरिया जी को दुर्ग में सौंपी। पहिले तो मस्तुरिया जी पूछा कि अरुण ! तुम कब से कवि हो गए ? मैंने बताया कि पंद्रह वर्ष की आयु से लिख रहा हूँ तो उन्हें बहुत ही आश्चर्य हुआ। वे पाण्डुलिपि लेकर रायपुर चले गए। पांडुलिपि पढ़ने के बाद मस्तुरिया जी ने फोन किया और खुश होकर कहा कि ऐसी किताब अभी तक छत्तीसगढ़ी में किसी ने नहीं लिखी है। ये किताब तुम्हें बहुत प्रसिद्धि देगी किन्तु इस बात की भी याद रखना कि जितनी प्रसिद्धि मिलेगी उतने ही दुश्मन भी पैदा हो जाएंगे। मस्तुरिया जी की दोनों भविष्यवाणियाँ सही साबित हुईं। “छन्द के छ” की पहली भूमिका लक्ष्मण मस्तुरिया जी ने लिखी और दूसरी भूमिका भाई संजीव तिवारी जी के लिखी है।

5- छन्द के छ के किताब के प्रकाशन अउ विमोचन :

संजीव तिवारी जी की सलाह पर वैभव प्रकाशन के डॉ. सुधीर शर्मा से भेंट की और प्रकाशन हेतु पाण्डुलिपि उन्हें सौंप दी। डॉ. सुधीर शर्मा जी ने अगस्त 2015 में किताब की दो सौ प्रतियाँ मुझे यथासमय प्रकाशित करके दे दी। साथ ही साथ उन्होंने छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग ले आर्थिक सहयोग प्राप्त करने में भी विशेष सहयोग दिया। हाँ, किताब में प्रकाशक के नाम “सर्वप्रिय प्रकाशन – दिल्ली” छपा हे। “छन्द के छ” किताब छपने के बाद मेरी इच्छा हुई कि इसका विमोचन अपन पैतृक गाँव “टिकरी”(अर्जुन्दा) में करवाऊँ। टिकरी के तत्कालीन सरपंच रीतेश देवांगन और अर्जुन्दा के कवि मित्र मिथिलेश शर्मा “निसार” से इस संबंध में चर्चा की तो दोनों खुशी खुशी तैयार हो गए। उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायत टिकरी, “संगवारी हमर गाँव के”- वाट्सएप ग्रूप और स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से हम भव्य आयोजन करेंगे, बस आप मस्तुरिया जी को टिकरी आने के लिए तैयार कर लें। 26 अक्टूबर सन् 2015, शरद पूर्णिमा की रात ग्राम टिकरी के भव्य मंच में जनकवि श्री लक्ष्मण मस्तुरिया, श्री महेश गागड़ा (वन एवं विधिविधायी मंत्री, छत्तीसगढ़ शासन) सर्वश्री मिथिलेश शर्मा, डॉ. संजय दानी, संजीव तिवारी, रमेश चौहान, कान्हा कौशिक, वीरेंद्र सरल और श्रीमती सपना निगम आदि कवियों की उपस्थिति में मेरी किताब “छन्द के छ” का विमोचन हुआ और देर रात तक सरस कविसम्मेलन चला।

6- छत्तीसगढ़ी भाषा को समृद्ध करने हेतु एक आंदोलन

“छन्द के छ” : (वाट्सएप के माध्यम से ऑनलाइन कक्षाएँ)

विमोचन के बाद मेरी किताब सप्रेम भेंट में बँट गयी। अब मेरे मन में विचार आया कि किताब की दो सौ प्रतियाँ छपी हैं। ज्यादा से ज्यादा दो सौ लोगों तक पहुँच पाएगी और यह जरूरी नहीं है कि सभी दो सौ लोग इसे पढ़कर छन्द में लिखें। तब “वाट्सएप” को माध्यम बनाकर अपने जान-पहचान वाले दस कवियों से चर्चा की और उन्हें एक वाट्सएप समूह बना कर जोड़ दिया और छन्द सिखाना चालू कर दिया। मैं नियम बताता था, वे अभ्यास करते थे। उनके अभ्यास की जाँच करके मैं त्रुटियाँ बताता था और वे वांछित सुधार करते थे। ये समूह के नाम “छन्द के छ-सत्र 1” रखा गया। “छन्द के छ” के पहले सत्र का श्रीगणेश अक्षय तृतीया-2016 को किया गया। तारीख थी 09 मई। इसीलिए छन्द के छ का स्थापना दिवस 09 मई के आसपास के रविवार को मनाया जाता है, ताकि अधिकाधिक साधक उसमें सम्मिलित हो सकें। स्थापना दिवस की केवल प्रथम वर्षगाँठ इस तारीख से एक माह बाद अर्थात 09 जून 2017 को मनायी गयी थी।

7- छन्द के छ की ऑनलाइन कक्षाएँ :

“छन्द के छ” का सत्र एक कक्षा की तरह होता है। यहाँ फालतू की कॉपी पेस्ट, चुटकुलाबाजी पोस्ट करने की मनाही है। सत्र में सिर्फ पाठ, अभ्यास, जाँच और सुधार का कार्य होता है। अनुशासन कड़ा है। नियमित उपस्थिति और अभ्यास की अनिवार्यता होती है। यदि कोई नियमों का पालन नहीं करता तो उन्हें चेतावनी देने के बाद नइ रिमूव्ह कर दिया जाता है। अनुपस्थिति के लिए उपयुक्त और मान्य कारण बताने पर साधकों को अनुपस्थिति के लिए अनुमति भी मिलती है।

वर्ष में चार-चार माह के अंतराल से तीन नए सत्र चलते हैं। नए साल की शुरुवात (जनवरी) में, अक्षय तृतीया (मई) में और दलित जी के पुण्यतिथि (28 सितम्बर) के दिन। छन्द के छ में अभी 14 वाँ सत्र चल रहा है। अक्षय तृतीया को 15 वें सत्र का आगाज होगा। अभी तक 180 ले अधिक कवि जुड़ चुके हैं। कुछ कवि नियम का पालन नहीं कर पाए, कुछ में ईगो ज्यादा था, ऐसे साधकों को रिमूव्ह किया गया और, कुछ के साथ कुछ पारिवारिक मजबूरियाँ रहिन, वे लेफ्ट हो गए। फिर भी 150 से अधिक कवि, छन्द के छ से जुड़े हुए हैं।

8- छन्द के छ में जुड़ने के लिए पात्रता, गुरु-शिष्य परम्परा :

“छन्द के छ” सदस्य-संख्या बढ़ाने में भरोसा नहीं करता। इसे साहित्य के लिए समर्पित कवि चाहिए। जिनका उद्देश्य रातोंरात बड़े कवि बनना न होके व्याकरण की शुद्धता वाली रचना लिखना हो, वे ही यहाँ जुड़े रह जाते हैं। छन्द के छ की एक और खासियत है कि यहाँ सीखने के बाद सिखाना जरूरी होता है। छन्द के छ में गुरु-शिष्य परम्परा चलती है। जो आज किसी सत्र में किसी का शिष्य है वह सीखने के बाद नए सत्र के साधकों के लिए गुरु बन जाता है। ऐसे समर्पित साधकों के सहयोग से पिछले पाँच वर्षों में 14 सत्रों का संचालन संभव हो पाया।

9 – छन्द के छ – खुलामंच

व्याकरण वाला भाग सीखने के बाद नए सत्र के साधकों को “छन्द के छ के खुला मंच” में जोड़ा जाता है जहाँ वरिष्ठ साधकों से परिचय होता है। आपसी विचार विमर्श, सूचनाओं और अन्य उपलब्धियों का आदान प्रदान होता है।

10 – छन्द के छ-कविगोष्ठी

नए सत्र में साधक जब 5-6 प्रकार के छन्द सीख जाते हैं तब उन्हें “छन्द के छ-कविगोष्ठी” में जोड़ा जाता है । यह ऑनलाइन कविगोष्ठी है। यहाँ विभिन्न छन्दों के प्रस्तुतिकरण के गुर सिखाए जाते हैं। यह कविगोष्ठी मार्च 2017 से प्रत्येक सप्ताह शनिवार को शाम के 6 बजे शुरू होती है और रविवार की रात के 10 बजे तक चलती है। बीच-बीच में इस कविगोष्ठी में छत्तीसगढ़ की सुप्रसिद्ध हस्तियों को भी पहुना के रूप में आमंत्रित किया जाता है ताकि यहाँ की हस्तियाँ, छन्द के छ की प्रतिभाओं को सुन सकें साथ ही नयी प्रतिभाएँ, वरिष्ठ हस्तियों से भलीभाँति परिचित होकर उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सकें। यह आयोजन मार्च 2017 से निरंतर चल रहा है।

11 – छत्तीसगढ़ी छन्द खजाना (ब्लॉग)

छन्द के छ परिवार के सदस्यों द्वारा रचित छन्दों को एक ही स्थान में संग्रहित करने के लिए 15 अगस्त 2017 को “छन्द खजाना” नाम के ब्लॉग बनाया गया है। इस ब्लॉग को दुनिया के किसी भी देश का व्यक्ति देख सकता है, पढ़ सकता है। पाठकों को पता चलता है कि छत्तीसगढ़ी भाखा में कौन-कौन से छन्दकार हैं और कौन-कौन से भारतीय छन्दों को छत्तीसगढ़ी भाषा में लिख रहे हैं। इस ब्लॉग में दुनिया के करीब 20 देशों के पाठक आकर छत्तीसगढ़ी में छन्दों को पढ़ रहे हैं। विशेष अवसरों पर इसके विशेषांक भी लोकार्पित किये जाते हैं।

12 – छन्द के छ के भौतिक आयोजन :

(1)छन्द के छ, स्थापना दिवस की प्रथम वर्षगाँठ –
संयोजक – शकुंतला शर्मा
विशेष भूमिका – सूर्यकान्त गुप्ता
स्थान – स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय, हुडको, भिलाई
तारीख – 09 जून 2017
सौजन्य – छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, रायपुर
मुख्य अतिथि – डॉ. विनय कुमार पाठक
अध्यक्षता – डॉ. सुरेंद्र दुबे
विशिष्ट अतिथि – श्री रवि श्रीवास्तव, श्रीमती सरला शर्मा, डॉ. सुधीर शर्मा, डॉ. हंसा शुक्ला
आयोजन – छत्तीसगढ़ में इतिहास में पहिली बार राज्यस्तरीय छंदमय छत्तीसगढ़ी कविसम्मेलन का आयोजन हुआ जिसमें 20 छन्दकारों द्वारा 20 प्रकार के छन्द प्रस्तुत किये गए।

(2) छन्द के छ, स्थापना दिवस के द्वितीय वर्षगाँठ –

संयोजक – मनीराम साहू “मितान”
स्थान – साहू समाज सामुदायिक भवन, सिमगा
तारीख – 13 मई 2018
सौजन्य – आपसी सहयोग
अध्यक्षता – श्री भागवत सोनकर (अध्यक्ष, नगर पंचायत, सिमगा)
मुख्य अतिथि – डॉ. नथमल झंवर (साहित्यकार)
विशिष्ट अतिथि – शकुन्तला शर्मा, सपना निगम, संजीव तिवारी, सूर्यकान्त गुप्ता, चन्द्रशेखर साहू (अध्यक्ष, परिक्षेत्रीय साहू समाज शहर सिमगा)
आयोजन –
चोवाराम बादल की किताब छन्द बिरवा की समीक्षा
समीक्षक – शकुन्तला शर्मा एवं संजीव तिवारी
तथा
राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी छंदमय कविसम्मेलन

(3) छन्द के छ, स्थापना दिवस के तृतीय वर्षगाँठ –
संयोजक – ज्ञानुदास मानिकपुरी और सुखदेव सिंह अहिलेश्वर
विशेष भूमिका – द्वारिकाप्रसाद लहरे, अश्वनी कोसरे
स्थान – वन विद्यालय काष्ठागार परिसर, कबीरधाम (कवर्धा)
तारीख – 12 मई 2019
सौजन्य – आपसी सहयोग
मुख्य अतिथि – दिलराज प्रभाकर (IFS)
अध्यक्षता – श्री समयलाल विवेक (साहित्यकार)
विशिष्ट अतिथि – डॉ. विनोद कुमार वर्मा, श्री दिनेश गौतम

आयोजन –
(अ) विमोचन समारोह –
चार साधकों की नवा प्रकाशित किताबों का विमोचन

(ब) सम्मान समारोह –
छत्तीसगढ़ी भाषा में छन्द संग्रह प्रकाशित कराने हेतु “छत्तीसगढ़ी छन्द रतन सम्मान”

(सर्व श्री रमेश कुमार सिंह चौहान, चोवाराम वर्मा “बादल”, मनीराम साहू “मितान” को)

सार छन्द मा रामकथा के मनका प्रकाशित कराने हेतु

“नवोदित छत्तीसगढ़ी छन्दकार सम्मान”

(जगदीश “हीरा” साहू को)

छत्तीसगढ़ी के नवोदित छन्दकार को प्रेरित करने हेतु

“छत्तीसगढ़ी छन्द प्रेरक सम्मान”

(डॉ. विनोद कुमार वर्मा को)

(स) राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी छंदमय कविसम्मेलन

(मई 2020 में कोरोना के कारण चतुर्थ वर्षगाँठ भौतिक रूप से नहीं मनायी जा सकी)

(13) दीवाली मिलन समारोह का आयोजन –

(1) छन्द के छ, दीवाली मिलन समारोह – –
संयोजक – चोवाराम वर्मा “बादल”
स्थान – हथबन्द (भाटापारा)
तारीख – 12 नवम्बर 2017
सौजन्य – चोवाराम वर्मा “बादल”
आयोजन –
चोवाराम बादल जी के छन्द संग्रह “छन्द बिरवा के समीक्षा”
राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी छंदमय कविसम्मेलन

(2) जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया के स्मृति में विशेष कार्यक्रम

संयोजक – सुरेश पैगवार
स्थान – शील साहित्य परिषद भवन, जांजगीर
तारीख – 25 नवम्बर 2018
सौजन्य – आपसी सहयोग
अध्यक्षता – श्री ईश्वरी यादव
मुख्य अतिथि – श्री विजय राठौर
विशिष्ट अतिथि – शकुन्तला शर्मा एवं विनोद कुमार वर्मा
आयोजन –
लक्ष्मण मस्तुरिया जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर चर्चा
तथा
राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी छंदमय कविसम्मेलन
(वस्तुतः 25 नवम्बर को हमारा दीवाली मिलन समारोह पहले से ही तय था किंतु श्री लक्ष्मण मस्तुरिया जी का निधन 03 नवम्बर को होने के कारण इसे मस्तुरिया जी की स्मृति को समर्पित कर दिया गया था)

(3) छन्द के छ, दीवाली मिलन समारोह


  • संयोजक – बलराम चंद्रकार और डॉ. मीता अग्रवाल
    विशेष भूमिका – सूर्यकान्त गुप्ता
    स्थान – मंगल भवन (चंद्रकार छात्रावास) रायपुर
    तारीख – 10 नवम्बर 2019
    मुख्य अतिथि – डॉ.केसरीलाल वर्मा (कुलपति, रविवि)
    अध्यक्षता – श्री श्याम बैस (पूर्व अध्यक्ष छत्तीसगढ़ राज्य बीज विकास निगम)
    विशिष्ट अतिथि – श्री लखनलाल भौर्य (केंद्र निदेशक, आकाशवाणी रायपुर) श्री श्याम वर्मा (वरिष्ठ उद्घोषक, आकाशवाणी रायपुर) एवं डॉ. सुधीर शर्मा (वैभव प्रकाशन)
    आयोजन –
    राज्य स्तरीय छत्तीसगढ़ी छंदमय कविसम्मेलन
    (इसके पश्चात कोरोना के कारण किसी प्रकार का भौतिक आयोजन संभव नहीं हो पाया)

14 – छन्द के छ के साधकों की छन्द आधारित किताबों का प्रकाशन

छत्तीसगढ़ी साहित्य को समृद्ध करने हेतु कटिबद्ध “छन्द के छ” का अवदान अब पुस्तकों के रूप में दिखायी देने लगा है। छन्द के छ के साधकों की कुछ पुस्तकें जो भारतीय छन्दों पर आधारित हैं और छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखी गयी हैं, इस प्रकार हैं –

क्रमांक कवि का नाम पुस्तक का नाम
1 अरुण कुमार निगम छन्द के छ
2 रमेश कुमार चौहान आँखी रहिके अंधरा
3 रमेश कुमार चौहान दोहा के रंग
4 रमेश कुमार चौहान छन्द चालीसा
5 रमेश कुमार चौहान छन्द के रंग
6 चोवाराम “बादल” छन्द बिरवा
7 मनीराम साहू “मितान” हीरा सोनाखान के
8 मनीराम साहू “मितान” महा प्रसाद
9 शकुन्तला शर्मा छन्द झरोखा
10 जगदीश हीरा साहू सम्पूर्ण रामायण
11 जगदीश हीरा साहू छन्द संदेश
12 रामकुमार चंद्रवंशी छन्द झरोखा

इसके अलावा दो छन्द संग्रह हिन्दी भाषा में भी प्रकाशित हो चुके हैं –

क्रमांक कवि का नाम पुस्तक का नाम
1 अरुण कुमार निगम शब्द गठरिया बाँध
2 कन्हैया साहू “अमित” कविताई कैसे करूँ

(यहाँ केवल छन्द आधारित किताबों का वर्णन दिया गया है हालाँकि कुछ साधकों की अन्य विधाओं में भी पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जैसे कविता संग्रह, गीत संग्रह, नवगीत संग्रह, कहानी संग्रह, बाल गीत संग्रह आदि)

आलेख – अरुण कुमार निगम
संस्थापक : छन्द के छ, छत्तीसगढ़

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