स्मृतियों की गठरी – एक थी बबिता
बात अक्टूबर 2003 की है| रायपुर में मेरा सपनों का घर तैयार हुआ और मैंने अक्टूबर मध्य में गृहप्रवेश किया| मेरी इच्छा थी कि इस अवसर पर इष्ट मित्रों को आमंत्रित किया जाय पर जेब इजाजत नहीं दे रही थी| संचित पूंजी की इस महायज्ञ में आहुति दी जा चुकी थी| पिताजी अक्सर कहा करते थे आधी रोटी खाकर रह जाना पर उधार मत लेना| हर दम दाता की भूमिका में रहना तभी लक्ष्मी का आगम होगा अन्यथा लक्ष्मी और सरस्वती का छत्तीस का आकड़ा होता है|जो याचक होता है उससे लक्ष्मी रूठ जाती हैं|
मैंने भी मन मारकर चादर के बराबर पैर फैलाए, मात्र निकटतम रिश्तेदारों को ही आमंत्रित किया और गृहप्रवेश सम्पन्न हुआ|
इस नए आवास में सामान रखते ही एक समस्या आई घरेलू नौकरानी की| टीचर्स काॅलोनी में जो आती थी उसने दूरी के कारण इंकार कर दिया| हमने इधर – उधर बहुत हाथ पैर मारे पर सफलता नहीं मिली| रविवार का दिन था और मैं पोर्च में बैठा चाय की चुस्की ले रहा था तभी एक लड़की आई और पूछने लगी कामवाली चाहिए बाबू जी| उसे गौर से देखा तो वह कृशकाय तेरह- चौदह वर्ष की बच्ची दिख रही थी, मैंने श्रीमती जी को आवाज दी| उन्होंने बच्ची से बात की और उसे काम पर रख लिया| मैंने उस बच्ची से उसकी उम्र पूछी तो उसने अठ्ठारह वर्ष बताई, लेकिन मुझे विश्वास नहीं हो रहा था| ऐसा लग रहा था कि यह उत्तर उसे रटाया गया है| उसका कमजोर शरीर और जरूरत मंद समझकर उसे काम पर रख लिया, पर एक बात कचोटती रही कि – ये तो बच्ची की पढ़ने लिखने की उम्र है| लेकिन इस समय काम के अतिरिक्त कोई बात करना उचित नहीं समझा|
पत्नी ने भी उस बच्ची का खूब खयाल रखा| सुबह भर पेट नास्त, एक कप दूध वाली चाय, दोपहर कुछ खाने को, देखते- देखते बच्ची के गाल भर गए| उस बच्ची का नाम बबिता था | वो गौरैया की तरह चहकते हुए काम करती थी जैसे काम उसके लिए खेल हो| अब वह मुझे भइया कहकर संबोधित करती थी| वह उडीसा की रहने वाली थी, उसके पिता रिक्शा खींचते थे, माँ घरों में काम करती थी| बबिता जब भी झाड़ू लगाती तो पड़े हुए कागजों को उलट- पलट कर देखती जैसे मुआयना करती हो कि फेंकने योग्य है या नहीं? एक दिन मैंने पूछ ही लिया – बबिता तुम स्कूल गई हो? उसने बताया कि वह स्कूल गई थी पर जल्दी ही पढा़ई छूट गई| मेरा एक भाई है जिसको सिकलिंग हैं| हर महीने खून चढ़ाना पड़ता है, दवा लगती है| इसीलिए पढ़ाई छूट गई| पहले माँ काम पर जाती थी तो मैं भाई को सम्भालती थी, अब मैं काम करती हूं, माँ एकाध घर करके फिर भाई को सम्भालती है| बाप हरदम दारू पीकर तमासा करता है| जो लोग बाल श्रम को गैरकानूनी कहते हैं उनके पास ऐसे बच्चों के लिए कोई योजना है? या ये कीड़े- मकोड़े की तरह जन्मने और मरने के लिए हैं| सिकलिंग अर्थात सिकल सेल यह एक एनीमिया बीमारी है| यह बीमारी अनुवंशिक होती है| छत्तीसगढ़ की एक विशेष जाति में यह बीमारी पाई जाती है| सामान्यतः लाल रक्त कोशिकाएं (RBC) उभयावतल डिस्क के आकार की होती हैं और रक्त वाहिनियों में आसानी से प्रवाहित होती हैं, लेकिन सिकल सेल रोग में लाल रक्त कोशिकाओं का आकार अर्द्ध चंद्र / हंसिया (सिकल) जैसा हो जाता है| इस बीमारी पर छत्तीसगढ़ में शोधकार्य तेजी से हो रहा है|
एक दिन मैंने बबिता से कहा – तुम पढ़ना चाहती हो? अब वो हमसे घुल- मिल गई थी उसने स्वीकृति में सिर हिला दिया | मैंने पत्नी से सलाह मशविरा करके आवश्यक सामग्री स्लेट, बत्ती और रंगीन पुस्तकें ले आया| यह काम करना पत्नी को ही था क्योंकि मेरे पास समय ही नहीं था| पत्नी ने भी दोपहर का अपना आराम त्यागा, और प्रति दिन तीन बजे से पढ़ाना शुरू किया| इस प्रकार बबिता का अक्षर ज्ञान शुरू हुआ| मैंने सिर्फ पहल की थी प्रोजेक्ट पत्नी आगे बढ़ा रही थीं|
धीरे-धीरे छात्रों की संख्या बढ़ने लगी, पहले बबिता की बुआ आई फिर उसकी सहेलियाँ| मुझे कुछ करना नहीं था बस मैं छात्र संख्या के हिसाब से आवश्यक सामग्री उपलब्ध करा देता|बच्चियों का पढ़ने में मन लगा रहे इसलिए श्रीमती जी कभी कभी चिप्स, पापड़ या कुछ और खाद्य सामग्री परोस देंती| शाम का काम सभी मिलकर करतीं| सब में होड़ लगती कि कौन अच्छा काम करता है| छात्र संख्या बढ़ने से एक फायदा यह हुआ कि परस्पर प्रतिस्पर्धा बढ़ी, सीखने को ऊर्जा मिली, विद्यार्थी जल्दी सीखने लगे| बबिता की बुआ सीखने में आगे निकल गई बबिता ईर्ष्या करने लगी | बहुत जल्दी बबिता जोड़- जोड़कर हिन्दी पढ़ने लगी, अंग्रेजी की वर्तनी पहचानने लगी| अब तो एक नई समस्या हो गई, वो काम करते करते कैलेंडर की लिखावट पढ़ने लगती| झाड़ू कम लगाती और गिरे हुए पेपर ज्यादा पढ़ती पर उसे डांटा किस बात के लिए जाय? नवसाक्षर है सब कुछ को जानने का उत्साह उसे काम से विरक्त कर रहा था |
एक दिन की बात है पत्नी गोल बाज़ार से कुछ श्रृंगार सामग्री ले आईं| बबिता को वो बहुत पसंद आई, पत्नी ने कहा तू ले ले लेकिन वो नहीं मानी उसने दुकान का नाम और स्थान समझ लिया| अगले दिन वो बाज़ार गई और अपने लिए बहुत कुछ उसी दुकान से ले आई| आज बबिता बहुत चहक रही थी | उसने अपनी खरीददारी का रोचक किस्सा बताया | उसने बताया कि आपने जहाँ दुकान बताई थी उसको देखते- देखते बहुत आगे निकल गई, बाजार भी खत्म हो गई पर दुकान नहीं मिली पर एकाएक मुझे याद आया कि मुझे तो पढ़ना आता है अगर हिन्दी में दुकान का नाम लिखा होगा तो मैं पढ़ लूंगी| लौटते समय दाहिने तरफ का एक- एक बोर्ड पढ़ते हुए लौटी जैसे ही पढ़ा बीनस स्टोर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं दौड़कर अंदर घुस गई| इस घटना का वर्णन करते समय वह तितली की तरह रंगबिरंगे पंख पसारे हवा में उड़ रही थी|उसके दांतों की दूधिया रोशिनी चारो ओर छिटक रही थी| ऐसी निर्मल हंसी के लिए शायद देवता भी तरसते होंगे| मैं साफ देख रहा था कि गुरु- शिष्य दोनों परमानन्द में डूब उतरा रहे है, मैं पवित्र रिश्ते और पवित्र आनन्द का साक्षी बना बैठा था| जून 2005 में मैं सपरिवार माता- पिता को लेकर चारधाम की यात्रा पर गया लौटने पर पूजन-यज्ञ के दिन जैसे ही मैं हवन से उठा प्राचार्य का फोन आया – आपका स्थानांतरण चिरमिरी के लिए हो गया है| इस तरह बबिता रायपुर में छूट गई, बस स्मृतियों की एक गठरी अपने साथ लेता चला आया|
सुप्रभात
डॉ. प्रेमकुमार पाण्डेय
केन्द्रीय विद्यालय बीएमवाय
चरोदा, भिलाई
9826561819