दुविधा (कहानी)
राहुल और मनोज दो शरीर एक जान मित्र थे ।कुछ निहायती व्यक्तिगत कार्यों को छोड़कर प्रत्येक कार्य साथ -साथ करते थे।दोनों की आर्थिक -सामाजिक स्थिति में बड़ा अंतर था लेकिन इन बातों का असर उनके मित्रता पर कभी नही हुआ। दोनों ने प्राथमिक शाला की पढ़ाई एक ही स्कूल से पूरी की उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए दोनों का दाखिला राहुल के पिता ने एक प्राइवेट स्कूल में करा दिया।
कुछ वर्षों पश्चात दोनों की पढ़ाई पूरी हुई उनका अध्ययन कार्य उत्तरोत्तर चलता गया और दोनों की सरकारी नौकरी लग गयी। दोनों परिवारों में खुशियां मनाई गयी ।राहुल का परिवार आर्थिक रूप से समर्थ था तो उन्हें खुशियों को सम्भालना भी आता था लेकिन यह अवसर मनोज के परिवार के लिए बहुत बड़ा था ,उन्होंने कई दिनों तक मिठाई बांटे ,पटाखे जलाए और लोगों को छोटी पार्टियां भी दी।
मनोज ने राहुल के पिता का आभार व्यक्त किया और भेंट स्वरूप अपना पहला वेतन उनके चरणों में डाल दिया किंतु राहुल के पिता बड़े ज्ञानी आदमी थे उन्होंने मनोज को सीने से लगा लिया और शाबासी भी दी ।रुपयों को जरूरत पड़ने पर मांग लेंगे ऐसा वादा करके मनोज को लौटा दिया ।
अब राहुल के विवाह कि तैयारी होने लगी,लड़की मिली विवाह तय हुआ और पूरे परिवार के लोग शादी की तैयारी में जुट गए मनोज भी छुट्टी लेकर राहुल की शादी में शामिल होने आ गया ।उसके आने से राहुल बहुत प्रसन्न हुआ ,तैयारियाँ जोरों पर थी ।एक दिन राहुल के पिता को उनके जाति- समाज का बुलावा आया ।
वहां से वापस आकर राहुल के पिता निराश मुद्रा में घर के बरामदे में ही बैठ गए ,किसी से कुछ न कहा ।कुछ समय बाद राहुल की माताजी ने जब उनसे निराशा के कारण के विषय में पूछा तो वे धीमी आवाज में बोले 'हमें बिरादरी से बाहर कर दिया जाएगा अगर मनोज विवाह में शामिल हुआ 'यह सुनकर सब लोग चौंक गए किंतु विषय को समझने में देर न लगी ।सबको समझ में आ गया कि मनोज के जाति की वजह से बिरादरी ने ऐसा फैसला सुनाया है ।
दरअसल राहुल और मनोज की गहरी मित्रता ने इस बात को काफी हद तक मिटा दिया था की मनोज उस जाति वर्ग का है जिसे लोग छोटी जात या नीच जात कहते थे और प्राचीन वर्ण व्यवस्था के हिसाब से राहुल उच्च कुलीन वर्ग का था ।हालांकि आजादी के बाद संविधान में सामाजिक जातिगत भेद -भाव के विरुद्ध कई कानून बनाये गए थे लेकिन यह कानून आज भी खास करके ग्रामीण परिवेश में लोगों की मानसिकता से जातिगत भेद- भाव को मिटा पाने में सफल नही हुआ था लोग परम्परा के पूर्वाग्रह में ग्रसित थे और उन्हें लगता था कि यह वर्ण व्यवस्था ईश्वर के द्वारा निर्मित हुआ है जिसको न मानना अपराध है ।
वैसे मनोज की जाति के लोगों को सार्वजनिक सम्पत्ति और संसाधन के उपभोग की मनाही नही थी जैसे वे लोग तालाब में नहा सकते थे ,हैंडपम्प से पानी भर सकते थे ,उप स्वास्थ्य केंद्र में इलाज करा सकते थे शाला में एक साथ उच्च कुलीन बच्चों के साथ पढ़ाई कर सकते थे ।परन्तु मन्दिर की पूजा और धार्मिक कार्यक्रमो में शामिल नही हो सकते थे बाकी उनसे चंदा बराबर लिया जाता था । किसी भी उच्च कुलीन वर्ग के कार्यक्रमों में उन्हें अलग पंक्ति में बिठाकर खाना परोसा जाता था परम्परा यही थी जिसे सभी निर्वहन करते आ रहे थे ।
राहुल दुविधा में है मित्र से द्रोह करे या समाज से वह चाहकर भी दोनों को एक साथ कर पाने में समर्थ नही था । मनोज को जब इसके बारे में पता चलतो परिस्थिति को भांपकर उसने स्वयं को राहुल के वैवाहिक कार्यक्रम से दूर कर लिया क्योंकि उसे पता था उसका मित्र उसे मना नही करेगा और समाज से विद्रोह कर लेगा ऐसे में उसने अपना दायित्व समझकर राहुल के सुख और परिवार की खातिर स्वयं का हट जाना उचित समझा।
परम्परा के नाम पर पूर्वाग्रह बनकर अज्ञात समय और किसी अज्ञात के द्वारा बोया गया जाति -भेद का रोग आज भी अपना पांव मानव समाज के मस्तिष्क में फैलाया हुआ है जिस पर संवैधानिक नियम भी बेड़ियां नही डाल सकी हैं ।
लेखक -जपेश कुमार प्रधान
ग्राम -बड़ेलोरम,पोस्ट -परसवानी
जिला-महासमुन्द (छ ग)
मो.नं.-8319275723