‘दंडनायक’ की कहानियों में समाज का यथार्थ चित्रण
उमाकांत खुबालकर के सद्यःप्रकाशित कहानी संग्रह ‘दंडनायक’ से गुजरना एक अनुभव संसार से गुजरना है। आज के साहित्यकारों में उमाकांत खुबालकर एक उल्लेखनीय नाम है। इस कथा संग्रह से पूर्व प्रकाशित कहानी संग्रहों (शहर और पगडंडियाँ,व्यतिक्रम,विखंडितराग), नाटकों (पेपरवाला, खामोश नहीं है नारी, तक्षक हंस रहा है) जैसी साहित्यिक रचनाओं से साहित्यिक जगह में अपनी पहचान बनाई है और एक समर्थ कहानीकार के रूप में जाने जाते हैं।
नवीनतम कथा संग्रह ‘दंडनायक’ में पंद्रह कहानियाँ संगृहीत हैं। ये कहानियां अपनी विशिष्ट अतंर्वस्तु, सुघड़रूप विधान और भाषा की सघन बुनावट के चलते पाठकों के ध्यान को अपनी आकर्षित करती हैं और यह महसूसकराती कि कहानी की घटना हमारे आसपास की ही घटना और परिवेश को बयांकर रही हैं। इस संग्रह की कहानियोंको पढ़ते के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है कि ‘दंडनायक’ की कहानियाँ गहरी संवेदनाओं को लेकर गंभीर विचार-विमर्श करती हैं, नारी-जीवन के विविध पक्षों,समाज के बेहद निर्मम समय को निकट से देखने, समझने तथा अनुभव करने वाली; मानव-मूल्यों के ह्रास को अभिवक्त करने वाली सशक्त कथाएं हैं। इसलिए उनकी कहानियां जीवन की तलछट में दबी-ढकी उन सच्चाइयों को भी उघाड़ने की शक्ति और सामर्थ्य रखती हैं, जिन्हें समाज में नगण्य मानकर अक्सर अन देखाकर दिया जाता है। लेखक ने इस पुस्तक को अपनी माता जी कोसमर्पित किया है और अपनी बात के अंतर्गत लिखा है-“ इस संग्रह में दलित नारी के जीवन-संघर्ष का जुझारू पन दिखाई पडेगा तथा घरेलू मोर्चे पर पुरुषीय हिंसा के प्रतिरोध में आक्रामकता के तेवर भी नजरआयेंगे। व्यस्थागत विसंगतियों एवं बेलगाम भ्रष्टाचार के साथ प्रतिबद्धता के साथ लड़ते हुए युवा शक्ति का तेजपुंजभी दृष्टिगत होगा।’(पृ-7)
‘खटराग’ कहानी गंभीर संवेदानात्मक कहानी है जिसमें गरीबी की विषमताओं और माँ के मातृत्व के उदात्त भाव को अभिव्यक्त किया है। आज जहाँ देखो वहां चारों तरफ गरीबों की दयनीय स्थितियाँ, परिस्थितियाँ और परिवेश मन को द्रवित कर देता है। देश की सडकों की रेड लाइटों, चौराहों, बाजारों ,पर्यटक स्थलों,धार्मिक स्थलों आदि के आस-पास भीख माँगते बच्चे,युवा,बूढ़े सब समाज का घिनौना रूप प्रदर्शित करते हैं। लेखक ने इस कहानी में देश की इस सोचनीय दशा का चित्रांकन तो किया है वहीं रामप्यारी नामक पात्र के माध्यम से समाज में मातृत्वभावों को झकझोडने वाली परिस्थिति को प्रस्तुत किया है।रामप्यारी गरीब परिवार में जन्मती है और जीवन भर गरीबी का दंशझेलती है। राम प्यारी भीख मांगकर पुत्र हितेश और पुत्री जानकी को अपने परिवेश से दूर रखकर पढ़ाती-लिखाती है, परंतु पढ़-लिखकर दोनों बच्चे माँ से कोई नाता नहीं रखते। एक माँ की वेदना राम प्यारी के इस संवाद में व्यक्त है – “भैया, क्या हम इतने गए गुजरे हैं? फिर क्यों न दुखी हों? पूरी जिन्दगी इन बच्चों को बड़ा करने पर लुटा दी।जिनावरोंकी तरह खटतेर हे अपना शरीर गलाया, लोगों के सामने हाथ फैलाया।।।।।।।।।।।इन औलादों को अब हमें माँ-बाप कहने में लज्जा आती है। ” इस कहानी में लेखक ने समाज का प्रतिनिधित्व करने वालों की मानसिकता का चित्रांकन इस प्रकार किया है– ‘रामलाल के अलावा अन्य नेता,चुनावी सभाओं में रामप्यारी और उसके अन्य भिखारी साथियों को पार्टी की ड्रेस पहनाकर, झंडे लेकर नारे लगवाते।(पृ-19)
‘नियति’ कहानी भी गरीबी में नारी के त्रासद जीवन को अभिव्यक्ति है।गरीबी के कारण शिक्षित भारती बेमेल विवाह की बेदी चढ़ जाती है और पति व परिवार से उपेक्षा तथा प्रताड़ना पाती है। फिर भी वह परि शोध नहीं करती बल्कि उसे अपनीनियति मानकार शिरोधार्य करती चली है।
‘एक और रजनीगंघा’ कहानी समाज में महिलाओं के शोषण, उनके प्रति दुर्भावना पूर्ण व्यवहार को चित्रित करती है। कामकाजी महिलाओंको दोहरे उत्तरदायित्व(घर और ऑफिस के दायित्वों) का निर्वहन करना होता है जहाँ जिम्मेदारी को निभाने मेंतनिक चूक हो तो उलाहने,धमकियों और अपमान को सहना पड़ता है। लेखक ने सुष्मिता नामक पात्र के माध्यम सेइस सामाजिक विषयको रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया है।
‘अभिमान’ कहानी मध्यमवर्गीय समाज का प्रतिनिधित्व करने वाली कथा पर आधारित है, जहाँ व्यक्ति की नौकरी के साथ जीवन की जद्दोजहद जारी रहती है और जीते-जीते जी सर ढकने के छत की जुगत भिडाता है पर उसे सुकून नहीं मिल पाता। कथा को थपलियाल और उसके परिवारके साथ बहुत ही रोचक अंदाज में पिरोया गया है। इस कहानी में सजग लेखक ने सैनिकों के देश-सेवा के लिए प्राण न्योछावर तक के समर्पण की भावना को किशन पात्र के माध्यम से चित्रित किया है पर सैनिक केनिष्ठा और समर्पण के एवज में मिलने वाले वेतन और सुख-सुविधाओं को न्याय संगत नहीं माना है परंतु लेखक का यह सुझाव कि देश के हर घर से एक युवा को सेना में सेवा देनीचाहिए स्वागत योग्य है।‘अनामिका’ कहानी भी मध्यवर्ग के जीवन की महत्वाकांक्षाओं के कारण नैतिक पतनऔर मूल्यों के ह्रास से सम्बंधित विषय पर बुनी गई है। कहानी प्रेमा,रीतेश और उनकी बेटी माधुरी के इर्द-गिर्द घूमती है।जहाँ रीतेश कम समय में बहुत कुछपाने के घमंड में चूर होकर नैतिक पतन में डूब मरता है वहीं युवाआधुनिकता की अंधी दौड़ में कैसे संस्कारहीन हो रहे हैं उसे युवा माधुरी नामक चरित्र के माध्यम से अभिव्यक्त किया गया है।
इस संग्रह की कहानी ‘दंडनायक’ पुलिस व्यवस्था में व्याप्त दुराचार और भ्रष्टाचार का पर्दाफ़ाश करती है। यह बहुत ही रोचक कहानी है और सन्देश देती है कि दुराचार में लिप्त लोगों के खिलाफ हिम्मत और से संघर्षकर समाज में सजगता लाने का प्रयास करना चाहिए।चुन्गीना के पर लूट-खसोट के पुलिसिए कारनामों के माध्यम से जहाँ इस कहानी में दुराचार और भ्रष्टाचार को मुख्य विषय बनाया है वहींसमाज में आपसी सद्भाव और भाईचारे की भावना से कठिन परिस्थियों से भी उबरने की बात भी प्रमाणिकता को सिद्धकियाहै। बाल-शोषण पर रोचक कथा ‘गुस्ताखी’ सोसाइटी के प्रबुद्ध-वर्ग की मानसिकता पर कडा प्रहार करती है। जहाँ सोसाइटी की निवासी विशाखा बाल मजदूर संगीता के पक्ष में उसके हित में आवाज उठाती है वहीं व्यवस्था और नियम क़ानून, बाल मजदूर की विवशता को हथियार बनाकर विशाखा जैसों को ही दोषी सिद्ध करने में सफल होते हैं।
‘दुर्घटना’ कहानी भी समाज में ढोंगी और पाखंडी मानसिकता की पोल खोलती है। धन के मद में चूरजहाँ आर। के। सिंह,गरीबऔर लाचार साधना को सहानुभूति के जाल में फसाता है और इंसानियत को तार-तार करने वाली सोच से विश्वासघात करता है।यह कहानी भी इस बात को उठाती है कि कैसे पुलिस प्रशासन में भ्रष्टव्यवस्था समर्थव्यक्ति के धन से कै सेनि:सहाय के प्रतिन्याय करती है। पुलिस और आर। के। सिंह के संवाद से ही बातपुष्ट होगी –
‘देखिए मिसिंह, यह ओपन मर्डर केस है। लेकिन इसमें आई विटनेस नहीं है, इसलिए इसमें कुछ झोल है। ’…………….“जी मैं समझ रहा हूँ फिर भी अपनी डिमांड बताइए ?”
“देखो जी,बात एकदम क्लियरकट है। हम स्टाफ में तीन लोग हैं और ड्राइवर
मिलाकर कुल चार।
इसलिए पूरे दस लाख लगेंगे, वरना जेल में सडोगे।” (पृ 71)
‘दिशांतर’ कहानी पर्यावरण की स्वच्छता के महत्त्व को प्रतिपादित कथ्य पर आधारित है जिसमें तीन पीढ़ियों के पात्रों के माध्यम से समाज को यह सन्देश दिया है कि पर्यावरण मानव जाति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। ‘साक्षरता का सबेरा’ सरकार की साक्षरतानीति के पक्ष से संबंधित कथ्य को प्रतिपादित करती है और यह संदेश देती है कि अशिक्षा के कारण दूसरे पर निर्भर पड़ता है अत:साक्षरता आत्मनिर्भरता की ,अच्छे जीवन की पहली सीढ़ी है।
कहानी समाज के विविध पक्षों को उसी रूप को अभिव्यक्त करने में सफल हैं जिस रूप में वे विद्यमान हैं। लेखक ने सूक्तियों, मुहावरों और कहावतों का प्रयोगकर गंभीर विचारों को पाठकों तक पहुँचाने का प्रयास किया है। इन कहानियों की कथा वस्तु समाज को ही प्रतिबिंबित करती है अत:पाठक इस से अपने अनुभवों को जोड़ने लगता है तभीवह रुचि के साथ इन की गंभीरता में डूबता-उतराता चलता है।छोटे-छोटे कथो कथन और संवाद सहज-सरल और बोधगम्य हैं। मुझे विश्वास है कि ‘दंडनायक’ की कहानियाँ पाठकों को अवश्य ही पसंद आयेंगी।
पुस्तक : दंडनायक
लेखक : उमाकांतखुबालकर
प्रकाशक: मित्तलएंडसंस, आईपीएक्सटेंशन, दिल्ली
संस्करण: 2019, पृष्ठ – 120,मूल्य-रु195/-
समीक्षक-डॉ दीपक पाण्डेय
सहायक निदेशक
केंद्रीय हिंदी निदेशालय
शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार
नईदिल्ली 110066