November 16, 2024

मैं एक बलुआ प्रस्तर खंड

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आजकल इस महामारी के समय मन बहुत ही व्यथित रह रहा है। न्युज चैनल हों या सोशल मीडिया सभी जगह अशुभ समाचार देख – सुनकर लगता है हम पागल हो जायेंगे। ऐसे में अच्छा साहित्य पढ़ना ही एक विकल्प बच जाता है मन को स्थिर करने के लिए और ऐसे में मैं आजकल उषा किरण खान दीदी को पढ़ रही हूँ। अभी मैं एक बलुआ प्रस्तर खण्ड का संक्षिप्त विवरण आपसे साझा कर रही हूँ।

आज का लेखन यदि स्त्री विमर्श काल कहा जाये तो यह गलत नहीं होगा। क्योंकि जिस तरह से स्त्रियां अपने हाथों में कलम रूपी तलवार थामकर समर में कूद पड़ी हैं कि महा समर में हलचल का माहौल उत्पन्न हो गया है।
वैसे तो स्त्री विमर्श पर अनेक साहित्य रचे गये किन्तु आज मैं जिस पुस्तक की बात कर रही हूँ उसे पढ़ते हुए एक – एक करके मेरे ज्ञान चक्षु खुलते गये।
इस पुस्तक की लेखिका हैं साहित्य अकादेमी पुरस्कार तथा भारत भारती सम्मान से अलंकृत पद्मश्री Ushakiran Khan जी। मैं आदरणीया की पंक्तियों को लेते हुए मैं उनके द्वारा स्त्रियों को सप्रेम समर्पित की गई ज्ञानवर्धक तथा प्रेरणादायी पुस्तक का परिचय कराने का प्रयास कर रही हूँ। ” मेरे मन में सदा उथल-पुथल रही कि स्त्री की स्थिति और उसके उत्थान पतन की चर्चा की जाये तो कैसे? आम धारणा और क्रमिक विकास की ऐतिहासिक दृष्टि से देखते हुए मैंने लिखना शुरू किया। रससिद्ध और मनोरंजक बनाने का आलम्बन दीदारगंज की चंवरवाहिनी यक्षी बनी,,” जिसका परिणाम है मैं एक बलुआ प्रस्तर खण्ड।
वास्तव में लेखिका उषा किरण खान जी ने अपूर्व प्रयोग करते हुए स्त्री विमर्श जैसे गम्भीर विषय को भी इतनी सहजता, मनोरंजक व खूबसूरती से वर्णन किया है कि पाठक भावनाओं के प्रवाह में बहता चला जायेगा और सोचने पर विवश हो जायेगा।
पीले सरसों के रंग के आवरण में जिसपर खूबसूरत स्त्रियों की कलाकृति अंकित है.. लिपटी हुई यह पुस्तक पाठकों को आकृष्ट करने तथा अपना परिचय देने के लिए पर्याप्त है जिसमें पूर्व वैदिक काल की विदुषी घोषा से लेकर इंदिरा गांधी तक की स्त्रियों की गौरव गाथा सन्निहित है।
जैसा कि आदरणीया ने अपनी भूमिका में लिखी है कि” रससिद्ध और मनोरंजक बनाने का आलम्बन दीदारगंज की चंवरवाहिनी यक्षी बनी” तो अपनी कहानी सुनाते हुए चंवरवाहिनी यक्षी शिल्पी के श्रम, सूझ – बूझ तथा संवेदनशीलता का बहुत ही सूक्ष्मता से विवेचना करते हुए प्रत्येक काल – खण्ड में स्त्रियों की दशा का वर्णन करती है।
स्त्री और पुरुष पूर्व वैदिक काल में लगभग बराबरी का दर्जा रखते थे।
अनुलोम तथा प्रतिलोम विवाह चलता था।
ऋतमती होते ही स्त्री पुन: पवित्र हो जाती है।
आर्यों के प्रारम्भिक समाज में स्त्रियाँ स्वच्छंद थीं।
वैदिक युग में स्त्री की शिक्षा अपनी उच्चतम सीमा पर थी।
बौद्ध युग में स्त्रियां प्रायः शिक्षित और विद्वान हुआ करती थीं। विद्या धर्म और दर्शन के प्रति उनकी अगाध रुचि हुआ करती थी।
उत्तरवैदिककालीन व्यावहारिक शिक्षा में वे नृत्य, गान, चित्रकला आदि की भी शिक्षा ग्रहण करती थीं।
दूसरी सदी ई. पूर्व तक स्त्री का उपनयन व्यवहारतः बन्द हो चुका था। विवाह के अवसर पर ही उनका उपनयन संस्कार कर दिया जाता था। इस सम्बन्ध में मनु का कथन है कि पति ही कन्या का आचार्य, विवाह ही उसका उपनयन संस्कार , पति की सेवा ही उसका आश्रम – निवास और गृहस्थी का कार्य ही उसका धार्मिक अनुष्ठान है। कालांतर में शुद्रों की ही तरह वेदों के पठन-पाठन और यज्ञों में सम्मिलित होने के अधिकार से भी वह वंचित कर दी गई।
पूर्व मध्य युग तक आकर नारी शिक्षा का प्रसार अवरुद्ध हो चुका था किंतु अभिजात वर्ग में सुसंस्कृत और सुबोध स्त्रियों की कमी नहीं थी।
ऐसी भी स्त्रियां हुईं जो शाशक अथवा अभिभावक के अभाव में स्वयं प्रशासन का संचालन करती थीं।
यह जानकारी तो हमें लेखिका द्वारा स्वयं लिखी गई भूमिका में ही मिल जाती है।
अब सुनाती हूँ चंवरवाहिनी यक्षी द्वारा कही गई कहानी के अंश –
‘शिल्पी का स्पर्श मेरे अंग-अंग में बस गया।शिल्पी वहां मेरे पार्श्व में गहरी निद्रा में सो गया था जिसे उषस्काल की अन्शुमालाओं ने जगाया। दिनकर की कोमल किरनों ने पहले सिकता राशि पर अपनी प्रभा बिखरी,उनमें घुले-मिले अभरक कणों को सुनहरा किया’ मुझे एक आभा प्रदान की तब उसके गंगा जमुनी श्मश्रुओं के बेतरतीब केशों को सहलाया…….

इस प्रकार लेखिका की लेखनी यक्षी के माध्यम से घोषा,गार्गी,लोपामुद्रा, आमृपाली, रज़िया सुल्तान से इन्दिरा गांधी तक का बहुत ही कम शब्दों में विस्तार से वर्णन करती है। पुस्तक की भाषा, काल और संस्कृति का सूक्ष्म परिचय देती है ।

इस प्रकार की कितनी ही जानकारी इस पुस्तक में सन्निहित हैं जिसको जानना हम सभी के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इतने कम पृष्ठों में कथेतर गद्य के माध्यम से इतनी खूबसूरती से पूर्ण स्त्रीकाल को समेट लेने की क्षमता आदरणीया उषा किरण खान दीदी की लेखनी ही रखती है। हम लेखिका की लेखनी को नमन करते हैं।

यह पुस्तक सभी स्त्रियों को तो पढ़नी ही चाहिए साथ ही समस्त पुरुष जाति को भी पढ़नी चाहिए जिससे स्त्रियों के प्रति उनकी धारणा बदल सके और वह एक नई दृष्टि से स्त्रियों को देख सकें।
इतने खूबसूरत और बहुमूल्य उपहार के लिए हम आदरणीया उषा किरण खान दीदी को साधुवाद देते हुए बारम्बार प्रणाम करते हैं।

समीक्षक – किरण सिंह
पुस्तक का नाम – मैं एक बलुआ प्रस्तर खण्ड
लेखिका – पद्मश्री उषा किरण खान
प्रकाशक – वाणी प्रकाशन
मूल्य – 250 रुपये

पुस्तक अमेजन पर उपलब्ध है –

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