लतीफ घोंघी को याद करते हुए
‘‘ मुर्गी चोर की कथा ‘‘
– लतीफ घोंघी
हम चोरों के बीच जीने वाले लोग हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार हमने आजादी के बाद बहुत विकास किया है, लेकिन जब मेरी मुर्गी चोरी हो गई तब मुझे लगा कि देश के चोरों का स्तर कितना गिर गया है। सरकार ने चोरों के लिए सिंचाई विभाग, लोककर्म विभाग, राजस्व विभाग और इसी तरह के कई विभाग खोल रखे हैं, फिर भी मुर्गी जैसे प्राणी पर हमारे देश के चोरों की नीयत खराब हो जायेगी, इसकी कल्पना मुझे नहीं थी। एक तरफ शोभराज और हर्षद मेहता हैं जिनका नाम लेकर हम स्वयं को गौरवान्वित महसूस करते हैं, और इधर यह मुर्गीचोर है जिसने चोरों का सिर नीचा कर दिया देश में। मैं कहता हूं- मर जा साले चुल्लू भर पानी में डूबकर, क्या चोरी के लिए इस देश में तुझे मेरी मुर्गी ही मिली ? कुछ तो ख्याल किया होता चोरों की प्रतिष्ठा का अबे मुर्गी चोर, तूने विदेशों में हमारी छबि धूमिल करके धर दी रे। क्लिंटन क्या सोचेगा हमारे बारे में ? गोर्बाचेव क्या सोचेंगे हमारे बारे में ? कुछ तो ख्याल किया होता तू अपनी नैतिकता, चरित्र और हमारे पूर्वजों के संस्कारों का ? वे तो बेचारे एक घर छोड़ भी देते थे, लेकिन तूने मेरा घर भी नहीं छोड़ा।
आप सोच रहे होंगे कि मैं अपनी ही नैतिकता, अपने ही चरित्र और अपनी ही भारतीय संस्कृति की तारीफ करता रहूंगा, तो अण्डे क्या आप देंगे ? इसी देशी मुर्गी के अण्डे खा-खाकर मुझे देश का महान नागरिक होने का गौरव प्राप्त हो रहा है, तो चुप कैसे रहूं ? बापू जिन्दा होते तो उनसे पूछता कि क्या यह दिन देखने के लिए ही आपने इस देश का आजाद किए जाने का संकल्प लिया था ?
इसलिए मित्र, मुर्गी चोरी के बाद उदास बैठा हूं अपने कमरे में। सूरज क्षितिज को पार करता हुआ पश्चिम की ओ बढ़ रहा है। आकाश में हल्के गुलाबी रंग की पर्त जमने लगी है। इस गुलाबी रंग में हमारी संस्कृति, हमारी भारतीयता अस्त होने लगी है। कवि होता तो ऐसी ठोस स्थिति पर एक धारदार कविता लिख देता, लेकिन मुझे तो इस क्षितिज पर केवल एक मुर्गी नजर आ रही है जो मुर्गी चोरों के हाथों में फड़फड़ाती हुई जीवन संघर्ष कर रही है। मैं जानता हूं मुर्गी चोर उसे हलाल कर प्रशासन और व्यवस्था की डायनिंग टेबल पर सजा देगा और जन मन गण अधिनायक भारत भाग्य विधाता गाकर हाथ धो लेगा।
मित्रों, अनेक कल्पनाएं आ रही हैं इस मुर्गी को लेकर। मुर्गी- यानी सर्वहारा वर्ग की प्रतीक। मुर्गी- यानी शोषण की शिकार असहाय पशु-नारी। मुर्गी-यानी देश का अण्डे देने वाला लघु उद्योग केन्द्र। मुर्गी- यानी साम्प्रदायिक एकता और सम-भाव की प्रेरणा स्त्रोत। हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, इसाई सबकी छुरियों के लिए समर्पित, सबके मसालों में अपने स्वाद के व्यक्तित्व और कृतित्व की पहचान को चिरस्थायी रखने वाली- भारतीय मुर्गी।
रात मुझे सपना आया। मुर्गी चोर मेरे कमरे में खड़ा है। चेहरा ओजस्वी, ललाट उन्नत, सफेद खादी का कलफदार कुरता और सकरी घेरे का पाजामा। चेहरे पर सौम्य मुस्कुराहट। दोनों हाथ जोड़कर बोला- एक मुर्गी के लिए इतना परेशान क्यों हो रहे हो ?
इससे पहले कि मैं पूछता कि आप कौन हैं, वह बोला- मैं जनता का सेवक। मेरे योग्य सेवा का आदेश दीजिए।
मैंने पूछा- क्या तुमने मेरी मुर्गी चुराई है ?
वह बोला- हां। लेकिन मैंने यह कार्य जनहित में किया है, और जो काम जनहित में किया जाता है, वह चोरी नहीं, जनसेवा कहलाता है। इस देश में जनसेवा के लिए जो अपनी कुरबानी देता है, शहीद कहलाता है। तुम्हारी मुर्गी शहीद हो गई है। उसने अपना जन्म इस
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देश की जनसेवा के लिए सार्थक कर दिया है। देखो, वह जन्नत में फरिश्तों के साथ कितनी खुश नजर आ रही है।
उसने मेरे कमरे में टंगे हिन्दुस्तान के नक्शे पर हाथ फिराया और नक्शा जन्नत में बदल गया। शस्य श्यामलाम् मातरम्-वन्दे मातरम्, वन्दे मातरम्।
मैने मुर्गी चोर से पूछा- मुझे यह बता कि हमारे संविधान में जब मुर्गी जैसे अल्पजीवी प्राणी को भी अपनी जिन्दगी जीने का अधिकार प्राप्त है तब तुमने उसके मौलिक अधिकार का हनन क्यों किया ?
इतनी स्ट्रांग हिन्दी सुनकर उसके मन में मेरे प्रति आदर की भावना जागृत होना स्वाभाविक था। भले की वह मुर्गी चोर था, लेकिन था तो हिन्दी प्रेमी। उसने कहा- मित्र, वास्तविकता यह है कि उस रात एक मंत्री जी जनसम्पर्क दौरे पर थे। रात्रि में उनका विश्राम डाक बंगले में था। उनके पी.ए. ने मुझे बताया कि मंत्री जी मुर्गी-प्रेमी हैं। तब मैंने पी.ए. को बताया था कि इस विधानसभा चुनाव क्षेत्र में शासकीय कर्मचारियों और अधिकारियों की कृपा से मुर्गियों की बहुत शार्टेज चल रही है, इसलिए मंत्री जी के मुर्गी-प्रेम को डाक-बंगले में जीवित रखना संभव नहीं है।
थोड़ी देर रूकने के बाद मुर्गी चोर ने कहा- मित्र, मेरा जवाब सुनकर पी.ए. ने मेरे देशप्रेम को ललकारा, और कहा- मंत्री जी देश के लिए अपना खून-पसीना एक कर रहे हैं, क्या इस विधानसभा क्षेत्र में उन्हें एक मुर्गी का सहयोग नहीं मिलेगा ? क्या यह क्षेत्र इतना कृतघ्न हो गया है कि देश के इस लाडले सपूत के लिए एक मुर्गी की व्यवस्था न कर सके ? इस विधानसभा क्षेत्र की ऐसी हालत देखकर देश के किस मंत्री को रोना नहीे आयेगा ? देश के विकास के लिए अपना सब कुछ त्याग कर जिस महान व्यक्ति ने मंत्री पद की कुर्सी स्वीकार किया, उसकी भावना के सम्मान के लिए क्या एक मुर्गी भी नहीं है इस क्षेत्र में ?
मुर्गी चोर ने आगे कहा- मैं देश प्रेम, मंत्री जी की त्याग भावना और भारतीय नागरिक के कत्र्तव्यों के प्रति चिंतन कर रहा था कि डाक बंगले के अहाते में दाना चुगती हुई आपकी मुर्गी पर मेरी नजर पड़ी। उसका शारीरिक विकास देखकर मुझे लगा कि इस मुर्गी के दिन फिर गये। मंत्री जी कृपा से वह आज सीधे जन्नत में जायेगी। उसका परलोक सुधर जायेगा। इसी आदर्श भावना का शिकार होकर मैंने आपकी मुर्गी चुराई है। देखिए, आपकी मुर्गी जन्नत में फरिश्तों के साथ फुदक रही है।
उसने फिर हिन्दुस्तान के नक्शे पर हाथ फिराया और मैंने देखा कि पूरी जन्नत इस क्षितिज की तरह लाल हो गई है और एक फरिश्ता तेज छुरी लिए मुर्गी की तरफ लपक रहा है। मेरी आंख खुल गई। कमरे में कोई नहीं था।
…दीवार पर देश का नक्शा मेरी मुर्गी की तरह फड़फड़ा रहा था।
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‘9-रूबि निवास ‘ महाविद्यालय मार्ग
महासमुन्द, (छ.ग.) 493445