अमित कुमार की दो लघुकथाएं
गद्दार (लघुकथा)
शिक्षकों की हड़ताल के दो महीने पूरे हो चुके थे। सरकार अपनी ज़िद पर अड़ी हुई थी और शिक्षक संघ के प्रतिनिधियों को वार्ता तक का आमंत्रण नहीं दे रही थी। सैकड़ों शिक्षकों पर निलंबन और एफ. आई. आर. जैसी दमनात्मक कार्रवाइयों के बाद भी दौलतपुर ज़िले के अधिकांश शिक्षक इस हड़ताल में अब तक डटे हुए थे। इस बीच सरकार ने हड़ताल में नहीं रहने वाले शिक्षकों को दो महीनों का वेतन देने के लिए शिक्षा विभाग से विद्यालयवार अनुपस्थिति विवरणी की माँग की। दौलतपुर जिले के हड़ताली शिक्षक अपनी चट्टानी एकता पर गौरवान्वित थे। जिले के दो-चार प्रमुख शिक्षक नेताओं ने पूरे ज़िले के सभी विद्यालयों में घूम-घूम कर सभी शिक्षकों को हड़ताल में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था। जिला सचिव महेन्द्र प्रसाद ऐसे ही शिक्षकों में थे। महेन्द्र प्रसाद के विद्यालय से शिक्षा विभाग को जो रिपोर्ट भेजी गयी उसमें अंकित था– ‘इस विद्यालय के कोई शिक्षक हड़ताल में शामिल नहीं हैं।’ महेन्द्र प्रसाद की इस गद्दारी को देखकर पूरे जिले के हड़ताली शिक्षक सन्न रह गये। अपनी गद्दारी छुपाने के लिए महेन्द्र प्रसाद ने तरह-तरह की सफाई दी और झूठे बहाने बनाये, लेकिन अब वह एक साथ सैकड़ों नज़रों से हमेशा के लिए गिर चुके थे।
सलामी (लघुकथा)
शातिर दिमाग का रणवीर दिन-रात बड़ा आदमी बनने के सपने देखा करता था। पढ़ाई-लिखाई में तो उसका मन कभी नहीं लगा, लेकिन किसी से भी रुपये ठग लेने की कला में वह छोटी उम्र से ही माहिर था। जैसे-जैसे उसकी उम्र बढ़ती गयी, अपराधिक प्रवृत्ति के लोगों से उसकी सोहबत भी बढ़ती गयी। चोरी, लूट, ठगी, रंगदारी जैसे अपराधों के अतिरिक्त सूद पर रुपये देकर गरीब व कमजोर लोगों से उनकी जमीन-जायदाद लिखवा लेना रणवीर का प्रिय शगल था। कई बार वह पुलिस के हत्थे चढ़ा, जेल गया और पुलिस कस्टडी में उसकी भरपूर पिटाई भी हुई थी। इन सब चीजों से बचने के लिए धीरे-धीरे वह एक राजनीतिक दल से जुड़ता चला गया और नेता बन गया। फिर, एक दिन वह गाँव छोड़कर राज्य की राजधानी में शिफ्ट कर गया। देखते-देखते कई मंत्री, विधायक, जज, प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों से उसकी घनिष्ठता हो गयी। राजधानी में उसने एक शानदार घर और कई फ्लैट भी अर्जित कर लिये। आज अपनी लगज़री गाड़ी से जब कभी रणवीर सिंह कुछ देर के लिए गाँव आता है तो उससे मिलने और पैरवी- सिफारिश करवाने वाले लोगों की भीड़ उमड़ पड़ती है। जो कल तक अपराधी कहकर उससे दूरी बनाये रखते थे, आज उसके दरबार में सलामी बजाते हैं।
—- अमित कुमार, ‘जगदीश द्वार’, पंडारक (पटना)