झुंड में
न अपने पास पाने के लिए कुछ है न खोने के लिए कुछ है जो कुछ है खोने पाने के...
न अपने पास पाने के लिए कुछ है न खोने के लिए कुछ है जो कुछ है खोने पाने के...
साथी अजय चंद्रवंशी द्वारा मेरी चयनित कविताओं के संग्रह पर समीक्षा। उनके प्रति आभार के साथ यह - बुद्धिलाल पाल...
अभी तो इतनी उमर भी नहीं गुज़री, और उठने लगी घुटनों से लहर मारती कोई दुर्दांत टीस हरसिंगार के झड़ने...
इतना मत व्यवधान रखा कर अपना थोड़ा ध्यान रखा कर भीड़ में तन्हा क्यूँ रहता है इक-दो से पहचान रखा...
आज शरद की रात, आज अमृत बरसेगा। अपनी सोलह कला समेटे, चांद दिखेगा और भी सुंदर। शुद्ध दूध से खीर...
लेख लम्बा अवश्य है परंतु आवश्यक है पढ़ें अवश्य। महारास शरद पूर्णिमा के दिन रचा गया था, कहतें हैं की...
डोली शाह फिरंगी लाल की कपड़े की छोटी-मोटी दुकान थी। लेकिन ग्राहकों की हर पसंद वहां मौजूद थी ।उसी दुकान...
सुबह के उजालों से आंखें चुराकर अंधेरी निशा से डरे तो नहीं हो?? चुनौती से लड़ने का उत्साह खोकर मरने...
औरतें तुम जाकर कहीं मर क्यों नहीं जाती हो बार बार तुम कभी चारे की तरह कभी दूब की तरह...
तेज़, बहुत तेज़, एक लय में बारिश के बूँदों की सीधी धार, इतनी सघन कि ठीक से दिखाई न दे...