मनीषा भारद्वाज की चार कविताएं
कभी हँस के तो कभी रो के गम छुपाते रहे लोगों से मिल के न डरपोक थे न ही कायर...
कभी हँस के तो कभी रो के गम छुपाते रहे लोगों से मिल के न डरपोक थे न ही कायर...
आज अपने गांव जाते समय आम्र-वृक्ष आम्र मंजरी से श्रृंगारित बहुत ही लुभावने लगे कुछ पँक्तियाँ भी मचल उठीं मन...
चलो आज फ़ुरसत से कुछ पन्ने पुराने पलट लिए जाएं ll इस से पहले कि बन जाऐं नासूर सब के...
है आंख नम तो क्या मुस्कुरायें। बताओं कब तक ये गम छुपायें? तुम्हें मुबारक तुम्हारी खुशियां, हमारी किस्मत है छ्टपटायें...
कहा था उसने कि पूरे वो ख़्वाब कर देगा, सफ़र में काँटे मिले तो गुलाब कर देगा । उसे पता...
नवा बछर के नवा बिहनिया हो....... नवा सुरुज अब आ गे। आवव संगी जुरमिल चलबो, अँधियारी हा भगा गे।। नवा...