तनहा
24/09/2021
मेरी “दास्तान” को न छेड़ मेरे हमदम दर्द बहुत है
इस इश्क़ का किस्सा भी मुझे “मशहूर” लगता है !!
जब भी गुज़रती हूँ मैं तेरी उन यादों की गलीयों से
भीना सा मिरे बदन का “चमन” महकने लगता है !!
मुझे भी है”इल्म”इसकी,और तुझको भी खबर है
तेरा मेरा साथ “हमराह”चलना मुश्किल लगता है !!
तुम मत करो इतनी शिद्दत से “मुहब्ब़त” मुझको
हमें दुश्मनों से कहां बस “दोस्तों”से डर लगता है !!
इस “गुरबत”का क्या है वो आकर गुज़र जाएगा
हमें तो बस “गर्दिश” के सितारों से डर लगता है !!
ये तनहाई यूं ही नहीं आयी तेरे हिस्से में”दिलशाद”
ये शहर-ए-इशक़ है,यहां हर शख़्स तनहा लगता है !!