समीक्षा : उपन्यास गांधार नरेश शकुनि
इतिहास तथ्यों की सहायता से सत्य की खोज करता है लेकिन कल्पना का सहारा नहीं लेता. वहीं पर ऐतिहासिक उपन्यास तथ्यों की सीमा से बाहर निकल कर कल्पना का आश्रय लेकर उसे रोचक बनाते हैं. इतिहास के पात्र मूक होते हैं, वे बोलते नहीं जबकि उपन्यास के पात्र हमसे जीवंत बोलते-बतियाते हैं.
शिवाजी सावंत मराठी उपन्यास ‘मृत्युंजय’ का मुख्य पात्र कर्ण पाठक से कहता है, ‘आज मैं कुछ कहना चाहता हूँ. मेरी बात सुनकर कुछ लोग चौंकेंगे. कहेंगे, जो काल के मुख में जा चुके, वे कैसे बोलने लगे? लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब ऐसे लोगों को भी बोलना पड़ता है. मैं अपनी कहानी आज आपने,, केवल अपने ही समाधान के लिए कह रहा हूँ. मनुष्य अपने मन की बात जब तक कह नहीं लेता तब तक उसका मन हल्का नहीं होता इसीलिए मैं अपनी यह कहानी मुक्त मन से कह रहा हूँ.
शिवकुमार मिश्र का मत है, ‘जहाँ इतिहास हमें शुष्क एवं नीरस हड्डियाँ देता है वहाँ ऐतिहासिक उपन्यासकार उन्हीं हड्डियों में रक्त और मांस का सृजन कर उन्हें ऐसा सुन्दर शरीर प्रदान करता है जिसमें जीवन होता है, गति होती है, सत्य होता है और उस सत्य को रमणीय बनाने वाले रंगीन धागे भी!’
इसी परिप्रेक्ष्य में उपन्यास ‘गांधार नरेश शकुनि’ के लेखक डा.किशोर अग्रवाल ने पुस्तक के आरम्भ में यह घोषणा की है, ‘यह पौराणिक उपन्यास उपलब्ध व प्रचलित ग्रंथों, श्रुतियों व कल्पना की मिश्रित रचना है. यह न तो किसी उपलब्ध साहित्य की पुष्टि करता है, न ही खंडन. एक पुरानी प्रचलित कथा के एक चरित्र को केंद्र में रख कर स्वस्थ मनोरंजक के उद्देश्य से पूर्णतः काल्पनिक लिखी गई है.’
हिंदी में पौराणिक कथाओं पर आधारित उपन्यासों की रचना का श्रेय नरेन्द्र कोहली को है जिन्होंने रामायण और महाभारत की कथाओं को केंद्र में रखकर प्रचुर मात्रा में लेखन किया तथा पुराणों में वर्णित तथ्यों को नई दृष्टि दी. महाभारत पर आधारित उनके उपन्यास ‘महासमर’ तीन खण्डों में प्रकाशित हुए, यथा, ‘बंधन’, ‘अधिकार’ और ‘कर्म’ ने हिंदी के पाठकों को भारत में प्रचलित महाभारतयुगीन घटनाओं को नए कलेवर में प्रस्तुत किया तथा उन्हें रोमांचित किया. इसी शृंखला में महाभारत के एक महत्वपूर्ण पात्र शकुनि का चरित्र चित्रण उपन्यास ‘गांधार नरेश शकुनि’ में है.
महाभारत में शकुनि की भूमिका किसी खलनायक जैसी है. धृतराष्ट्र की सभा में छल-प्रपंच के साथ उसकी उपस्थिति निरंतर बनी रहती है. उसकी बुद्धि तीक्ष्ण है, सोच अग्रगामी है, गुप्तचरी की विधा में पारंगत है और द्यूतक्रीड़ा में सिद्धहस्त है. अपनी बहन गांधारी के साथ भीष्म द्वारा किए गए अन्याय के कारण वह कौरवों से अत्यंत रुष्ट है, उनसे किसी न किसी ढंग से प्रतिकार स्वरुप उन्हें नष्ट करने का प्रण लेता है. इस कार्य के लिए वह अपना राज्यपाठ गांधार छोड़कर हस्तिनापुर राज्य में अपना स्थायी डेरा बना लेता है, धृतराष्ट्र से निकटता स्थापित कर लेता है और अपने वाक्चातुर्य से शनैः शनैः विषबेल बढ़ाने का प्रयत्न करता है. वह निर्बल होकर भी कौरवों जैसे सबल लोगों की सोच को प्रभावित करने में सफल रहता है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अपनी नकारात्मक बुद्धि का प्रभावी उपयोग करता है.
महाभारत की यह कथा हम सब को ज्ञात है, महाभारत ग्रन्थ को पढ़कर, महाभारत पर प्रवचनों का श्रवण कर और महाभारत पर आधारित बी.आर. चोपड़ा के सीरियल को देखकर अधिकतम घटनाओं से हम परिचित हैं. प्रश्न यह उठता है कि जब पूरी कथा हमें मालूम है तो हम इस उपन्यास को क्यों पढ़ें?
डा. किशोर अग्रवाल द्वारा रचित उपन्यास ‘गांधार नरेश शकुनि’ महाभारत के खलनायक को नायकत्व देने का प्रयास है. शकुनि के ह्रदय में चल रहे झंझावात, उसके क्रोध, उसका प्रतिकार भाव उसकी नकारात्मकता को सकारात्मक दृष्टि से देखने का आयाम प्रस्तुत करता है. उसके पिता सैन्यशक्ति में निर्बल थे इसलिए अपनी कन्या नेत्रहीन धृतराष्ट्र को ब्याहने के लिए सहमत हो गए थे लेकिन शकुनि ने अपने पिता के भीष्म के समक्ष आत्मसमर्पण के विरोध में कौरवों के घर में घुस कर उन्हें नष्ट करने का जो कुचक्र रचा, अस्त्र-शस्त्र की अनुपस्थिति में साहसिक युद्ध किया, उसका रोचक वर्णन इस कृति में है.
इस उपन्यास की एक और विशेषता है, इसे सामान्य कथोपकथन की शैली में नहीं लिखा गया है वरन कथा का प्रत्येक पात्र स्वयं उपस्थित होकर पाठक से अपना दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है. महाभारत के पात्र आत्मकथ्य के माध्यम से अपनी बीती सुनाते हैं जो इस कृति को नवीनतम विधा से परिचित कराते हैं.
उपन्यासकार डा. किशोर अग्रवाल का साहस प्रशंसनीय है, उन्होंने अपने उपन्यास के विषय में हमारे परिचित खलनायक पर अपनी कलम उठाई. किशोर अग्रवाल लेखक होने के साथ चित्रकार भी हैं. आमुख पृष्ठ पर गांधार नरेश शकुनि का चित्र उन्होंने स्वयं बनाया है जिसमें महाभारत सीरियल के शकुनि का पात्र अभिनीत करने वाले गूफी पटेल का अक्स दिखाई पड़ता है, जो गूफी पटेल की अभिनय क्षमता का स्पष्ट प्रभाव है.
उपन्यास निःसंदेह पढ़ने योग्य है, रोचकता इस कृति का विशेष गुण है और महाभारत की कथा को नए स्वरुप में समझने का सार्थक प्रयास है.
उपन्यास : गांधार नरेश शकुनि
पृष्ठ संख्या : २३६
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन, जयपुर
मूल्य : ३९५
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समीक्षा : द्वारिका प्रसाद अग्रवाल बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
चलभाष : ९८९३१२३६६३